वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः सुषमा जैसा कोई और नहीं
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 22, 2018 12:07 PM2018-11-22T12:07:52+5:302018-11-22T12:07:52+5:30
यदि उनको विदेश मंत्री के तौर पर स्वतंत्रतापूर्वक काम करने दिया जाता तो वे पिछले चार साल में भारतीय विदेश नीति में जान फूंक देतीं.
विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने मेरे शहर इंदौर में घोषणा की कि वे अब चुनावी राजनीति से संन्यास ले रही हैं, क्योंकि उनकी किडनी उनका साथ नहीं दे रही है. सुषमाजी के असंख्य प्रशंसकों को यह सुनकर गहरा आघात लग रहा है. 1999 में जब 40 सांसदों का एक प्रतिनिधि मंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलजी ने पाकिस्तान भेजा तो उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि मैं भी उसके साथ जाऊं और पाकिस्तान के नेताओं से सबका परिचय करवाऊं. उन दिनों सुषमा जी दिल्ली के मुख्यमंत्री-पद से मुक्त हुई थीं. वे हमारे साथ थीं.
जब मैंने उनका परिचय तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और विपक्ष की नेता बेनजीर भुट्टो से करवाया तो उनसे मैंने कहा कि ‘‘आप भारत की भावी प्रधानमंत्री से मिलिए. यह मेरी छोटी बहन हैं.’’ बेनजीर जब भारत आईं तो उन्होंने हवाई अड्डे से फोन कर मुझसे कहा कि आपकी ‘उस बहन’ से जरूर मिलना है. उस दिन सुषमाजी का जन्मदिन था. बेनजीर सबसे पहले गुलदस्ता लेकर उनके घर पहुंचीं. मैं आज भी यह मानता हूं कि भाजपा क्या, देश के किसी भी दल में सुषमाजी-जैसा कोई और नहीं है.
यदि उनको विदेश मंत्री के तौर पर स्वतंत्रतापूर्वक काम करने दिया जाता तो वे पिछले चार साल में भारतीय विदेश नीति में जान फूंक देतीं. प्रकाशवीरजी शास्त्री और अटलजी के बाद मैं सुषमा स्वराज को देश का महानतम वक्ता मानता हूं. वे भाजपा की अमूल्य धरोहर हैं.
कई देशों के प्रधानमंत्रियों और विदेश मंत्रियों, जिनसे सुषमाजी ने संवाद किया है, ने मुझसे उनकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की है. राजनीति के कीचड़ में सुषमा जी का आजीवन बेदाग रहना अपने आप में विलक्षण उपलब्धि है. वे चुनावों से चाहे संन्यास ले लें, लेकिन उन्हें कोई भी घर नहीं बैठने देगा. उनके राजनीतिक अनुभव, ज्ञान और विलक्षण वक्तृत्व का लाभ उठाने में भारत राष्ट्र कभी कोताही नहीं करेगा. उनके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करता हूं.