पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: परीक्षा में नंबर हासिल करने की दौड़ में पिसती प्रतिभाएं

By पंकज चतुर्वेदी | Published: February 24, 2023 12:55 PM2023-02-24T12:55:04+5:302023-02-24T12:56:48+5:30

छोटी कक्षाओं में सीखने की प्रक्रिया के लगातार नीरस होते जाने व बच्चों पर पढ़ाई के बढ़ते बोझ को कम करने के इरादे से मार्च 1992 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश के आठ शिक्षाविदों की एक समिति बनाई थी, जिसकी अगुआई प्रो. यशपाल कर रहे थे.

Talents crushed in the race to get marks in the examination | पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: परीक्षा में नंबर हासिल करने की दौड़ में पिसती प्रतिभाएं

(फाइल फोटो)

Highlightsशिक्षा का मुख्य उद्देश्य इस नंबर-दौड़ में गुम होकर रह गया है.समिति ने देशभर की कई संस्थाओं व लोगों से संपर्क किया व जुलाई 1993 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी.दो साल पहले आई नई शिक्षा नीति में भी बच्चों के कौशल के मूल्यांकन पर कई बातें कही गई हैं लेकिन फिलहाल वह जमीन पर उतरती दिखती नहीं.

जिन घरों में किशोर बच्चे हैं, वहां अजीब सा तनाव है- अलसुबह या देर रात तक स्कूली बच्चे कंधे पर थैला लटकाए इधर से उधर हड़बड़ाकर आते-जाते दिख रहे हैं. आखिर उनके बोर्ड के इम्तेहान अब सिर पर आ गए हैं. कहने को तो सीबीएसई ने नंबर की जगह ग्रेड को लागू कर दिया है, लेकिन इससे उस संघर्ष का दायरा और बढ़ गया है जो बच्चों के आगे के एडमिशन, भविष्य या जीवन को तय करते हैं. 

ज्यादा नंबर लाने की होड़, दबाव, संघर्ष और इसके बीच में पिसता किशोर. अभी-अभी बचपन की दहलीज छोड़ी है और पहला अनुभव ही इतना कटु? दुनिया क्या ऐसे ही गलाकाट प्रतिस्पर्धा से चलती है? एक तरफ काॅलेजों में दाखिले की मारामारी होगी तो दूसरी ओर हायर सेकेंडरी में अपनी पसंद के विषय लेने के लिए माकूल अंकों की दरकार का खेल.

क्या किसी बच्चे की योग्यता, क्षमता और बुद्धिमत्ता का तकाजा महज अंकों का प्रतिशत ही है? वह भी उस परीक्षा प्रणाली में, जिसकी स्वयं की योग्यता संदेहों से घिरी हुई है. मूल्यांकन का आधार बच्चों की योग्यता न होकर उसकी कमजोरी है. यह सरासर नकारात्मक सोच है, जिसके चलते बच्चों में आत्महत्या, पर्चे बेचने-खरीदने की प्रवृत्ति, नकल व झूठ का सहारा लेना जैसी बुरी आदतें विकसित हो रही हैं. 

शिक्षा का मुख्य उद्देश्य इस नंबर-दौड़ में गुम होकर रह गया है. छोटी कक्षाओं में सीखने की प्रक्रिया के लगातार नीरस होते जाने व बच्चों पर पढ़ाई के बढ़ते बोझ को कम करने के इरादे से मार्च 1992 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश के आठ शिक्षाविदों की एक समिति बनाई थी, जिसकी अगुआई प्रो. यशपाल कर रहे थे. समिति ने देशभर की कई संस्थाओं व लोगों से संपर्क किया व जुलाई 1993 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. 

उसमें साफ लिखा गया था कि बच्चों के लिए स्कूली बस्ते के बोझ से अधिक बुरा है न समझ पाने का बोझ. सरकार ने सिफारिशों को स्वीकार भी कर लिया और एकबारगी लगा कि उन्हें लागू करने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं. दो साल पहले आई नई शिक्षा नीति में भी बच्चों के कौशल के मूल्यांकन पर कई बातें कही गई हैं लेकिन फिलहाल वह जमीन पर उतरती दिखती नहीं.

चूंकि परीक्षा का वर्तमान स्वरूप आनंददायक शिक्षा के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा है, अतः इसके स्थान पर सामूहिक गतिविधियों को प्रोत्साहित व पुरस्कृत किया जाना चाहिए. इसके विपरीत बीते एक दशक में कक्षा में अव्वल आने की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में न जाने कितने बच्चे कुंठा का शिकार हो मौत को गले लगा चुके हैं. हायर सेकेंडरी के रिजल्ट के बाद ऐसे हादसे सारे देश में होते हैं.

Web Title: Talents crushed in the race to get marks in the examination

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