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ब्लॉग: किसानों को वोट बैंक समझे जाने की विडंबना

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 7, 2024 13:54 IST

यह सच है कि कई बार किसानों के कर्ज माफ किए गए हैं और उनकी आर्थिक सहायता भी की गई है, लेकिन अगर यह कहा जाए कि उनकी बुनियादी समस्याओं को हल करने के लिए कुछ नहीं किया गया तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.

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कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह कहना सही है कि किसानों को वोट बैंक नहीं मानना चाहिए और उनके साथ इंसान की तरह व्यवहार किया जाना चाहिए. उन्होंने सोमवार को संसद में यह बात कही. 

दरअसल कृषि मंत्री जब उच्च सदन में कृषि मंत्रालय के कामकाज पर हुई चर्चा पर अपने अधूरे रह गए जवाब को आगे बढ़ा रहे थे, तब कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला ने उन्हें कई बार बाधित करना चाहा और भाजपा सरकार के ऊपर किसानों पर गोलियां चलाने का आरोप लगाया. इसके बाद चौहान ने भी कांग्रेस की विभिन्न सरकारों के शासन काल में किसानों पर गोलियां चलाए जाने की विभिन्न घटनाओं का हवाला देना शुरू कर दिया. 

यह दुर्भाग्य ही है कि संसद में सार्थक चर्चा होने के बजाय इसी तरह कई बार बात आरोप-प्रत्यारोप में उलझ कर रह जाती है. जहां तक किसानों को वोट बैंक नहीं समझे जाने की बात है, कड़वा सच यही है कि प्राय: सारे ही दलों ने किसानों के साथ इंसानों की तरह व्यवहार करने की बजाय उन्हें वोट बैंक ही समझा है. 

यह सच है कि कई बार किसानों के कर्ज माफ किए गए हैं और उनकी आर्थिक सहायता भी की गई है, लेकिन अगर यह कहा जाए कि उनकी बुनियादी समस्याओं को हल करने के लिए कुछ नहीं किया गया तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. बेशक कर्ज माफी और आर्थिक मदद से किसानों को तात्कालिक तौर पर काफी राहत मिलती है लेकिन उनकी दिक्कतों को दीर्घकालिक नजरिये से दूर किए जाने की भी जरूरत है. 

देश में कितने ऐसे किसान हैं जो मृदा परीक्षण करवाते हैं और उसके हिसाब से फसल की बुआई करते हैं? कितने किसानों को वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के बारे में जानकारी दी जाती है? किस साल मानसून कैसा रहेगा और उसके हिसाब से किस फसल की बुआई की जानी चाहिए, इसके बारे में कितने किसानों को जागरूक किया जाता है? किस फसल को वास्तव में कितनी खाद और कीटनाशक की जरूरत है, यह कितने किसानों को पता है? 

अभी होता यह है कि कई किसान अंधाधुंध तरीके से रासायनिक खाद, कीटनाशक डालकर अपने खेतों की सेहत खराब कर डालते हैं. जब तक किसानों को वैज्ञानिक तरीके से खेती के बारे में जानकारी नहीं दी जाएगी और उनकी फसलों को लागत के हिसाब से समुचित मूल्य प्रदान नहीं किया जाएगा, तब तक किसान समस्याओं से जूझते रहेंगे और राजनीतिक दलों द्वारा उन्हें वोट बैंक माने जाने की प्रवृत्ति जारी रहेगी.

टॅग्स :FarmersAgricultural Labor
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