शशिधर खान का ब्लॉग: नगा और उल्फा का भी बोडो जैसा समाधान हो

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 7, 2020 05:21 AM2020-02-07T05:21:08+5:302020-02-07T05:21:08+5:30

केंद्र सरकार, असम सरकार और विभिन्न बोडो उग्रवादी गुटों के बीच दिल्ली में 27 जनवरी को हुए हस्ताक्षर कई बिंदुओं से महत्वपूर्ण हैं. उनमें सबसे ज्यादा मार्के की बात है सिर्फ हिंसा पर भरोसा करनेवाले विभिन्न बोडो गुटों से शांति व अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के शहादत दिवस से पहले समझौता.

Shashidhar Khan blog: Naga and ULFA should have a solution like Bodo | शशिधर खान का ब्लॉग: नगा और उल्फा का भी बोडो जैसा समाधान हो

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

असम की पुरानी झंझटिया उग्रवादी समस्याओं में से एक बोडो हिंसा को विराम लगना सही मायने में ऐतिहासिक है. इसका दूसरा प्रशंसनीय पहलू ऐसे समय में विभिन्न बोडो गुटों से एक ही दिन एक ही मंच पर समझौता होना है, जब असम के लगभग सभी असमिया भाषी लोगों का नागरिकता कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन लगातार जारी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा गठजोड़ और कांग्रेस गठजोड़ दोनों ही सरकारों द्वारा पहले किए गए आधे-अधूरे काम को एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचाया.  नागरिकता संशोधन एक्ट को लेकर विरोध सबसे पहले असम से शुरू हुआ. असम में ही सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है, जहां भाजपा की सरकार है.  

केंद्र सरकार, असम सरकार और विभिन्न बोडो उग्रवादी गुटों के बीच दिल्ली में 27 जनवरी को हुए हस्ताक्षर कई बिंदुओं से महत्वपूर्ण हैं. उनमें सबसे ज्यादा मार्के की बात है सिर्फ हिंसा पर भरोसा करनेवाले विभिन्न बोडो गुटों से शांति व अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के शहादत दिवस से पहले समझौता. 30 जनवरी को बापू के शहादत दिवस के दिन बोडो गुटों ने आत्मसमर्पण किया. असम एवं पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों के अलावा देशभर के लोगों ने अखबार, टीवी चैनलों के जरिए बोडो उग्रवादियों को हथियार सौंपते देखा. महात्मा गांधी की यह 72वीं पुण्यतिथि थी और बोडो अलगाववादी हिंसा 1966-67 में भड़की. इस समझौते से असम में अलग राज्य के लिए हिंसक छापामार आंदोलन चलानेवालों में से एक तबके को मुख्य धारा में लाने का रास्ता खुला है.

असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने 30 जनवरी को गुवाहाटी में बोडो उग्रवादियों के आत्मसमर्पण के बाद उल्फा (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम, ‘आई’) उग्रवादियों को इससे प्रेरणा लेने और अंतहीन हिंसा का रास्ता छोड़कर वार्ता के लिए आगे आने कहा. मंत्रिमंडल में नंबर दो मंत्री हिमांता बिस्व शर्मा ने भी उल्फा (आई इंडिपेंडेंट स्वतंत्र) समेत असम और मणिपुर के भी सभी विद्रोही गुटों को शांति प्रक्रिया को अपनाकर अपने समाज के लिए एक उदाहरण पेश करने को कहा. सोनोवाल और हिमांता बिस्व शर्मा दोनों ने ही इस बात पर बल दिया कि असम की क्षेत्रीय अखंडता सरकार के साथ बिल्कुल एक रहेगी.

समझौता एक साथ दिल्ली और दिसपुर दोनों जगह हुआ, मगर हस्ताक्षर दिल्ली में हुआ. हस्ताक्षर के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री दोनों ने कहा कि इस समझौते से बोडो अलग राज्य आंदोलन समाप्त हो गया और बोडोलैंड आंदोलन के इतिहास में शांतिपूर्ण जन-जीवन का एक नया अध्याय जुड़ गया. इस अवसर पर अलग राज्य आंदोलन के प्रतिबंधित संगठन एनडीएफबी (नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड) के विभिन्न गुटों के नेताओं के अलावा बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) प्रमुख हाग्रामा मोहिलारी भी मौजूद थे. हाग्रामा 1980 के दशक में अलग बोडोलैंड राज्य की मांग को लेकर हिंसक आंदोलन करनेवाले प्रमुख नेताओं में से रहे हैं.

उन्होंने हिंसा को छोड़ मुख्यधारा की जिंदगी का रास्ता अपनाया. अभी वे बीटीसी के मुख्य कार्यकारी परिषद सदस्य हैं और मोहिलारी का एनडीएफबी से अलग होकर बने राजनीतिक मंच बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) असम में भाजपा गठजोड़ सरकार का एक घटक है.

ऐसे समझौते के बाद असम के मुख्यमंत्री ने उल्फा (आई) सुप्रीमो परेश बरुआ गुट को वार्ता के लिए सामने आने को कहा. बोडो उग्रवादियों के आत्मसमर्पण से चार दिन पहले 23 जनवरी को उल्फा (आई) समेत आदिवासी ड्रैगन फाइटर, कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन, रावा नेशनल लिबरेशन फ्रंट और अन्य गुटों के भी लगभग 600 विद्रोहियों ने हिंसा छोड़ने के इरादे से आत्मसमर्पण किया. जिन अलगाववादी सशस्त्र गुटों ने सरकार के आगे आत्मसमर्पण किया है और जिन्हें सरकार ने आमंत्रित किया है उनमें सबसे चुनौतीपूर्ण हैसियत वाला उल्फा (आई) है. उल्फा ऐसा गुट है, जो भारत की संघीय व्यवस्था को ही स्वीकार करने को राजी नहीं है. उल्फा को ‘स्वाधीन संप्रभु असोम’ चाहिए, जिसका प्रावधान भारत के संघीय ढांचे में नहीं है.

पूर्वोत्तर में अलगाववादी हिंसा का इतिहास असम से नगा विद्रोह से शुरू होता है. उसके बाद दूसरा वैसा ही अलगाववाद उल्फा के रूप में उपजा. नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन) और उल्फा यही दोनों संगठन हैं, जिन्होंने भारत के संघीय ढांचे के अंतर्गत ‘स्वाधीन संप्रभु अलग राष्ट्र’ के लिए आंदोलन छेड़ा. बाकी सारे अलग राज्य आंदोलन उसी से उपजे हैं.

1993 में ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के साथ समझौता हुआ और बोडोलैंड स्वायत्त परिषद बना. 2003 में भाजपा गठजोड़ सरकार में उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी की पहल पर बोडोलैंड लिबरेशन टाइगर्स से समझौता हुआ. उसके बाद बोडो आदिवासी बहुल आबादी वाले चार जिलों - कोकराझार, चिरांग, बस्का और उदालगिरि को मिलाकर बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद बना. पश्चिम असम में बोडोलैंड क्षेत्र में 1966-67 में भड़की अलगाववादी हिंसा में दो बार 1986 और 1987 में उफान आया. बोडो छात्र संगठनों के नेतृत्व ने बाद में एक संयुक्त मंच एनडीएफबी बनाया.

हिंसा के कारण ये विभिन्न गुटों में बंटे, जिन्हें शांति पथ पर एक साथ लाने में सफलता मिली है. पूर्वाेत्तर में सेना की बदौलत कानून और व्यवस्था चल रही है. बड़ी अच्छी बात है कि बोडोलैंड समझौते के बाद सेना प्रमुख ने कहा कि अगले 18-24 महीनों में आंतरिक सुरक्षा ड्यूटी से सैनिकों को हटाने की योजना पर काम चल रहा है.

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