वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: इस गठबंधन को टूटना ही था
By वेद प्रताप वैदिक | Published: June 6, 2019 09:09 PM2019-06-06T21:09:25+5:302019-06-06T21:09:25+5:30
मायावती की सीटें तो शून्य से 10 हो गईं लेकिन अखिलेश जहां के तहां रह गए. 50-60 सीटें सपना बनकर रह गईं. अखिलेश में असीम संभावनाएं हैं लेकिन अपने पिता और चाचा के अपमान का फल उ.प्र. के यादवों ने उन्हें चखा दिया. इस समय उत्तर प्रदेश में अखिलेश से बढ़िया कोई अन्य नेता नहीं है.
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन यदि चुनावी हार के बाद भी चलता रहता तो आश्चर्य होता. अब उत्तर प्रदेश की ये दोनों प्रमुख पार्टियां राज्य विधानसभा के 13 उप-चुनाव अलग-अलग लड़ेंगी और हो सकता है कि एक-दूसरे से टक्कर लेते हुए भी लड़ें. खुशी की बात यह है कि मायावती और अखिलेश ने एक-दूसरे पर कोई व्यक्तिगत प्रहार नहीं किया और आशा की कि उनके आपसी संबंध अच्छे बने रहेंगे.
यह सही समय है, जब इन दोनों पार्टियों के नेताओं को सोचना चाहिए कि वे राजनीति में क्यों हैं ? क्या ये दोनों नेता जातिवाद की माया से मुक्त हो सकते हैं ? यह ठीक है कि अखिलेश अपने पिता मुलायम सिंह और मायावती अपने गुरु कांशीराम के कारण राजनीति में आए और उन्हें उनके कारण ही नेता बनने का मौका मिला लेकिन वे दोनों कैसी राजनीति कर रहे हैं ? दोनों जातिवादी राजनीति कर रहे हैं. एक पिछड़ों को अटकाए हुए है और दूसरी अनुसूचितों को जमाए हुए हैं. दोनों डॉ. लोहिया और डॉ.आंबेडकर की माला जपते हैं.
शायद दोनों को पता नहीं है कि लोहिया और डॉ. आंबेडकर, दोनों ही भारत से जातिवाद का समूल नाश चाहते थे. डॉ. आंबेडकर की पुस्तक का नाम था.‘जाति का समूल नाश’. लोहियाजी ने भी ‘जात तोड़ो’ आंदोलन चलाया था. लेकिन अखिलेश और मायावती ने लोहिया और आंबेडकर के सिद्धांतों को शीर्षासन करवा दिया है. उनकी जातिवादी राजनीति 2019 के चुनाव में मात खा गई है.
मायावती की सीटें तो शून्य से 10 हो गईं लेकिन अखिलेश जहां के तहां रह गए. 50-60 सीटें सपना बनकर रह गईं. अखिलेश में असीम संभावनाएं हैं लेकिन अपने पिता और चाचा के अपमान का फल उ.प्र. के यादवों ने उन्हें चखा दिया. इस समय उत्तर प्रदेश में अखिलेश से बढ़िया कोई अन्य नेता नहीं है. यदि वह लोहिया और आंबेडकर के मार्ग पर चलें और सप्तक्रांति के लिए जन-आंदोलन का रास्ता पकड़ें तो वे लोकप्रिय हो सकते हैं. जिस प्रदेश ने नेहरू, इंदिराजी और अटलजी जैसे नेता दिए हैं, वही शायद 21 वीं सदी के किसी बड़े नेता को देगा.