ब्लॉग: इंदिरा गांधी की राजनीतिक विरासत और प्रियंका के मजबूत इरादे

By डॉ उदित राज | Published: October 25, 2021 02:04 PM2021-10-25T14:04:26+5:302021-10-25T14:04:26+5:30

हाल में प्रियंका गांधी की दृढता, कार्यक्षमता और प्रदर्शन को देखते हुए कहा जा सकता है कि वे अपनी दादी इंदिरा गांधी के पदचिह्नों पर चल रही हैं.

Udit Raj Blog Blog: Indira Gandhi's Political Legacy and Priyanka Gandhi Strong Intentions | ब्लॉग: इंदिरा गांधी की राजनीतिक विरासत और प्रियंका के मजबूत इरादे

इंदिरा गांधी के पदचिह्नों पर प्रियंका गांधी!

यह जरूरी नहीं कि औलाद अपनी पूर्वज की ऊँचाई तक पहुच सके. बहुत सारे  मामलों में दूर- दूर तक कोई लक्षण नहीं होते जो पूर्वजों में हुआ करते हो. हाल में प्रियंका गांधी की कार्यक्षमता और प्रदर्शन को देखते हुए कहा जा सकता है कि अपनी दादी इंदिरा गांधी के पदचिह्नों पर चल रही हैं. 

हाथरस में दलित बच्ची की बलात्कार- हत्या मामले में जो बहादुरी और विवेक दिखाई उससे इन्दिरा गांधी के लक्षण दिखने लगे थे. इंदिरा गांधी बेल्छी - बिहार मारे गए दलितों को विषम परिस्थितियों में देखने ग़ई थीं जो राष्ट्रीय मुद्दा बना। हाल में लखीमपुर खीरी में कुचले गए किसान और आगरा में पुलिस कस्टडी में दलित की हत्या के मुद्दे को जिस तरह से उठाया और लड़ा, कोई संशय नहीं रह गया कि ये दूसरी इंदिरा गांधी नहीं हैं. 

हाथरस के मामले में जाते वक़्त जब देखा कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को पुलिस लाठियों से पीट रही थी तो बिना समय गवाए दौड़कर पुलिस के लाठी -डंडे के सामने खड़ी हो गईं  और उनका बचाव हुआ . यह असाधारण साहसिक कदम था. एक घटना मुझे और स्मरण में आ रहा है कि सपेरे के साथ बैठ कर सांप को बहुत सहजता से देखा और छुआ जबकि साधारण व्यक्ति दूर से ही देख कर डर जाता है.

सफलता व्यक्ति के दृढ़ता, बौद्धिक क्षमता और दूरदर्शिता पर निर्भर करता ही है लेकिन कई बार परिस्थितियों की भूमिका कहीं ज्यादा होती है. प्रियंका गांधी जिन परिस्थितियों में लड़ रही हैं. परिस्थितियाँ पक्ष में नहीं दिखती . यहाँ पर कांग्रेस पार्टी के प्रादुर्भाव, सफलता एवं वर्तमान पर चर्चा किये बगैर मूल्यांकन नही किया जा सा सकता है. 

कांग्रेस पार्टी की स्थापना विदेशी ताकत- अंग्रेजों  के खिलाफ थी और उस समय जाति-धर्म और क्षेत्रवाद आड़े नहीं आया . स्वतंत्रता आन्दोलन में कमोवेश  सबकी भागीदारी थी इस तरह से अपनों से लड़ने की इतनी बड़ी चुनौती नहीं थी. अंग्रेज क्रूर और तानाशाह जरुर थे जो सामने दिखता था उनके खिलाफ कांग्रेस पार्टी लड़ती गयी और जीतती गयी.

सबसे ज्यादा चुभने वाली वो बात है कि जो आज कुछ लोग कहते हैं कि कांग्रेस ने क्या किया? जबसे भारत भूमि पे मानव इतिहास की जानकारी है, स्वतंत्रता आन्दोलनकारियों कि तुलना में न पहले की पीढ़ी और बाद की उतनी क़ुर्बानी दी हो. अंग्रेजी साम्राज्यवाद के बारे में कहा जाता था कि उनके राज में सूरज कभी अस्त नहीं होता था. जब भविष्य के नतीजे के बारे में ना पता हो तो ऐसे में अपनी जिंदगी जेल या मौत के हवाले कर देना कोई साधारण बात नहीं है. 
नेहरु जी लगभग नौ साल जेल में थे और गांधी जी सात साल .  क्या इनको पता था कि कभी जेल से छूटेंगे ? उस समय किसी को भी भविष्य का अनुमान नहीं था. प्रियंका गांधी ऐसी वारिस की उपज हैं .

वर्तमान में जिनके खिलाफ लडाई है उन्होंने झूठ, दुष्प्रचार, धनशक्ति, मीडिया नियंत्रण, धोखेबाजी और जासूसी का सहारा लिया है. अंग्रेज संशाधनो का शोषण करने आये थे वो दिख रहा था और उनको रोकने जो आता था बल प्रयोग और विभाजन कि नीति अपनाते थे. कुछ मायनों में वो लड़ाई सीधी थी अब तो आंतरिक कुटिल - कमीन शक्तियों से लड़ना पड़ रहा है.

देश में तमाम क्षेत्रीय दल और राजनेता हैं लेकिन प्रमुख मुद्दे पर क्यूँ नही कुछ करते और बोलते हैं. चीन भारत में घुसपैठ करके बैठा हुआ है . क्या राहुल गांधी की ही चिंता है? आक्सीजन,  दवा व बेड न मिलने से लाखों लोग मर गए. कांग्रेस पार्टी के अलावा क्षेत्रीय पार्टियों ने इस मुद्दे को ठीक से उठाया भी नहीं. 

संविधान बचाने की बात, सरकारी संपत्ति की बिक्री, मानवाधिकार का हनन और सरकारी संस्थाओं का अतिक्रमण.. क्या ये चिंता केवल कांग्रेस की है? ऐसा भी  नहीं है कि क्षेत्रीय दल या सिविल सोसायटी को बेचैनी नहीं है. लेकिन उनमें हिम्मत नहीं है. एक सवाल बार- बार किया जाता है कि कांग्रेस पार्टी क्या कर रही है? 

यह बता देना चाहिए कि आजादी से लेकर 2014  की परिस्थिति  में ही सबको राजनीति करने का अनुभव व तरीक़ा था. लेकिन उसके बाद परिस्थितियाँ इतनी ज्यादा बदल गयीं जिसमे विपक्ष डर और सहम गया . जिसने आवाज़ उठायी, उनके खिलाफ इडी , इनकम टैक्स , सी बी आई आदि मशीनरी  का बर्बरता से इस्तेमाल किया गया. इसे और बेहतर समझने के लिए 2012 -12 के अन्ना आन्दोलन पर नजर डालनी पड़ेगी. 

रामलीला मैदान के 9 दिन के आंदोलन को लगभग सारे चैनल ने सरकार के खिलाफ लाइव दिखाया. आज हालात यह है कि विपक्ष के नेता राहुल गांधी के प्रेस कांफ्रेंस को भी लाइव नहीं दिखाया जाता  .  उस समय के अखबारों को उठाकर देखा जाय तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन जी की खबर ना के बराबर होती थी और लगभग 2011 से विभिन्न मुद्दे कोल व 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के मुद्दे पर उस समय की सरकार के खिलाफ लिखने के अलावा कोई और खबर शायद ही होती थी. 

बाद में दोनो आरोप निराधार साबित हुए. यह जवाब उनके लिए है जो कहते हैं कि कांग्रेस क्या कर रही है ? उनको यह बात और जाननी चाहिए कि उस समय की सिविल सोसायटी अन्ना आन्दोलन की ताकत थी, जो आज बिल में घुस गयी है.

शासन-प्रशासन और विकास को लेकर राजनीति होती तो कांग्रेस 2019 में ही सरकार बना लेती और भाजपा चुनाव न जीत पाती. संघ की विचारधारा की राजनितिक सत्ता सामाजिक और सांस्कृतिक के मुकाबले से तुच्छ है और यहीं पर विपक्ष कमजोर पड़  जाता है. राम मंदिर बनाना , धार्मिक आयोजन, इस्लाम से हिन्दू धर्म की रक्षा , भारत सोने की चिड़िया था और पुनः बनाना आदि के प्रचार के सामने रोजगार, विकास, शिक्षा व स्वास्थ्य आदि महत्वहीन लगते है. 

आम जनता को स्वर्ग व नर्क सपना दिखाकर भ्रमित व ब्रेन वाश कर दिया है .इतनी विषम परिस्थितियों से इंदिरा गांधी को भी जूझना न पड़ा होगा जितना कि प्रियंका गांधी को. यह कहना कि प्रियंका गांधी इंदिरा गांधी के प्रतिमुर्ति हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. एक दिन इंदिरा गांधी की स्थान लेंगी, ऐसा लगने लगा है.

(लेखक पूर्व सांसद , कांग्रेस प्लानिंग कमिटी के सदस्य एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं.)

Web Title: Udit Raj Blog Blog: Indira Gandhi's Political Legacy and Priyanka Gandhi Strong Intentions

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