ब्लॉग:नौकरशाही में सुधार का कदम
By अवधेश कुमार | Published: June 14, 2019 08:52 AM2019-06-14T08:52:03+5:302019-06-14T08:52:03+5:30
नरेंद्र मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार एवं यौन शोषण आदि के आरोपों वाले एक दर्जन उच्चाधिकारियों को एक साथ जबरन नौकरी से बाहर करके संदेश दिया है
नरेंद्र मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार एवं यौन शोषण आदि के आरोपों वाले एक दर्जन उच्चाधिकारियों को एक साथ जबरन नौकरी से बाहर करके संदेश दिया है कि वो किसी तरह के भ्रष्ट आचरण को सहन करने के लिए तैयार नहीं है और नियम के तहत या उसके बाहर जाकर जो भी संभव होगा कदम उठाएंगे.
इसमें बहुत सारे आयकर विभाग के अधिकारी हैं. अगर इस सरकार के पूर्व की सरकारों के आईने में देखा जाए तो यह बहुत बड़ा कदम है. नरेंद्र मोदी अपने पहले कार्यकाल से ही यह कहते आए हैं कि हम भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति पर काम कर रहे हैं. चुनावी सभाओं एवं मीडिया को दिए साक्षात्कार में भी उन्होंने भ्रष्टाचार पर कड़े प्रहार की बात कही थी. शपथ ग्रहण के तीन सप्ताह पूरा होने से भी कम समय में यह कदम उठाकर मोदी सरकार ने भ्रष्ट और कामचोर अधिकारियों को साफ और कड़ा संदेश दिया है.
वैसे केंद्र सरकार के पास सेंट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) रूल्स, 1972 के फंडामेंटल रूल 56 के तहत अधिकारियों पर कार्रवाई का अधिकार है. हालांकि इसका उपयोग कहां-कहां और कब किया जा सकता है, इसके बारे में थोड़ी अस्पष्टता है. सामान्यत: नियम 56 का इस्तेमाल ऐसे अधिकारियों पर किया जा सकता है जो 50 से 55 साल की उम्र के हों और 30 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हों. सरकार के द्वारा इन अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जा सकती है.
ऐसा करने के पीछे सरकार का मकसद बेहतर प्रदर्शन न करने वाले सरकारी कर्मचारी/अधिकारी को सेवा से मुक्त करना होता है. यह बात अलग है कि व्यवहार में यह नियम किताबों में ही सिमटा रहा है. नौकरशाही का लौह आवरण इतना मजूबत रहा है कि कोई सरकार इनके खिलाफ एकमुश्त कदम उठाने का साहस नहीं करती थी. भारत में मोदी सरकार के आने के पहले भारी संख्या में नौकरशाहों को बाहर का रास्ता दिखाने का वाकया पहले कभी हुआ नहीं. मोदी सरकार ने इस नियम का तो विस्तार किया ही है, ऐसे दूसरे नियमों का भी पूरा उपयोग कर
रही है.