वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भारत-जापान छू रहे हैं नई ऊंचाइयां
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 31, 2018 08:56 PM2018-10-31T20:56:38+5:302018-10-31T20:56:38+5:30
नरेंद्र मोदी की इस जापान-यात्ना के दौरान 25 समझौते हुए हैं, जिनमें एक यह भी है कि दोनों देशों की मुद्राओं का 75 अरब डॉलर तक का लेन-देन सीधा होगा।
पिछले चार साल की भारतीय विदेश नीति पर नजर डालें तो हमारी सरकार पड़ोस और दूर के लगभग सभी देशों में गच्चा खाती दिखाई पड़ती है लेकिन जापान एक ऐसा देश है, जिसके साथ हमारे संबंधों में निरंतर घनिष्ठता बढ़ती जा रही है। 1974 में इंदिराजी के पोखरण परमाणु परीक्षण और फिर अटलजी के परमाणु परीक्षण के बाद दोनों देशों के बीच जबर्दस्त खटास पैदा हो गई थी लेकिन अब जापान भारत में 33.8 अरब डॉलर का विनियोग कर रहा है। यह मॉरीशस और सिंगापुर के बाद सबसे ज्यादा है। दोनों देशों के प्रधानमंत्नी पिछले चार-सवा चार साल में 12 बार मिल चुके हैं।
नरेंद्र मोदी की इस जापान-यात्ना के दौरान 25 समझौते हुए हैं, जिनमें एक यह भी है कि दोनों देशों की मुद्राओं का 75 अरब डॉलर तक का लेन-देन सीधा होगा। उसमें डॉलर के माध्यम की जरूरत नहीं होगी। डॉ। मनमोहन सिंह के कार्यकाल में तय हुई 3 अरब डॉलर की यह राशि 75 अरब तक पहुंच गई।
अब दोनों देश मिलकर एशिया और अफ्रीका के देशों में अनेक संयुक्त उपक्रम शुरू करेंगे। यह एक तरह से चीन की ओबोर योजना का रचनात्मक जवाब होगा। दोनों देशों के बीच फौजी सहयोग बढ़ाने पर भी समझौता हुआ है। अब दोनों देशों के विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों की नियमित बैठकें भी हुआ करेंगी। ‘दिल्ली-मुंबई औद्योगिक बरामदा’ के तहत 90 अरब डॉलर की रेल और सड़क बनाने में जापान का सक्रिय सहयोग रहेगा।
लगभग 1500 किमी का यह बरामदा भारत की औद्योगिक प्रगति में अपूर्व योगदान करेगा। मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन तो बन ही रही है। भारत और जापान, दोनों ही अपनी परंपरा पर गर्व करते हैं। इस दृष्टि से जो समझौता योग, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा आदि क्षेत्नों में सहयोग के लिए हुआ है, वह अन्य देशों के लिए भी अनुकरणीय है। इस भारत-जापान घनिष्ठता को अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का उत्साहपूर्ण समर्थन है, क्योंकि प्रशांत महासागर क्षेत्न में चीन के वर्चस्व पर यह मित्नता ही कुछ लगाम लगा सकती है।