ब्लॉग: रेल पथ को कूड़ादान बनने से बचाएं
By पंकज चतुर्वेदी | Published: July 16, 2024 10:07 AM2024-07-16T10:07:26+5:302024-07-16T10:15:26+5:30
भारतीय रेल दुनिया का तीसरा सबसे वृहद नेटवर्क है, जिसमें हर रोज बारह हजार से अधिक यात्री रेल और कोई सात हजार मालगाड़ियां चौबीसों घंटे दौड़ती हैं।
अभी 6 जुलाई 2024 को केरल हाईकोर्ट ने एक स्वत: संज्ञान मामले में कड़े शब्दों में कहा कि रेलवे थोक में कचरा उपजा रहा है क्योंकि पटरियों पर पाया जाने वाला अधिकांश कचरा ट्रेनों से आता है। न्यायालय ने कहा कि रेलवे का कर्तव्य है कि वह पटरियों के करीब कचरा फेंकना बंद करे। अदालत ने कहा कि पटरियों पर फेंका गया कचरा जल निकायों में बह जाता है जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान होता है। हालांकि स्टेशनों के पास कचरे का उचित प्रबंधन किया जाता है, लेकिन पटरियों के किनारे से कचरे को हटाने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए जाते हैं। न्यायालय ने कहा कि डंपिंग का एक कारण यह है कि डिब्बों में पर्याप्त कचरा डिब्बे नहीं हैं।
भारतीय रेल दुनिया का तीसरा सबसे वृहद नेटवर्क है, जिसमें हर रोज बारह हजार से अधिक यात्री रेल और कोई सात हजार मालगाड़ियां चौबीसों घंटे दौड़ती हैं। अनुमान है कि इस नेटवर्क में हर रोज कोई दो करोड़ तीस लाख यात्री तथा एक अरब मीट्रिक टन सामान की ढुलाई होती है। दु:खद है कि पूरे देश की रेल की पटरियों के किनारे गंदगी, कूड़े और सिस्टम की उपेक्षा की तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। कई जगह तो प्लेटफॉर्म भी अतिक्रमण, अवांछित गतिविधियों और कूड़े का ढेर बने हुए हैं।
देश की राजधानी दिल्ली से आगरा के रास्ते दक्षिणी राज्यों, सोनीपत-पानीपत के रास्ते पंजाब, गाजियाबाद की ओर से पूर्वी भारत, गुड़गांव के रास्ते जयपुर की ओर जाने वाले किसी भी रेलवे ट्रैक को दिल्ली शहर के भीतर ही देख लें तो जाहिर हो जाएगा कि देश का असली कचरा घर तो रेल पटरियों के किनारे ही संचालित है। सनद रहे ये सभी रास्ते विदेशी पर्यटकों के लोकप्रिय रूट हैं और जब दिल्ली आने से 50 किलोमीटर पहले से ही पटरियों के दोनों तरफ कूड़े, गंदे पानी, बदबू का अंबार दिखता है तो उनकी निगाह में देश की कैसी छवि बनती होगी।
असल में रेल पटरियों के किनारे की कई-कई हजार एकड़ भूमि अवैध अतिक्रमणों की चपेट में हैं। इन पर राजनीतिक संरक्षण प्राप्त भूमाफिया का कब्जा है जो कि वहां रहने वाले गरीब मेहनतकश लोगों से वसूली करते हैं। इनमें से बड़ी संख्या में लोगों के जीवकोपार्जन का जरिया कूड़ा बीनना या कबाड़ी का काम करना ही है। ये लोग पूरे शहर का कूड़ा जमा करते हैं, अपने काम का सामान निकाल कर बेच देते हैं और बकाया को रेल पटरियों के किनारे ही फेंक देते हैं, जहां धीरे-धीरे गंदगी के पहाड़ बन जाते हैं। यह भी आगे चल कर नई झुग्गी का मैदान होता है।
कचरे का निबटान पूरे देश के लिए समस्या बनता जा रहा है। यह सरकार भी मानती है कि देश के कुल कूड़े का महज पांच प्रतिशत का ईमानदारी से निबटान हो पाता है। राजधानी दिल्ली का तो 57 फीसदी कूड़ा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से यमुना में बहा दिया जाता है या फिर रेल पटरियों के किनारे फेंक दिया जाता है। समूचे देश में कचरे का निबटान अब हाथ से बाहर निकलती समस्या बनता जा रहा है।