प्रकाश बियाणी का ब्लॉग: निराश और हताश हैं देश के कारोबारी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 8, 2019 11:11 AM2019-08-08T11:11:36+5:302019-08-08T11:11:36+5:30
प्नधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जितनी चतुराई से राजनीतिक मोर्चा संभाला है उनकी सरकार उतने सलीके से आर्थिक मोर्चा नहीं संभाल पाई है.
(लेखक-प्रकाश बियाणी)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जितनी चतुराई से राजनीतिक मोर्चा संभाला है उनकी सरकार उतने सलीके से आर्थिक मोर्चा नहीं संभाल पाई है. कारोबारी जगत की निराशा नवंबर 2016 में नोटबंदी से शुरू हुई थी. एक तरफ कारोबारी उसके आफ्टर इफेक्ट्स से आज तक उबर नहीं पाए हैं तो दूसरी तरफ इसने ऐसा टैक्स टेरर बढ़ाया है कि अब किसानों की तरह कारोबारी भी आत्महत्या करने लगे हैैं.
मोदीजी के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री अरुण जेटली का फोकस था- वित्तीय घाटा और महंगाई नियंत्रण. वे खुशकिस्मत हैं कि क्रूड आयल के अंतर्राष्ट्रीय मूल्य का उन्हें जबर्दस्त कुशन मिला और वित्तीय घाटा नियंत्रण में रखने की वे वाहवाही लूट ले गए. इसी तरह उनके कार्यकाल में देश में कृषि उपज की खूब पैदावार हुई. किसानों को तो इसका वाजिब मूल्य नहीं मिला पर अरुण जेटली को महंगाई नियंत्रित रखने का श्रेय मिल गया. अरुण जेटली की दो और उपलब्धि हैं- जीएसटी और दिवालिया कानून. दो साल बाद भी जीएसटी कारोबारियों के लिए स्मूथ नहीं हुई है और छोटे उद्योगपतियों और ट्रेडर्स के कारोबार में बाधा बनी हुई है. दिवालिया कानून के भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं. 12 बड़े बैंक डिफॉल्टरों से 3.50 लाख करोड़ रुपए 280 दिन में वसूल होने थे पर दो साल में केवल 5 डिफॉल्टरों से 52 हजार करोड़ रुपए वसूल हुए हैं.
सच्चाई यह है कि अरु ण जेटली के कार्यकाल में ही देश आर्थिक मंदी की गिरफ्त में फंस चुका था. वाहनों की बिक्री घट गई थी. आॅटो कम्पोनेंट्स बनानेवाले प्रभावित हुए थे तो आॅटो डीलर्स के शो-रूम्स बंद होने लगे थे. इस सेक्टर के 10 लाख नियमित और कैजुअल लेबर आज संभावित बेरोजगारी से डरे हुए हैं. बिजनेस कॉन्फिडेंस इंडेक्स के ताजा सर्वे में 52 फीसदी लोगों ने कहा है कि मोदी सरकार आर्थिक मोर्चे पर असफल रही है. वस्तुओं की मांग घटने से निजी निवेश 2018-19 में मात्र 9.5 लाख करोड़ रुपए रह गया है जो 14 साल का न्यूनतम स्तर है.
औद्योगिक उत्पादन की ग्रोथ पिछले एक साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है. फिनिश्ड स्टील का उत्पादन पिछले पांच साल के न्यूनतम स्तर पर है. 3 लाख करोड़ रुपए के फास्ट मूविंग कंजुमर मार्केट में सुस्ती है. इंडियन फाउंडेशन और ट्रांसपोर्ट रिसर्च ने माल की ढुलाई की मौजूदा कमी की तुलना 2008-09 की ग्लोबल मंदी से की है.
नि:संदेह सरकार को जन साधारण के जीवन स्तर में सुधार पर पैसा खर्च करना चाहिए. मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ऐसा किया भी है, पर अकेले सरकार पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश नहीं बना सकती. इसके लिए प्राइवेट सेक्टर का भी सहयोग चाहिए जो आज हताश और निराश है