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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हिंदी दिवस या फिर अंग्रेजी हटाओ दिवस?

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: September 15, 2020 13:28 IST

हिंदी-दिवस को सार्थक बनाने के लिए अंग्रेजी के सार्वजनिक प्रयोग पर प्रतिबंध की जरूरत क्यों है? इसलिए नहीं कि हमें अंग्रेजी से नफरत है. कोई मूर्ख ही होगा जो किसी विदेशी भाषा या अंग्रेजी से नफरत करेगा.

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भारत सरकार को हिंदी दिवस मनाते-मनाते 70 साल हो गए लेकिन कोई हमें बताए कि सरकारी काम-काज या जन-जीवन में हिंदी क्या एक कदम भी आगे बढ़ी? इसका मूल कारण यह है कि हमारे नेता दावा करते हैं कि वे जनता के नौकर हैं, लेकिन वे ज्यों ही चुनाव जीतकर कुर्सी में बैठते हैं, नौकरशाहों की नौकरी बजाने लगते हैं. भारत के नौकरशाह हमारे स्थायी शासक हैं. उनकी भाषा अंग्रेजी है. देश के कानून अंग्रेजी में बनते हैं, अदालतें अपने फैसले अंग्रेजी में देती हैं, ऊंची पढ़ाई और शोध अंग्रेजी में होते हैं, अंग्रेजी के बिना आपको कोई ऊंची नौकरी नहीं मिल सकती. क्या हम अपने नेताओं और सरकार से आशा करें कि हिंदी-दिवस पर अंग्रेजी के सार्वजनिक प्रयोग पर वे प्रतिबंध लगाएंगे? यह सराहनीय है कि नई शिक्षा नीति में प्राथमिक स्तर पर मातृभाषाओं के माध्यम को लागू किया जाएगा लेकिन उच्चतम स्तरों से जब तक अंग्रेजी को विदा नहीं किया जाएगा, हिंदी की हैसियत नौकरानी की ही बनी रहेगी.

हिंदी-दिवस को सार्थक बनाने के लिए अंग्रेजी के सार्वजनिक प्रयोग पर प्रतिबंध की जरूरत क्यों है? इसलिए नहीं कि हमें अंग्रेजी से नफरत है. कोई मूर्ख ही होगा जो किसी विदेशी भाषा या अंग्रेजी से नफरत करेगा. कोई स्वेच्छा से जितनी भी विदेशी भाषाएं पढ़े, उतना ही अच्छा. मैंने अंग्रेजी के अलावा रूसी, जर्मन और फारसी पढ़ी लेकिन अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का पीएचडी का शोधग्रंथ हिंदी में लिखा.हिंदी-दिवस को सारा देश अंग्रेजी-हटाओ दिवस के तौर पर मनाए. अंग्रेजी मिटाओ नहीं, सिर्फ हटाओ! अंग्रेजी की अनिवार्यता हर जगह से हटाएं. उन सब स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों की मान्यता खत्म की जाए, जो अंग्रेजी माध्यम से कोई भी विषय पढ़ाते हैं.

संसद और विधानसभाओं में जो भी अंग्रेजी बोले, उसे कम से कम छह माह के लिए मुअत्तिल किया जाए. यह मैं नहीं कह रहा हूं. यह महात्मा गांधी ने कहा था. सारे कानून हिंदी और लोकभाषाओं में बनें और अदालती बहस और फैसले भी उन्हीं भाषाओं में हों. अंग्रेजी के टीवी चैनल और दैनिक अखबारों पर प्रतिबंध हो. विदेशियों के लिए केवल एक चैनल और एक अखबार विदेशी भाषा में हो सकता है. किसी भी नौकरी के लिए अंग्रेजी अनिवार्य न हो. हर विश्वविद्यालय में दुनिया की प्रमुख विदेशी भाषाओं को सिखाने का प्रबंध हो ताकि हमारे लोग कूटनीति, विदेश व्यापार और शोध के मामले में पारंगत हों. देश का हर नागरिक प्रतिज्ञा करे कि वह अपने हस्ताक्षर स्वभाषा या हिंदी में करेगा तथा एक अन्य भारतीय भाषा जरूर सीखेगा. हम अपना रोजमर्रा का कामकाज हिंदी या स्वभाषाओं में करें. भारत में जब तक अंग्रेजी का बोलबाला रहेगा यानी अंग्रेजी महारानी बनी रहेगी तब तक हिंदी नौकरानी ही बनी रहेगी.

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