वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हिंसा-प्रतिहिंसा का रास्ता खतरनाक

By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 8, 2021 09:04 AM2021-10-08T09:04:45+5:302021-10-08T09:04:45+5:30

लखीमपुर खीरी हत्याकांड से सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं, सारे देश में लोगों ने गहरा धक्का महसूस किया है. उत्तर प्रदेश सरकार के आचरण पर भी सवाल उठ रहे हैं.

Ved Pratap Vaidik blog: Lakhimpur Khiri violence and its consequences | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हिंसा-प्रतिहिंसा का रास्ता खतरनाक

लखीमपुर हिंसा और उठते सवाल

लखीमपुर-खीरी में जो कुछ हुआ, वह दर्दनाक तो है ही, शर्मनाक भी है. शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे किसानों पर कोई मोटर गाड़ियां चढ़ा दे, उनकी जान ले ले और उन्हें घायल कर दे, ऐसा जघन्य कुकर्म तो कोई डाकू भी नहीं करना चाहेगा. लेकिन यह एक केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के काफिले ने किया. 

यह तो जांच से पता चलेगा कि किसानों पर कारों से जानलेवा हमला किन्होंने किया या किनके इशारों पर किया गया लेकिन यह भी सत्य है कि कोई मामूली ड्राइवर इस तरह का भीषण हमला क्यों करेगा? उसकी हिम्मत कैसे पड़ेगी? लेकिन देखिए, किस्मत का खेल कि उन कारों के दो ड्राइवर तो तत्काल मारे गए और किसानों की भीड़ ने भाजपा के दो अन्य कार्यकर्ताओं को भी तत्काल मौत के घाट उतार दिया. 

इसे यों भी कहा जा रहा है कि जैसे को तैसा हो गया. लेकिन दोनों पक्षों ने खून-खराबे का यह रास्ता चुना, यह दोनों पक्षों की निकृष्टता का सूचक है. यह थोड़े संतोष का विषय है कि किसान नेता राकेश टिकैत की मध्यस्थता के कारण हताहत किसानों और मंत्री पक्ष के लोगों को उत्तर प्रदेश की सरकार बड़ा मुआवजा और नौकरी देने पर राजी हो गई है लेकिन आश्चर्य की बात है कि स्थानीय पुलिस हत्याकांड को होते हुए देखती रही और वह कुछ न कर सकी. 

जाहिर है कि इस हत्याकांड से सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं, सारे देश में लोगों ने गहरा धक्का महसूस किया है. कृषि-कानूनों को डेढ़ साल तक ताक पर रखे जाने के बावजूद किसान नेता रास्ते रोक रहे हैं और हिंसा-प्रतिहिंसा पर उतारू हो रहे हैं. 

जाहिर है कि बड़े किसानों के इस आंदोलन को आम जनता और औसत किसानों का जैसा समर्थन मिलना चाहिए था, नहीं मिल रहा है. फिर भी उनके साहस की दाद देनी पड़ेगी कि वे इतने लंबे समय से अपनी टेक पर डटे हुए हैं. यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार जरूर है लेकिन रास्ते रोकने से आम लोगों को जो असुविधाएं हो रही हैं, उनके कारण इस आंदोलन की छवि पर आंच आ रही है और सर्वोच्च न्यायालय को इस पर अप्रिय टिप्पणी भी करनी पड़ी है. 

उधर उत्तर प्रदेश सरकार के आचरण पर भी सवाल उठ रहे हैं. उसने कई विपक्षी नेताओं को भी लखीमपुर जाने से रोका है और कुछ को गिरफ्तार कर लिया है. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को अपने केंद्रीय मंत्री और पार्टी-कार्यकर्ताओं के साथ भी निर्भीकतापूर्वक पेश आना चाहिए. उन्हें कुछ माह बाद ही वोट मांगने के लिए जनता के सामने अपनी झोली पसारनी है.

Web Title: Ved Pratap Vaidik blog: Lakhimpur Khiri violence and its consequences

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