ब्लॉग: फुटपाथ पर अतिक्रमण की समस्या मिटाने के लिए गंभीरता दिखाएं
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: June 26, 2024 11:00 AM2024-06-26T11:00:35+5:302024-06-26T11:01:02+5:30
मुंबई के मामले में भी बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) की ओर से पेश हुए वकील ने अदालत से कहा कि बीएमसी भूमिगत बाजार के विकल्प पर भी विचार कर रही है.
फुटपाथ पर अतिक्रमण की समस्या बहुत पुरानी है और देश के प्राय: हर हिस्से में व्याप्त है, लेकिन अब बंबई हाईकोर्ट की ताजा टिप्पणी से कुछ उम्मीद बंध रही है कि हो सकता है शासन-प्रशासन द्वारा इसके हल के लिए गंभीर कोशिश की जाए.
बंबई हाईकोर्ट ने सोमवार को सड़कों और फुटपाथ से जुड़े मसले पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि जब प्रधानमंत्री और अन्य अति विशिष्ट व्यक्तियों (वीवीआईपी) के लिए सड़कों व फुटपाथ को एक दिन के लिए खाली कराया जा सकता है तो सभी लोगों के लिए रोज ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता?
अदालत ने हालांकि यह टिप्पणी मुंबई को लेकर की, लेकिन इसे पूरे देश के संदर्भ में देखा जा सकता है. ऐसा नहीं कि फुटपाथ पर अतिक्रमण करने वालों पर कार्रवाई नहीं होती, लेकिन अतिक्रमण तोड़ू दस्ते के वहां से हटते ही स्थिति पूर्ववत हो जाती है.
अतिक्रमणकारियों पर लगाए जाने वाले जुर्माने से भी यह समस्या हल नहीं हो पा रही है. अदालत ने बिल्कुल सही कहा कि हम अपने बच्चों को फुटपाथ पर चलने के लिए कहते हैं लेकिन अगर चलने के लिए फुटपाथ ही नहीं होंगे तो हम अपने बच्चों से क्या कहेंगे?
असल में समस्या यह है कि प्रशासन यह मान लेता है कि उसकी कोशिशों के बावजूद समस्या कायम रहेगी ही, इसलिए खानापूर्ति के लिए वह बीच-बीच में कार्रवाई करता रहता है और समस्या बरकरार रहती है.
फुटपाथ पर अतिक्रमण से राहगीरों को चलने में तो समस्या होती ही है, सड़क पर भी भीड़ बढ़ जाती है और जाम लगने व दुर्घटना होने का डर बना रहता है. असल में रेहड़ी और फेरीवालों के लिए पर्यायी व्यवस्था किए बिना फुटपाथ पर अतिक्रमण की समस्या से मुक्त नहीं हुआ जा सकता.
मुंबई के मामले में भी बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) की ओर से पेश हुए वकील ने अदालत से कहा कि बीएमसी भूमिगत बाजार के विकल्प पर भी विचार कर रही है. अदालत ने तब मजाक में टिप्पणी भी की कि निगम सचमुच समस्या को भूमिगत करने की कोशिश कर रहा था. लेकिन मजाक में भी अदालत ने बहुत गहरी बात कही है.
वास्तव में हर जगह इस समस्या को भूमिगत करने की कोशिश ही की जाती है, अगर गंभीरता से रेहड़ी और फेरीवालों को पर्यायी जगह उपलब्ध कराने की कोशिश की जाए तो इस समस्या से बहुत हद तक निजात पाई जा सकती है. पर्यायी व्यवस्था के बाद भी अगर कोई अतिक्रमण करे तो उसके लिए भारी-भरकम जुर्माने और अन्य दंड पर विचार किया जा सकता है.