अंकों की ये भूख खौफनाक दिशा में जा रही है!

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: June 25, 2025 07:47 IST2025-06-25T07:47:06+5:302025-06-25T07:47:08+5:30

यदि कोई बच्चा भूगर्भशास्त्र में रुचि रखता है और आप उसे अंतरिक्ष विज्ञान पढ़ाना चाहें तो क्या होगा?

This hunger for literacy scores is heading in a dangerous direction | अंकों की ये भूख खौफनाक दिशा में जा रही है!

अंकों की ये भूख खौफनाक दिशा में जा रही है!

दो खबरें आमने-सामने हैं. एक खबर ने मन उल्लसित कर दिया है कि मिजोरम और गोवा के बाद त्रिपुरा तीसरा पूर्ण साक्षर राज्य बन गया है. इसी साल मई में मिजोरम देश का पहला साक्षर राज्य बना था और गोवा दूसरा साक्षर राज्य बना. नव भारत साक्षरता कार्यक्रम के तहत लक्ष्य रखा गया है कि देश के सभी राज्य पूर्ण रूप से साक्षर हो जाएं. राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के तहत यह मानक तय किया गया है कि जिन राज्यों में साक्षरता का प्रतिशत 95 से ज्यादा हो जाता है, उन्हें पूर्ण साक्षर राज्य माना जाएगा.

मिजोरम की साक्षरता दर 98.2 पर पहुंच चुकी है, गोवा की साक्षरता दर अभी 99.72 तथा त्रिपुरा की साक्षरता दर 95.6 प्रतिशत है. निश्चय ही कई राज्य इस सूची में जल्दी ही शामिल होने वाले हैैं. यह बदलते भारत की तस्वीर है. लेकिन जो दूसरी खबर है, वह भयभीत कर रही है. महाराष्ट्र के सांगली जिले में एक पिता ने अपनी 16 वर्षीय बेटी को 12वीं की परीक्षा में कम नंबर लाने के कारण पीट-पीट कर मार डाला! आखिर नंबरों की यह भूख इतनी खौफनाक क्यों बनती जा रही है?

हर साल परीक्षा के बाद असफल कई विद्यार्थी या उम्मीद से कम नंबर लाने वाले विद्यार्थी जीवन का अंत कर लेते हैं. कोचिंग नगरी कोटा में न जाने कितने बच्चे मौत को गले लगा लेते हैं. समाज, परिवार और देश के सामने यह एक गंभीर सवाल है. छोटे-छोटे स्तरों पर इस समस्या से निपटने की कोशिशें हालांकि जारी हैं लेकिन समस्या का निदान नहीं हो रहा है. यह केवल मनोविज्ञान या भय के वातावरण का अंधियारा नहीं है.

यह खासकर माता-पिता और परिवार की सोच का विषय है. आज बच्चों से ज्यादा प्रतिस्पर्धा माता-पिता कर रहे हैं. पड़ोसी के बच्चे को 98 प्रतिशत आया है तो हमारे बच्चे को 99 प्रतिशत लाना चाहिए! यही सोच सबसे ज्यादा घातक है. बच्चों का बचपन छीन लिया गया है.

यह देखने की कोई कोशिश ही नहीं होती है कि बच्चे की अभिरुचि क्या है. ईश्वर ने उसे कौन सा गुण ज्यादा दिया है. माता-पिता न जानने की कोशिश करते हैं और न ही बच्चों से बात करते हैं कि वह क्या चाहता है. ऐसे बहुत से कारण हो सकते हैं, जिससे बच्चा किसी खास विषय में अपेक्षा के अनुरूप नंबर न ला पाए लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं होता है कि उस बच्चे को कुछ आता ही नहीं है. प्रकृति का नियम है कि जो भी इस दुनिया में कदम रखता है, प्रकृति उसे एक न एक खासियत से नवाजती जरूर है.

इसी खासियत को पहचानने की जरूरत है. लोग सही कहते हैं कि यदि सचिन तेंदुलकर के हाथ से बल्ला छीन लिया जाता और उनके हाथ में अभियांत्रिकी के उपकरण थमा दिए जाते तो वे वह तेंदुलकर नहीं होते जो आज हैं. मान लीजिए कोई बच्चा बचपन में बहुत चंचल है और बेवजह दौड़ता रहता हैै तो क्या इस बात पर विचार नहीं किया जाना चाहिए कि उसे ऐसा श्रेष्ठ धावक बना दें कि दुनिया में देश का नाम रौशन करे! लेकिन होता क्या है? उस बच्चे के माता-पिता चाहते हैं कि वह डॉक्टर बने, इंजीनियर बने, प्रबंधक बने.

यदि उसमें सामर्थ्य है तो वह बनेगा लेकिन जितना बेहतर वह धावक बन सकता था, उतना बेहतर किसी और क्षेत्र में शायद वो न कर पाए! प्रतिस्पर्धा के इस युग में ज्यादातर माता-पिता बच्चों के पीछे पड़े रहते हैं कि पढ़ो...पढ़ो...पढ़ो! निश्चय ही पढ़ना बहुत अच्छी बात है. पढ़ाई से ही जीवन संवरता है. शिक्षा से बड़ा और कोई उपहार जीवन के लिए हो ही नहीं सकता लेकिन यह भी तो देखना चाहिए कि बच्चे की रुचि किस विषय में है. यदि कोई बच्चा भूगर्भशास्त्र में रुचि रखता है और आप उसे अंतरिक्ष विज्ञान पढ़ाना चाहें तो क्या होगा?

इसलिए यह बहुत जरूरी है कि माता-पिता बच्चों के साथ समय व्यतीत करें. इससे उन्हें अपने बच्चों को समझने, उनकी रुचि जानने में मदद मिलेगी. लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि अपनी व्यस्तता के कारण वे बच्चों को समय नहीं देते. जब बच्चा मचलता है तो उसके हाथ में मोबाइल थमा देते हैं. फिर बड़े गर्व से पड़ोसियों को बताते हैं कि हमारा बच्चा तो इतना छोटा होते हुए भी धड़ल्ले से मोबाइल चलाता है. उन्हें समझना चाहिए कि बच्चे उत्सुक होते हैं. वे मोबाइल चला रहे हैं तो यह कोई अनोखा काम नहीं है. आप तो उनकी उत्सुकता को सार्थक दिशा दीजिए और उन्हें अपनी प्रकृति व प्रवृत्ति के अनुरूप फलने-फूलने का मौका दीजिए. अपने सपने अपने बच्चों पर मत लादिए!

Web Title: This hunger for literacy scores is heading in a dangerous direction

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