वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: विषमता पर प्रतिबंध क्यों नहीं?

By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 22, 2020 07:09 AM2020-01-22T07:09:02+5:302020-01-22T07:09:02+5:30

भारत में हमारी सरकारें कमाल के आंकड़े उछालती रहती हैं. वे अपनी पीठ खुद ही ठोंकती रहती हैं. वे दावे करती हैं कि इस साल में उन्होंने इतने करोड़ लोगों को गरीबी रेखा के ऊपर उठा दिया है. इतने करोड़ लोगों में साक्षरता फैला दी है लेकिन दावों की असलियत तब उजागर होती है, जब आप शहरों की गंदी बस्तियां और गांवों में जाकर आम आदमियों की परेशानियों से दो-चार होते हैं.

Ved Pratap Vaidik blog: Why not ban inequality?ऑक्सफैम की ताजा रपट ने मुङो चौंका दिया है. उसके मुताबिक भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास देश के 70 प्रतिशत लोगों से ज्यादा पैसा है. ज्यादा याने क्या? इन एक प्रतिशत लोगों के पास 70 प्रतिशत लोगों के पास जितना प | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: विषमता पर प्रतिबंध क्यों नहीं?

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (Image Source: Pixabay)

ऑक्सफैम की ताजा रपट ने मुङो चौंका दिया है. उसके मुताबिक भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास देश के 70 प्रतिशत लोगों से ज्यादा पैसा है. ज्यादा याने क्या? इन एक प्रतिशत लोगों के पास 70 प्रतिशत लोगों के पास जितना पैसा है, उससे चार गुना ज्यादा है. सारी दुनिया के हिसाब से देखें तो हाल और भी बुरा है. दुनिया के 92 प्रतिशत की संपत्ति से दुगुना पैसा दुनिया के सिर्फ एक प्रतिशत लोगों के पास है. दूसरे शब्दों में दुनिया में जितनी अमीरी बढ़ रही है, उसके कई गुना अनुपात में गरीबी बढ़ रही है.

भारत में हमारी सरकारें कमाल के आंकड़े उछालती रहती हैं. वे अपनी पीठ खुद ही ठोंकती रहती हैं. वे दावे करती हैं कि इस साल में उन्होंने इतने करोड़ लोगों को गरीबी रेखा के ऊपर उठा दिया है. इतने करोड़ लोगों में साक्षरता फैला दी है लेकिन दावों की असलियत तब उजागर होती है, जब आप शहरों की गंदी बस्तियां और गांवों में जाकर आम आदमियों की परेशानियों से दो-चार होते हैं.

आप पाते हैं कि भारत के शहरी, शिक्षित और ऊंची जातियों के 20-25 करोड़ लोगों को आप छोड़ दें तो 100 करोड़ से भी ज्यादा लोगों के पास रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा और शिक्षा की न्यूनतम सुविधाएं भी नहीं हैं.

सच्चाई तो यह है कि इन्हीं वंचित लोगों के खून-पसीने की कमाई से देश में बड़ी पूंजी पैदा होती है और उस पर मुट्ठीभर लोग कब्जा कर लेते हैं. समाजवाद इसी बीमारी का इलाज था लेकिन वह भी प्रवाह पतित हो गया. अब समाजवाद के पुरोधा देश भी पूंजीवाद और उपभोक्तावाद के पैरोकार बन गए हैं.

इस समय देश को आर्थिक प्रगति की जितनी जरूरत है, उससे ज्यादा जरूरत आर्थिक समानता की है. यदि संपन्नता बंटेगी तो लोग ज्यादा खुश रहेंगे, स्वस्थ रहेंगे. वे ज्यादा उत्पादन करेंगे. उनमें आत्मविश्वास बढ़ेगा. सरकार चाहे तो पूरे देश में नागरिकों की आमदनी में, वेतन में, खर्च में एक और दस का अनुपात बांध दे. फिर देखें कि अगले 5-10 साल में ही चमत्कार होता है या नहीं?
 

Web Title: Ved Pratap Vaidik blog: Why not ban inequality?ऑक्सफैम की ताजा रपट ने मुङो चौंका दिया है. उसके मुताबिक भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास देश के 70 प्रतिशत लोगों से ज्यादा पैसा है. ज्यादा याने क्या? इन एक प्रतिशत लोगों के पास 70 प्रतिशत लोगों के पास जितना प

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