ब्लॉग: राज्यपाल के पद पर रहते हुए मोदी सरकार की आलोचना! 75 की उम्र में इतिहास रच रहे हैं सत्यपाल मलिक

By हरीश गुप्ता | Published: October 28, 2021 10:54 AM2021-10-28T10:54:06+5:302021-10-28T10:54:06+5:30

फिलहाल मोदी सरकार को समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे. कहा जाता है कि सत्यपाल मलिक दरअसल अमित शाह की पसंद थे जब वे भाजपा अध्यक्ष थे और पीएम नरेंद्र मोदी ने उन्हें जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल का पद देकर पुरस्कृत किया.

Satya Pal Malik criticising Narendra Modi govt and why he is doing it | ब्लॉग: राज्यपाल के पद पर रहते हुए मोदी सरकार की आलोचना! 75 की उम्र में इतिहास रच रहे हैं सत्यपाल मलिक

75 की उम्र में इतिहास रच रहे हैं सत्यपाल मलिक!

जब 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने 75 वर्ष से अधिक आयु के सभी व्यक्तियों के लिए मंत्री पद पर प्रतिबंध लगाने की नीति पेश की, तो इससे लालकृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा जैसे नेताओं को झटका लगा था. लेकिन इतिहास हमें बताता है कि 70 पार की उम्र में कई लोगों के जीवन में ऐसे महत्वपूर्ण मोड़ आते हैं जब वे राजनीतिक बियाबान में पहुंच जाते हैं, जबकि कुछ अन्य इतिहास रचते हैं. 

जयप्रकाश नारायण को देखिए जिन्होंने अपनी उम्र के सातवें दशक में भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार आंदोलन शुरू किया था. मोरारजी देसाई 70 पार की उम्र में गुजरात की भ्रष्ट चिमनभाई पटेल सरकार के खिलाफ आमरण अनशन पर बैठे थे. ऐसा लगता है कि मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक 24 जुलाई को 75 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद ज्यादा समझदार हो गए हैं. 

हालांकि वे मोदी-अमित शाह ही थे, जिन्होंने मलिक को अगस्त 2018 में यूपी में उनकी सेवाओं के लिए जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल का पद देकर पुरस्कृत किया था. वे सिद्धांतवादी राममनोहर लोहिया के शिष्य, मूलत: धर्मनिरपेक्ष और स्वर्गीय चरण सिंह के विश्वासपात्र हैं. मोदी-शाह की टीम ने मलिक को जम्मू-कश्मीर के नेताओं के बीच यह धारणा बनाने के लिए भेजा कि वे समाधान खोजने के लिए आए हैं. 

हकीकत में लेकिन दोनों गुपचुप तरीके से धारा 370 को खत्म करने का काम कर रहे थे. जब जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश में बदल दिया गया तो मलिक को कुछ महीनों के भीतर ही गोवा और बाद में मेघालय भेज दिया गया. लेकिन 70 पार के एक ऐसे व्यक्ति के व्यक्तित्व का गलत अनुमान लगाया गया जो आडवाणी या जोशी नहीं हैं. 

आहत और अपमानित मलिक ने इतिहास के पन्ने पलटने का फैसला किया और ऊंचे स्थानों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई. उन्होंने कुछ सबूतों के साथ अंबानी, गोवा के मुख्यमंत्री और आरएसएस महासचिव राम माधव का भी नाम लिया. वे दिल्ली में मेघालय हाउस में डेरा डाल कर उसी सरकार के खिलाफ मीडिया को एक के बाद एक साक्षात्कार देने लगे जिसने उन्हें नियुक्त किया था. 

वे देश में जहां कहीं भी बुलाया जाता है, वहां जाकर एक के बाद एक रैलियों को संबोधित कर रहे हैं, और वह भी बिना राष्ट्रपति की मंजूरी लिए, जो कि जरूरी है. उनका कहना है कि उनके पास डेढ़ कमरे का अपार्टमेंट और पांच कपड़े हैं. उन्होंने टीवी पर कहा, ‘कोई भी मुझे छू नहीं सकता, भले ही वह सीबीआई और ईडी हो.’

मोदी सरकार को समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे. कहा जाता है कि वे अमित शाह की पसंद थे जब वे भाजपा अध्यक्ष थे और मोदी ने उन्हें पुरस्कृत किया. लेकिन अब दोनों उन्हें बर्खास्त करने के लिए सही समय का इंतजार कर रहे हैं. मलिक राज्यपाल पद के अपने वर्तमान लाभों का आनंद ले रहे हैं और साथ ही खुले तौर पर सत्ता प्रतिष्ठान की आलोचना कर रहे हैं. इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है.

माहौल बनातीं प्रियंका

कांग्रेस की यूपी की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी माहौल बना रही हैं. पिछले सप्ताह कांग्रेस कार्यसमिति के कुछ सदस्यों ने उनकी भारी प्रशंसा की. लोकसभा में कांग्रेस नेता द्वारा लखीमपुर खीरी में प्रियंका की साहसिक लड़ाई के लिए उनकी प्रशंसा के साथ इसकी शुरुआत हुई. 

सीडब्ल्यूसी के कुछ अन्य सदस्य भी इसमें शामिल हुए. वे न केवल सही आवाज उठा रही हैं बल्कि यूपी में भाजपा को सीधी टक्कर दे रही हैं. चूंकि उनका बेटा यूके में पढ़ रहा है और बेटी यूएसए में है तथा पति अपनी दुनिया में व्यस्त हैं, वे दैनंदिन पारिवारिक झंझटों से लगभग मुक्त हैं. भाजपा को टक्कर देने के लिए उन्होंने हाल ही में लखनऊ शिफ्ट किया है. 

प्रियंका की स्वीकार्यता पार्टी में बढ़ गई है. हालांकि उन्होंने हाथरस सहित यूपी में कई लड़ाइयां लड़ीं, लेकिन उनका टर्निग पॉइंट लखीमपुर खीरी में आया, जब उन्हें जेल में डाल दिया गया और योगी सरकार को अपनी गलती स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा. यह अलग बात है कि कांग्रेस ने अभी तक पार्टी कार्यकर्ताओं की फौज नहीं बनाई है. हाथरस हो या लखीमपुर खीरी, राहुल तभी जाते हैं जब प्रियंका को समर्थन मिलने लगता है. 

प्रियंका को सार्वजनिक रूप से मोदी-शाह-योगी की आलोचना के लिए जाना जाता है और उनका जनसंपर्क राहुल गांधी से कहीं बेहतर है. यहां तक कि उनका नवजोत सिद्धू का जुआ भी रंग लाया क्योंकि उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के लिए पीसीसी प्रमुख का इस्तेमाल किया, जिन्हें राहुल गांधी महीनों तक बर्खास्त नहीं कर पाए थे. 

यह अलग बात है कि सिद्धू बार-बार असंतोष जता रहे हैं और बयानबाजी कर रहे हैं. वे असंतुष्ट हैं क्योंकि उन्हें बदले में कुछ नहीं मिला और शायद वे पंजाब के मुख्यमंत्री भी कभी नहीं बन सकेंगे.

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