विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: राजनीति से शालीनता घटना चिंताजनक
By विश्वनाथ सचदेव | Updated: July 11, 2024 11:54 IST2024-07-11T11:52:33+5:302024-07-11T11:54:02+5:30
सवाल यह भी उठता है कि आखिर सांसदों या विधायकों का सदन में, और सदन के बाहर भी, व्यवहार कैसा होना चाहिए? इस संदर्भ में मुझे ब्रिटेन के नए और पिछले प्रधानमंत्री के भाषण याद आ रहे हैं. हाल के चुनाव में ब्रिटेन के मतदाताओं ने सरकार पलट दी है.

(प्रतीकात्मक तस्वीर)
हमारा भारत दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना जनतांत्रिक देश है. हमें किसी से जनतांत्रिक परंपराएं सीखने की आवश्यकता नहीं है. जनतंत्र की जड़ें बहुत गहरी है हमारे देश में. लेकिन इसके बावजूद कई बार ऐसा लगता है कि हमारे नेता या तो जनतांत्रिक परंपराओं को निभा नहीं रहे या फिर उन परंपराओं को समझ नहीं रहे.
अब इन्हीं चुनाव की बात करें तो मतदाता ने अपना निर्णय स्पष्ट दिया है: एनडीए गठबंधन सरकार बनाए और इंडिया गठबंधन विपक्ष का दायित्व निभाए. इसके बाद कोई भ्रम नहीं रहना चाहिए, लेकिन अठारहवीं लोकसभा के पहले ही अधिवेशन में संसद के दोनों सदनों में जिस तरह का व्यवहार हमारे सांसदों का रहा है, वह सवालिया निशान तो लगाता ही है कि जनतांत्रिक मूल्यों व परंपराओं के प्रति हम कितने सजग हैं?
सवाल यह भी उठता है कि आखिर सांसदों या विधायकों का सदन में, और सदन के बाहर भी, व्यवहार कैसा होना चाहिए? इस संदर्भ में मुझे ब्रिटेन के नए और पिछले प्रधानमंत्री के भाषण याद आ रहे हैं. हाल के चुनाव में ब्रिटेन के मतदाताओं ने सरकार पलट दी है. कंजरवेटिव पार्टी का शासन मतदाता ने नकार दिया है और लेबर पार्टी को सरकार बनाने का अवसर दिया गया है.
भारतीय मूल के ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने और ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री स्टार्मर ने इस अवसर पर जो भाषण दिए हैं उनमें ऐसा बहुत कुछ है जो बताता है कि राजनेताओं को एक-दूसरे के प्रति किस तरह का व्यवहार करना चाहिए.
अपनी हार को स्वीकार करते हुए ऋषि सुनक ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे इस हार का दायित्व लेते हैं और नई सरकार को ब्रिटेन के हित में काम करने में हर उचित सहयोग देंगे. उन्होंने यह भी स्पष्ट कहा कि “नए प्रधानमंत्री की सफलता हम सबकी सफलता होगी. वे जन-हित के लिए काम करने वाले ऐसे उत्साहित व्यक्ति हैं, जिनका मैं सम्मान करता हूं.’’
ऐसा ही सम्मान प्रधानमंत्री चुने जाने वाले स्टार्मर ने भी ऋषि सुनक के प्रति व्यक्त किया. उन्होंने कहा, “मैं निवर्तमान प्रधानमंत्री को उनकी उपलब्धियों के लिए बधाई देना चाहता हूं. वे हमारे देश के पहले ब्रिटिश एशियाई प्रधानमंत्री थे. इस नाते उन्हें कुछ कर पाने के लिए जो अतिरिक्त प्रयास और मेहनत करनी पड़ी उसे कम करके नहीं आंका जा सकता. हम उसकी प्रशंसा करते हैं. हम उनकी निष्ठा और मेहनत को भी स्वीकारते-समझते हैं.”
यह शब्द ब्रिटेन के उन दो राजनेताओं के हैं जो कल तक चुनावी-मैदान में एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े थे. ऐसा नहीं है कि वहां एक-दूसरे पर राजनेता आरोप-प्रत्यारोप नहीं लगाते. आरोप सब जगह लगते हैं. कुछ कटुता भी होती होगी. लेकिन नेतृत्व से जिस तरह की शालीनता की अपेक्षा होती है, कम-से-कम इस समय तो उनके व्यवहार में वह स्पष्ट दिख रही है.
ऐसा नहीं है कि हमारे यहां विभिन्न दलों के राजनेताओं के बीच पारस्परिक संबंध नहीं होते. ढेरों उदाहरण हैं इस आशय के जिनसे यह पता चलता है कि नीतिगत विरोध का अर्थ दुश्मनी नहीं होता.
लेकिन ऐसे भी उदाहरण कम नहीं है जो बताते हैं कि या तो हमारे नेताओं में पारस्परिक संबंधों वाली परिपक्वता नहीं है या फिर यह कि नेताओं को लगता है कि संबंधों की मधुरता का कोई लक्षण दिख गया तो उनके राजनीतिक हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ जाएगा.