वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: नए कश्मीर का सूत्रपात
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 13, 2019 03:16 PM2019-08-13T15:16:25+5:302019-08-13T15:16:25+5:30
कश्मीर के आम लोग तो बहुत शालीन, सुसंस्कृत और शांतिप्रिय हैं लेकिन नेताओं और गुमराह आतंकियों की मजबूरी है कि वे लोगों को उकसाते हैं और हिंसा भड़काते हैं. लेकिन कितना गजब हुआ है कि आज पूरा कश्मीर खोल दिया गया, हजारों लोगों ने मस्जिदों में जाकर नमाज पढ़ी...
केंद्र के नेताओं और अफसरों को आशंका थी कि ईद के दिन कश्मीर में घमासान मचेगा. यह आशंका 14 और 15 अगस्त के लिए भी बनी हुई है लेकिन यह लेख लिखे जाने तक कश्मीर से कोई भी अप्रिय खबर नहीं आई है. आज घनघोर व्यस्तता के बावजूद दिन में चार-छह बार टीवी देखा, क्योंकि मुङो भी शंका थी कि कश्मीर में कुछ भी हो सकता है.
हालांकि तीन दिन पहले मैंने लिखा था कि हमारे कश्मीरी भाई-बहनों को यह ईद ऐतिहासिक शैली में मनानी चाहिए, क्योंकि 5 अगस्त को उनकी फर्जी हैसियत खत्म हुई है और अन्य भारतीयों की तरह उन्हें सच्ची आजादी मिली है.
कश्मीर के आम लोग तो बहुत शालीन, सुसंस्कृत और शांतिप्रिय हैं लेकिन नेताओं और गुमराह आतंकियों की मजबूरी है कि वे लोगों को उकसाते हैं और हिंसा भड़काते हैं. लेकिन कितना गजब हुआ है कि आज पूरा कश्मीर खोल दिया गया, हजारों लोगों ने मस्जिदों में जाकर नमाज पढ़ी और बाजारों में खरीदी की किंतु कहीं से हिंसा की खबर नहीं आई है. विदेशी अखबार और रेडियो कुछ बता जरूर रहे हैं लेकिन यदि कोई बड़ी घटना घटी होती तो भारत सरकार के लिए उसे छिपाना मुश्किल था. फोन तो कुछ घंटों के लिए चालू थे ही.
तो इस शांति और व्यवस्था का अर्थ क्या हम यह लगाएं कि कश्मीर की जनता ने धारा 370 और 35 ए के खात्मे को पचा लिया है? उसने उसका बुरा नहीं माना है? यदि ऐसा होता तो सारे नेताओं को भी छोड़ दिया जाता. लेकिन सरकार के विरोधियों को भी मानना पड़ेगा कि ईद के मौके पर कश्मीरियों के लिए केंद्र सरकार और राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जैसी प्रचुर सुविधाएं जुटाई हैं, उन्होंने कश्मीरियों के दिलों में सद्भावना जरूर पैदा की होगी.
जो भी हो, अभी 14 अगस्त और 15 अगस्त को भी आना है. एक पाकिस्तान-दिवस और दूसरा भारत-दिवस है. यदि इन दोनों दिनों में कोई अप्रिय घटना नहीं होती है तो माना जा सकता है कि कश्मीर में एक नए युग का सूत्नपात हो गया है.