शरद जोशी का कॉलमः आतिथ्य सत्कार और परम मित्र चक्र

By शरद जोशी | Published: August 17, 2019 01:09 PM2019-08-17T13:09:38+5:302019-08-17T13:09:38+5:30

वही वस्तु जो आज भाव में महंगी है - भेंट देने से प्रेमी प्रसन्न हो सकता है और कल वही चीज सस्ती होने पर प्रेमी भावना की कीमत नहीं करेगा.

Sharad Joshi's Column: Hospitality and Param Mitra Chakra | शरद जोशी का कॉलमः आतिथ्य सत्कार और परम मित्र चक्र

शरद जोशी का कॉलमः आतिथ्य सत्कार और परम मित्र चक्र

मानवीय संबंध तथा भावना का, बाजार के भावों और आर्थिक परिस्थितियों से बड़ा करीब का संबंध है. प्रेम कितना है, इसकी जानकारी बिल कितना आया, इससे होती है. भारत की परंपरा में आतिथ्य सत्कार, प्रेम प्रदर्शन और दान- तीनों को खर्चे की नजर से आंका गया है. वही वस्तु जो आज भाव में महंगी है - भेंट देने से प्रेमी प्रसन्न हो सकता है और कल वही चीज सस्ती होने पर प्रेमी भावना की कीमत नहीं करेगा.

चाय की तरह प्रेम का भी स्तर होता है - चालू, अमेरिकन, डेढ़िया, स्पेशल ट्रे आदि. भारत चालू चाय का देश है और शिकायत यह है कि बल्गानिन और ख्रुश्चेव को ट्रे में चाय क्यों दी जा रही है? इतना खर्चा क्यों हो रहा है? मेहमान घर से निकले नहीं और खर्चे पर बहस होने लगी - आतिथ्य की स्वर्णिम परंपरा वाले देश के दुर्भाग्य देखिए. रामराज्य के अथवा समाजवाद के प्रथम चरण में यह कंजूसी? हद है. खर्चा सब तरफ है. युद्ध कीजिए तो खर्चा और शांति रखिए तो खर्चा. युद्ध में सिपाही खाते हैं और शांति में कलाकारों के चार्ज बढ़ जाते हैं. रूसवालों की यात्र शांति का चर्चा है- सहन किया जाना चाहिए. दोस्ती में पैसे की तरफ ध्यान देना बड़ी गलत चीज है.

भारत में कई अतिथि एक साथ खप सकते हैं. बहुत बड़ा देश है. स्वागत की फुर्सत भी जनता के पास है. दुनिया के अन्य कई देश ऐसे हैं जहां भारत की भेंट हाथी सड़क पर से निकलता है और दोनों तरफ भीड़ लग जाती है. फिर दोस्ती की भारतीय अभिव्यक्ति भी बड़ी अच्छी है. तोता, शेर, घोड़ा, पापड़, घघरिया, बेंत, कश्मीरी काम की चीजें वगैरह. विदेश वालों को प्रेम जाहिर करने के लिए अपने यहां एक कारखाना खोलना पड़ता है.

इन सबके बावजूद रूस तो भारत का दोस्त है. अपने यहां तो साधारण व्यक्ति ऐसी बात करते हैं- ‘आपसे कुछ काम है?’ - ‘कहिए, कहिए- जान हाजिर है.’ अब प्राय: ऐसा होता है कि जान हाजिर होती है और मित्र जो वस्तु मांगता है वह गैर-हाजिर. पर असली प्रेम में साड़ी की कीमत सोचना अपनी परंपरा नहीं. यही बात रूस में है. इस कारण वहां मानवीय मधुर भावनाएं उतनी ही ऊंची हैं, जितनी कीमती चीज भेंट करने पर यहां के कोमल हृदयों में जाग उठती हैं. 

अत: मुझ जैसे एक भावुक अर्थशास्त्री का जो भय है कि चीजों के भाव घटने पर प्रेम प्रभावहीन हो जाएगा वह भय लेनिन के बेटों को नहीं है. बल्गानिन को ‘परम मित्र चक्र’ उस समय मिल चुका, जब वह मास्को हवाई अड्डे पर नेहरू को विदा दे रहा था, और अब जो खर्चा है - उससे बचकर क्या और देशों के सामने नाक कटानी है कि देखो, खुद के यहां मौका है तो पैसा नहीं छूट रहा है. भरे बाजार ढोल पिटवाओगे?
(रचनाकाल - 1950 का दशक)

Web Title: Sharad Joshi's Column: Hospitality and Param Mitra Chakra

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