वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: बंधुत्व ही सच्च हिंदुत्व का विचार करें आत्मसात

By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 28, 2020 01:37 PM2020-10-28T13:37:33+5:302020-10-28T13:37:33+5:30

मोहन भागवत ने कोरोना महामारी, कृषक नीति, शिक्षा नीति और पड़ोसी नीति आदि पर भी अपने विचार प्रकट किए. शिक्षा नीति पर बोलते हुए यदि वे राज-काज, भर्ती और रोजगार से अंग्रेजी को हटाने की बात करते तो बेहतर होता.

Vedapratap Vedic Blog over Mohan bhagwat speech at vijaydashmi: Fraternity should consider true Hindutva assimilation | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: बंधुत्व ही सच्च हिंदुत्व का विचार करें आत्मसात

मोहन भागवत के विचार को संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक और प्रत्येक भारतीय आत्मसात कर ले तो सांप्रदायिकता अपने आप भारत से भाग खड़ी होगी.

हर विजयादशमी को यानी दशहरे के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया नागपुर में विशेष व्याख्यान देते हैं क्योंकि इस दिन संघ का जन्म-दिवस मनाया जाता है. इस बार संघ-प्रमुख मोहन भागवत का भाषण मैंने टीवी चैनलों पर देखा और सुना. सबसे पहले तो मैं इस बात से प्रभावित हुआ कि उनकी भाषा यानी हिंदी इतनी शुद्ध और सारगर्भित थी कि दिल्ली में तो ऐसी आकर्षक हिंदी सुनने में भी नहीं आती और वह भी तब जबकि खुद मोहनजी हिंदीभाषी नहीं हैं.

वे मराठीभाषी हैं. हमारी सभी पार्टियों, खास तौर से भाजपा, जदयू, राजद, सपा, बसपा के नेता वैसी हिंदी या उससे भी सरल हिंदी क्यों नहीं बोल सकते? उस भाषण में जो राजनीतिक और सैद्धांतिक मुद्दे उठाए गए, उनके अलावा भारत के नागरिकों को अपने दैनिक जीवन में क्या-क्या करना चाहिए, ऐसी सीख हमारे नेता लोग भी क्यों नहीं देते? कुछ नेता कुछ खास दिवसों पर अफसरों के लिखे भाषण पढ़ डालते हैं. इन नेताओं को पता चला होगा कि भारत के सांस्कृतिक और सैद्धांतिक सवालों पर सार्वजनिक बहस कैसे चलाई जाती है.

मोहन भागवत के इस विचार का विरोध कौन कर सकता है कि भारत में बंधुत्व ही सच्चा हिंदुत्व है. यह विचार इतना उदार, इतना लचीला और इतना संविधानसम्मत है कि इसे सभी जातियों, सभी पंथों, सभी संप्रदायों, सभी भाषाओं के लोग मानेंगे. हिंदुत्व की जो संकीर्ण परिभाषा पहले की जाती थी और जो अब तक समझी जा रही है, उस छोटी लकीर के ऊपर मोहनजी ने एक लंबी लकीर खींच दी है. उनके हिंदुत्व में भारत के सारे 130 करोड़ लोग समाहित हैं. पूजा-पद्धति अलग-अलग हो जाने से कोई अ-हिंदू नहीं हो जाता. अ-हिंदू वह है, जो अ-भारतीय है. यानी हिंदू और भारतीय एक ही हैं. मोहन भागवत के इस विचार को संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक और प्रत्येक भारतीय आत्मसात कर ले तो सांप्रदायिकता अपने आप भारत से भाग खड़ी होगी.

मोहन भागवत ने कोरोना महामारी, कृषक नीति, शिक्षा नीति और पड़ोसी नीति आदि पर भी अपने विचार प्रकट किए. शिक्षा नीति पर बोलते हुए यदि वे राज-काज, भर्ती और रोजगार से अंग्रेजी को हटाने की बात करते तो बेहतर होता. मातृभाषा में शिक्षा की बात तो उत्तम है लेकिन जब रोजगार और वर्चस्व अंग्रेजी देती है तो मातृभाषा में कोई क्यों पढ़ेगा? इसी प्रकार पड़ोसी देशों को एकसूत्न में बांधने में दक्षेस (सार्क) विफल रहा है. यह महान कार्य राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के बस का नहीं है. संपूर्ण आर्यावर्त (अराकान से खुरासान तक) को एक करने का कार्य इन देशों की जनता को करना है. जनता को जोड़ने का काम समाज सेवी संगठन ही कर सकते हैं.

Web Title: Vedapratap Vedic Blog over Mohan bhagwat speech at vijaydashmi: Fraternity should consider true Hindutva assimilation

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