सारंग थत्ते का ब्लॉगः रक्षा क्षेत्र में नई सोच विश्वास की जरूरत

By सारंग थत्ते | Published: February 2, 2022 04:43 PM2022-02-02T16:43:25+5:302022-02-02T16:44:29+5:30

रक्षा क्षेत्र को इस बार बजट से बड़ी उम्मीदें थीं। देश की रक्षा तैयारियों में बहुत कमियां हैं जिसकी बनिस्बत कई सौदे समग्र रूप से पूर्णता नहीं ले सके हैं और उन्हें लंबित श्रेणी में रखा गया है- अभी नहीं बाद में।

sarang thatte's blog new thinking needed in the defense sector | सारंग थत्ते का ब्लॉगः रक्षा क्षेत्र में नई सोच विश्वास की जरूरत

सारंग थत्ते का ब्लॉगः रक्षा क्षेत्र में नई सोच विश्वास की जरूरत

जब हमारे दोनों ओर सैनिक गतिविधियों का बोलबाला है, ऐसे में हमारी जरूरतें बढ़ गई हैं एवं इस वजह से ज्यादा धन के आवंटन की जरूरत तीव्रता से महसूस की जा रही थी। कारगिल युद्ध के परिप्रेक्ष्य में वाजपेयी सरकार ने 2000-01 में कुल बजट का 16.73 प्रतिशत हिस्सा रक्षा के लिए मुकर्रर किया था जो अब घटकर महज 12.10 प्रतिशत रह गया है। 2005-06 में मनमोहन सिंह की सरकार में भी 16.14 प्रतिशत को रक्षा बजट छू गया था। 2017-18 में भारत का रक्षा बजट हमारे सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 1.5 प्रतिशत था। 2021-22 यह मामूली वृद्धि के साथ 1.58 पर रु क गया।

रक्षा क्षेत्र को इस बार बजट से बड़ी उम्मीदें थीं। देश की रक्षा तैयारियों में बहुत कमियां हैं जिसकी बनिस्बत कई सौदे समग्र रूप से पूर्णता नहीं ले सके हैं और उन्हें लंबित श्रेणी में रखा गया है- अभी नहीं बाद में। इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण के मुख्य अंश में रक्षा की जरूरत का उल्लेख किया लेकिन आश्चर्यजनक रूप से किसी भी किस्म की जानकारी या रक्षा बजट के आंकड़ों को सामने नहीं रखा। अर्थात् देश की रक्षा में जुटे विशेषज्ञों को कुछ समय बिताना पड़ा जब वित्त विधेयक की प्रतियां हाथ लगीं। एक तरह से देश के आसपास उभरते युद्ध के बादलों की तस्वीरों के चलते यह उम्मीद तो बनती ही है कि रक्षा मंत्री हमारी रक्षा तैयारियों को सदन के सामने दृढ़तापूर्वक रखतीं, जिससे सीमा पर मौजूद सैनिकों और सीमा पार के आकाओं को भी बजट में एक जायका मिलता हमारी रक्षा तैयारियों का। इस किस्म से रक्षा क्षेत्र की अवहेलना क्यों की गई, यह तो स्वयं वित्त मंत्री ही बता सकेंगी।

रक्षा क्षेत्र में राजस्व व्यय के तहत रोजमर्रा की जरूरतों और रक्षा कर्मियों के वेतन में भुगतान की जाने वाली राशि शामिल होती है। आंकड़ों को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि हमारी सेनाओं के लिए जरूरी आधुनिकीकरण का पहाड़ चढ़ना इतने कम साधनों में नामुमकिन होगा!

बजट भाषण में वित्त मंत्री ने सरकार की मंशा जाहिर की है जिसके तहत सरकार आने वाले वित्त वर्ष में उद्योग अनुकूल रक्षा उत्पादन नीति की घोषणा करेगी। कहीं न कहीं सरकार को भी महसूस हुआ है कि मेक इन इंडिया का शेर अपनी क्षमता नहीं चमका सका है और बहुत कुछ करने की जरूरत है। रक्षा क्षेत्र का जिक्र करते हुए वित्त मंत्री ने इस बात को तवज्जो जरूर दिया कि सरकार रक्षा क्षेत्र में आधुनिकीकरण की ओर केंद्रित है लेकिन बड़ा सवाल यही उठता है कि गत वर्ष भी कई प्रोजेक्ट लंबित रह गए थे। इस हालत में हम कितना कुछ कर पाएंगे? रक्षा क्षेत्र में पुरानी देनदारी में ही लगभग 80 प्रतिशत की राशि व्यय होती है, जिसके चलते नए हथियार व अन्य साजोसामान, गोलाबारूद खरीदने के लिए पैसे की कमी खलती रहती है। जब तक हमारी त्वरित रक्षा जरूरतों को समयबद्ध तरीके से पूर्णता नहीं मिलेगी, तब तक हम नहीं कह सकते-क्या हम युद्ध के लिए तैयार हैं, यदि आज शुरू होता है?

Web Title: sarang thatte's blog new thinking needed in the defense sector

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