उद्योग जगत का विश्वास अजिर्त करे सरकार
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 16, 2019 07:35 PM2019-06-16T19:35:49+5:302019-06-16T19:35:49+5:30
भारतीय उद्योग महासंघ (सीआईआई) के नए अध्यक्ष विक्रम किलरेस्कर का यह बयान बहुत मायने रखता है कि सरकार तथा उद्योग जगत के बीच विश्वास कायम होना अत्यंत आवश्यक है
भारतीय उद्योग महासंघ (सीआईआई) के नए अध्यक्ष विक्रम किलरेस्कर का यह बयान बहुत मायने रखता है कि सरकार तथा उद्योग जगत के बीच विश्वास कायम होना अत्यंत आवश्यक है. उनका बयान उस मूल कारण को दर्शाता है जो देश में औद्योगिक विकास की सुस्त रफ्तार के लिए जिम्मेदार है. हालांकि शुक्रवार को सीआईआई की बैठक को संबोधित करते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने उद्योग जगत को भरोसा दिलाने का प्रयास किया कि सरकार का उस पर पूरा विश्वास है.
लेकिन ऐसे बयान उद्योगपतियों में सरकार के प्रति विश्वास पैदा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. किसी भी देश के विकास के लिए कुटीर उद्योग से लेकर बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयां बेहद जरूरी हैं. जीडीपी में उद्योगों का योगदान जितना बढ़ेगा, देश के विकास की रफ्तार भी उतनी ही तेजी से बढ़ेगी. औद्योगिक क्षेत्र में निवेश के लिए जरूरी है कि सरकार अनुकूल माहौल बनाए. यदि कोई करोड़ों-अरबों रु. लगाकर कोई उद्योग शुरू करना चाहता है तो उसकी यह भी अपेक्षा रहती है कि उद्योग शुरू करने के लिए उसे सरकारी दफ्तरों के लंबे समय तक चक्कर न काटने पड़ें,
सरकारी बैंकों से उसे कर्ज आसानी से मिल जाए, नियमों का विशाल जाल न हो. यदि उसने तमाम बाधाओं को पार कर किसी तरह औद्योगिक इकाई स्थापित कर भी ली तो बाद में अलग-अलग सरकारी महकमों के अधिकारी जांच, निरीक्षण या अन्य किसी बहाने से उद्यमियों को परेशान करते ही रहते हैं. लालफीताशाही से औद्योगिक क्षेत्र को राहत देने की घोषणाएं बार-बार होती हैं, मगर उस दिशा में जो भी कदम उठाया जाता है, उसमें ढेर सारी शर्तो का जाल रहता है. ऐसा लगता है कि सरकार का उद्योगपतियों पर भरोसा नहीं है.
वह शायद यह मानसिकता बनाकर बैठी है कि उद्योगपति किसी न किसी रूप में नियम तोड़ेंगे और सरकार को धोखा देंगे. दूसरी ओर उद्योग जगत भी सरकार पर भरोसा नहीं करता. उसके अनुभव इतने खराब हैं कि उसे लगता है सरकार किसी न किसी तरह उद्योगपतियों को दबाव में रखना चाहती है. किसी भी देश के लिए ऐसी स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण होती है. हमारे देश में कृषि रोजगार का बड़ा साधन जरूर है मगर उसमें बड़े उद्योगों की तरह निवेश आकर्षित करने और रोजगार सृजन करने की क्षमता कम होती जा रही है. हमारे देश में तीन चौथाई नौकरियां सरकार तथा निजी क्षेत्र के उद्योग पैदा करते हैं. केंद्र तथा राज्य सरकारों ने नई भर्तियों पर लंबे समय से पाबंदी लगा रखी है. ऐसे में निजी क्षेत्र के उद्योगों तथा व्यवसायों पर ही रोजगार सृजित करने का सबसे ज्यादा दारोमदार है. सरकार जब तक उद्योग व्यवसाय के अनुकूल नीतियां बनाकर उन पर ईमानदारी से अमल सुनिश्चित नहीं करवाती तब तक नए उद्योग तथा व्यवसाय पनप नहीं सकते. जरूरी है कि सरकार उद्योग जगत को विश्वास में लेकर नीतियां व कानून बनाए तथा उन पर असरदार ढंग से अमल करे. तभी उद्योग जगत का सरकार के प्रति विश्वास बहाल होगा.