ब्लॉगः मतदान के प्रति बड़े शहरों में बेरुखी क्यों ?

By पंकज चतुर्वेदी | Published: May 16, 2023 03:38 PM2023-05-16T15:38:49+5:302023-05-16T15:39:02+5:30

15 लाख 39 हजार 822, लेकिन इनमें से भी मात्र 36.81 प्रतिशत लोग ही वोट डालने गए। यहां से विजेता मेयर पद की प्रत्याशी को 350905 वोट मिले अर्थात कुल मतदाता के महज 22  फीसदी की पसंद का मेयर। 

UP civic elections Why the indifference towards voting in big cities | ब्लॉगः मतदान के प्रति बड़े शहरों में बेरुखी क्यों ?

ब्लॉगः मतदान के प्रति बड़े शहरों में बेरुखी क्यों ?

दिल्ली से सटे गाजियाबाद का एक ऊंची इमारतों  वाला इलाका है – क्रॉसिंग रिपब्लिक, जहां 29 हाउसिंग सोसायटी हैं। साक्षरता दर लगभग शत-प्रतिशत। यहां कुल 7358 मतदाता पंजीकृत हैं। उत्तर प्रदेश में दूसरे चरण के नगर निगम चुनाव में इनमें से महज 1185 लोग वोट डालने गए। कोई 16 फीसदी। वैसे तो पूरे नगर निगम क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या किसी लोकसभा सीट से कम नहीं है – 15 लाख 39 हजार 822, लेकिन इनमें से भी मात्र 36.81 प्रतिशत लोग ही वोट डालने गए। यहां से विजेता मेयर पद की प्रत्याशी को 350905 वोट मिले अर्थात कुल मतदाता के महज 22  फीसदी की पसंद का मेयर। 

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनाव में दो चरणों में संपन्न 17 नगर निगमों में चुनाव का मतदान बहुत ही निराशाजनक रहा। अयोध्या में मतदान हुआ- 47.92 प्रतिशत और विजेता को इसमें से भी 48.67  प्रतिशत वोट ही मिले। बाकी बरेली में 41.54 प्रतिशत वोट पड़े और विजेता को उसमें से भी साढ़े सैंतालिस प्रतिशत मिला। कानपुर में 41.34 प्रतिशत मतदान हुआ और विजेता को उसका भी 48 फीसदी मिला। 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में तो मतदान 34.6  फीसदी ही हुआ और विजेता को इसका आधा भी नहीं मिला। प्रधानमंत्रीजी के संसदीय क्षेत्र बनारस के शहर के मात्र 38.98 फीसदी लोग ही वोट डालने निकले और मेयर बन गए नेताजी को इसका 46 प्रतिशत मिला। देश की सियासत का सिरमौर रहे इलाहबाद अर्थात प्रयागराज में तो मतदान महज 31.35 फीसदी रहा और इसमें से भी 47 प्रतिशत पाने वला शहर का मेयर हो गया। 

राजधानी लखनऊ के हाल तो बहुत बुरे थे, वहां पड़े मात्र 35.4 फीसदी वोट और विजेता को मिले इसमें से 48 फीसदी।  सभी 17 नगर निगम में सहारनपुर के अलावा कहीं भी आधे लोग वोट डालने निकले नहीं और विजेता को भी लगभग इसका आधा या उससे कम मिला। जाहिर है विजयी मेयर भले ही तकनीकी रूप से बहुमत का है लेकिन ईमानदारी से यह शहर के अधिकांश लोगों का प्रतिनिधित्व करता ही नहीं है। गौर करने वाली बात है कि जो शहर जितना बड़ा है, जहां विकास और जन सुविधा के नाम पर सरकार के बजट का अधिक हिस्सा खर्च होता है, जहां साक्षरता दर, प्रति व्यक्ति आय आदि औसत से बेहतर है वहीं के लोग वोट डालने निकले नहीं।  
 

Web Title: UP civic elections Why the indifference towards voting in big cities

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