अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: सेक्युलर राज्य पर मंदिर बनाने का दायित्व?

By अभय कुमार दुबे | Published: November 13, 2019 08:53 AM2019-11-13T08:53:04+5:302019-11-13T08:53:04+5:30

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक राजनीतिक दूरंदेशी के कारण भी यह मसला राजनीति के बजाय अदालत के क्षेत्र में संसाधित हुआ है. पिछले साल चुनाव से ठीक पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मोदी की बढ़ती हुई राजनीतिक स्वायत्तता के पर कतरने के लिए मंदिर बनवाने हेतु संसद से कानून पारित करने का दबाव बनाना शुरू किया था.

The responsibility of building a Ram temple Ayodhya on the secular state? | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: सेक्युलर राज्य पर मंदिर बनाने का दायित्व?

अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: सेक्युलर राज्य पर मंदिर बनाने का दायित्व?

अगर सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी हिचक के अयोध्या में विवादित स्थल हिंदू पक्ष को न दे दिया होता, और कुछ किंतु-परंतु जैसा रवैया अपनाया होता, तो क्या होता? क्या उस समय भी ‘यह न किसी की जीत है, न किसी की हार है’माना जाता? हम सब जानते हैं कि उस सूरत में क्या होता. धर्म संसद बैठ रही होती, अदालत में फैसले की समीक्षा करने की याचिकाएं डाली जा रही होतीं, राजनीति गरमाई जा रही होती, जनांदोलन की तैयारी हो रही होती और मोदी सरकार पर दबाव डाला जा रहा होता कि वह अब अपने बहुमत का इस्तेमाल मंदिर के लिए कानून बनाने में करे. इस लिहाज से यह जरूर कहा जाना चाहिए कि फैसला कानून की दृष्टि से कैसा भी हो, उसने देश की राजनीति को नब्बे के दशक में जाने से बचा लिया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक राजनीतिक दूरंदेशी के कारण भी यह मसला राजनीति के बजाय अदालत के क्षेत्र में संसाधित हुआ है. पिछले साल चुनाव से ठीक पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मोदी की बढ़ती हुई राजनीतिक स्वायत्तता के पर कतरने के लिए मंदिर बनवाने हेतु संसद से कानून पारित करने का दबाव बनाना शुरू किया था. अब यह भेद खुल चुका है कि सरसंघचालक मोहन भागवत ने और फिर भैयाजी जोशी ने अपने भाषणों में यह मांग भाजपा के नेतृत्व से बातचीत किए बिना ही उठा दी थी. उन्हें यकीन था कि भाजपा की सरकार संघ के इस आग्रह से इनकार नहीं कर पाएगी, और इस प्रकार वह अपने ही द्वारा जन्म दी गई पार्टी को और ज्यादा अपने नियंत्रण में ले पाएगा. लेकिन मोदी ने इस प्रश्न पर झुकने से इनकार कर दिया. 

पहले तो वे कुछ दिन तक चुप बैठे रहे, और संघ की पहलकदमी पर रामलीला मैदान को भर दिया गया. नब्बे के दशक की भांति भगवा वस्त्रधारियों को सड़कों पर उतारने की तैयारियां की जाने लगीं. लेकिन, एक जनवरी को अपने एक टीवी इंटरव्यू में मोदी ने साफ इनकार कर दिया. उन्होंने जो कहा उसका मतलब यह था कि जो मामला अदालत में विचाराधीन है, उसे वे कानून बना कर या अध्यादेश ला कर अपने पाले में गेंद खेलने के लिए तैयार नहीं हैं.

मोदी का यह रणनीतिक इनकार आज रंग लाया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने तमाम तर्को के साथ वही फैसला दिया जो बहुसंख्यकवादी शक्तियों को चाहिए था. अगर यही काम संसद द्वारा किया जाता तो विपक्ष को इस मसले पर अपनी गोलबंदी करने का जबरदस्त मौका मिलता. अब अदालती फैसले के कारण भी विपक्ष ठंडा रहने को मजबूर है. वैसे भी पिछले छह साल की संसदीय राजनीति में मुसलमान वोटों को अपनी रणनीति के केंद्र में रखने वाली भाजपा विरोधी पार्टयिां समझ चुकी हैं कि जब तक भाजपा 45-50 फीसदी हिंदू वोटों की गोलबंदी करती रहेगी, तब तक मुसलमान वोटों की प्रभावकारिता शून्य बनी रहेगी. इस लिहाज से भी अयोध्या का मसला विपक्ष के काम का नहीं रह गया था.

जो भी हो, यह फैसला आजादी के बाद हुई उस बहस की याद दिला देता है जिसके केंद्र में सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार था. इस बहस में एक ओर जवाहरलाल नेहरू थे और दूसरी ओर सरदार वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद और के.एम. मुंशी जैसी हस्तियां थीं. प्रश्न यह था कि क्या स्वयं को सेक्युलर कहने वाली सरकार को मंदिर बनवाने का काम हाथ में लेना चाहिए. ध्यान रहे कि इस सवाल पर महात्मा गांधी की राय नेहरू जैसी ही थी. वे मंदिर के जीर्णोद्धार के पक्ष में तो थे, लेकिन चाहते थे कि यह काम सरकारी पैसे और बंदोबस्त के जरिये न हो कर निजी कोष और निजी हाथों द्वारा हो. कुल मिलाकर नेहरू की आपत्तियों के बावजूद इस बहस में पटेल, प्रसाद और मुंशी की जीत हुई. 

भारत सरकार ने ही सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. इस घटना के सात दशक बाद एक बार फिर एक मंदिर बनवाने का काम भारत सरकार को दिया गया है. इस बार यह आदेश सुप्रीम कोर्ट का है. सोमनाथ मंदिर की ही भांति सरकार ट्रस्ट बनाएगी, और फिर उसी के प्रबंधन में मंदिर का निर्माण होगा. आज हम कह सकते हैं कि सोमनाथ वाली बहस का जो फैसला हुआ था, उसके कारण भारतीय सेक्युलरवाद के बुनियादी किरदार को एक खास रुझान मिल गया था.

यहां नेहरू के रवैये में मौजूद एक अंतर्विरोध भी हमें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. उन्हीं के नेतृत्व में भारतीय राज्य ने अंग्रेजों की उस विरासत को अपने कंधों पर ढोना शुरू कर दिया था जिसके मुताबिक देश के हिंदू मंदिरों का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी भी उसी की है. बजाय इसके कि सेक्युलर उसूल के मुताबिक धर्म को राज्य से दूर रखा जाए, भारतीय राज्य और हिंदुओं की धार्मिक गतिविधियों के बीच एक संस्थागत मिला-भेंटी है. यहां मानना होगा कि भारतीय राज्य दूसरे धर्मो की गतिविधियों को भी प्रोत्साहन देता है. इसका एक उदाहरण हज को दी जाने वाली सब्सिडी के रूप में देखा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इस दायित्व को निभाने के बाद भारतीय राज्य का सेक्युलरवाद पक्के तौर पर ‘धार्मिक सेक्युलरवाद’ बन जाएगा. यह है सेक्युलरवाद का विशिष्ट भारतीय संस्करण.

Web Title: The responsibility of building a Ram temple Ayodhya on the secular state?

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