शोभना जैन का नजरियाः पाक से कैदियों की अदला-बदली हो
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 23, 2018 04:44 PM2018-12-23T16:44:14+5:302018-12-23T17:07:18+5:30
हामिद उन विरले भारतीयों में से हैं जो पाकिस्तान से मानसिक शारीरिक यातनाएं भुगतने के बाद घर तो लौट आए, लेकिन सभी का नसीब हामिद जैसा नहीं होता.
पाकिस्तानी जेल में छह वर्षो की सजा काटने के बाद आखिरकार मुंबई के सॉफ्टवेयर इंजीनियर हामिद अंसारी की घर वापसी हो गई है. हामिद उन विरले भारतीयों में से हैं जो पाकिस्तान से मानसिक शारीरिक यातनाएं भुगतने के बाद घर तो लौट आए, लेकिन सभी का नसीब हामिद जैसा नहीं होता. यहां तक कि 1971 के भारत-पाक युद्ध के अनेक भारतीय युद्ध बंदियों के अभी भी पाकिस्तान की जेलों में यातनाएं झेलने की खबर भी जब तब सामने आती रहती है.
भूले भटके पाकिस्तान सीमा में पहुंच गए या पाक द्वारा पकड़ लिए गए कितने ही भारतीय नागरिकों को घर वापसी नसीब नहीं हो पाई. पाकिस्तानी जेल में सरबजीत की क्रूर मौत अब भी सिहरन पैदा करती है. शारीरिक-मानसिक प्रताड़नाओं को निरंतर ङोल रहे कुलदीप जाधव को आज भी अपनी वतन वापसी का इंतजार है, इस मामले पर हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय अगले महीने फिर से सुनवाई शुरू कर रहा है. हालांकि पाकिस्तान के रुख के चलते बहुत उम्मीद नहीं है. इस साल जुलाई में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक 357 पाकिस्तानी नागरिक भारतीय जेलों में बंद हैं, इनमें 249 आम नागरिक हैं जबकि 108 मछुआरे हैं. इसी प्रकार 471 भारतीय नागरिक पाकिस्तान की जेलों में बंद हैं.
हामिद के 2012 में पाकिस्तान पहुंचने के बाद तीन बरस तक तो पाकिस्तान उसके बारे में कोई जानकारी देने से ही इंकार करता रहा. हामिद ने बताया कि उसे किस कदर यातनाएं दी गईं. ऑनलाइन मित्नता के जरिए एक अनदेखी पाकिस्तानी युवती के प्रेम में बंधा और फिर उस युवती के कहने पर उसे जबरन विवाह से बचाने की गुहार सुन हामिद नेकनीयती से पाकिस्तान में घुस तो गया लेकिन वहां जासूस ठहरा दिया गया.
सैनिक अदालत में उस पर मुकदमा चला और तीन वर्ष की कैद भी हुई. सजा पूरी होने पर उसे भारत को सौंप दिया गया. लेकिन सभी बंदियों की नियति हामिद जैसी नहीं होती. जरूरत इस बात की है कि भारत-पाकिस्तान इस तरह के मामलों के लिए गठित तंत्न को प्रभावी बनाने में सहयोग करें. लगभग एक दशक पूर्व गठित बंदियों की संयुक्त न्यायिक समिति को पुन: प्रभावी बनाया जाए, जिसकी गत पांच वर्षो से कोई बैठक ही नहीं हुई है. समिति ने सिफारिश की थी कि महिलाओं, बच्चों और अपना मानसिक संतुलन खो चुके कैदियों को वापस उनके देश वापस भेज दिया जाए.