शोभना जैन का ब्लॉगः जन कल्याण का मंत्र देने वाले विलक्षण संत आचार्य विद्यासागर जी

By शोभना जैन | Published: July 9, 2020 05:12 PM2020-07-09T17:12:23+5:302020-07-09T17:12:23+5:30

एक तरफ जहां न केवल आसपास के लोग बल्कि भारत और विदेशों से उनके भक्त उनके दर्शन के लिए यहां पहुंच रहे थे और दूसरी तरफ वीतरागी निर्विकार भाव से अचानक अगले पड़ाव की ओर चल पड़े थे. न कोई राग, कोई बंधन, कोई जुड़ाव नहीं. घोर तपस्या और अनवरत साधना की राह.

saint Acharya Vidyasagar who gave the mantra of public welfare | शोभना जैन का ब्लॉगः जन कल्याण का मंत्र देने वाले विलक्षण संत आचार्य विद्यासागर जी

घोर तपस्वी, दार्शनिक, विद्वान और समाज सुधारक जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज. (फाइल फोटो)

बरसों पहले की एक घटना एक स्मृति नहीं बल्कि आंखों में बस सी गई है...मध्यप्रदेश के सागर नगर के निकट एक उनींदा सा कस्बा रहली.  अचानक गुलजार सा हो उठा कस्बा और चमकदार सी सुबह में तंग गलियों में एक-दूसरे से जुड़े मकानों से जहां-तहां रास्ता निकाल झांकती धूप भी मानो मंद-मंद सी मुस्कराती. मैं वहां सपरिवार घोर तपस्वी, दार्शनिक, विद्वान और समाज सुधारक जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के दर्शन करने गई थी. 

सुबह दर्शन किए और दोपहर फिर से दर्शन लाभ और प्रवचन सुनने का कार्यक्रम था. दोपहर जब वहां पहुंचे तो माहौल में बेचैनी, अनिश्चितता सी थी. पता लगा ‘वीतरागी अनियत विहारी’ ने अचानक संघ विहार कर अगले पड़ाव पर चल देने का फैसला किया है, और कुछ ही देर में गुलजार हुआ वह कस्बा उदास सा हो गया. कुछ ही क्षणों में उस छोटे से कस्बे में  विस्मयकारी दृश्य देखने को मिला. तपस्वी संत अगले पड़ाव पर जा रहे हैं,  उनके संघ के 40 मुनिजन एक के बाद उनके पीछे चल रहे थे और पीछे-पीछे उदास श्रद्धालु उनके अगले पड़ाव तक विदा देने के लिए चल रहे थे. ये थे वीतरागी जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर जी. 

एक तरफ जहां न केवल आसपास के लोग बल्कि भारत और विदेशों से उनके भक्त उनके दर्शन के लिए यहां पहुंच रहे थे और दूसरी तरफ वीतरागी निर्विकार भाव से अचानक अगले पड़ाव की ओर चल पड़े थे. न कोई राग, कोई बंधन, कोई जुड़ाव नहीं. घोर तपस्या और अनवरत साधना की राह. उन  मुनि गण के नंगे पैरों से उड़ती धूल, प्रवचन स्थल से उतरते शामियाने, उठाई जा रही दरियां, श्रद्धालुओं की उदास आंखें, अचानक मेले से सूनेपन में पसरता कस्बा और इन सब से बेखबर आगे बढ़ते जा रहा था वीतरागी और उनका संघ.

ऐसे हैं परम विद्वान, चिंतक, घोर तपस्वी ये जैन मुनि जो पिछले 53 बरसों से घोर तप में रत हैं. वे समाज  को कोई चमत्कारिक मंत्र नहीं अपितु दुखी के आंसू पोंछने, आदर्श जीवन जीने, परोपकार, सामाजिक सौहार्द्र, प्राणी मात्र का कल्याण, अपरिग्रह  व  स्त्री शिक्षा, स्त्री अधिकार संपन्नता  की ‘मंत्र दीक्षा’ देते  हैं. अठारह वर्ष की आयु में ब्रह्मचर्य की दीक्षा लेने वाले घोर तपस्वी संत आचार्य विद्यासागर जी दिगंबर जैन संत परंपरा के त्याग, तपस्या, मुनि परंपरा का  विलक्षण व आदर्श उदाहरण हैं. आचार्य श्री ने पिछले 48 बरसों से मीठे व नमक, पिछले 40 वर्ष से रस, फल का त्याग किया हुआ है. उन्होंने 18 वर्ष से रात्रि विश्राम के समय चटाई तक का भी त्याग किया हुआ है,  22 वर्ष से सब्जियों व दिन में सोने का भी त्याग कर रखा है.  26 वर्ष से मिर्च मसालों का त्याग किए हुए हैं. 

आहार में सिर्फ चुने अनाज, दालें व जल ही लेते हैं और जैन आगम की परंपरा का पालन करते हुए दिन में केवल एक बार कठोर नियमों का पालन कर खड़गासन मुद्रा में हाथ की अंजुलि में भोजन लेते हैं. भोजन में किसी भी प्रकार के सूखे फल और मेवा और किसी प्रकार के व्यंजनों का सेवन भी नहीं करते, बमुश्किल तीन घंटे की नींद लेते हैं और इसी तप साधना से अपनी इंद्रिय शक्ति को नियंत्रित कर एक करवट सोते हैं.

दिगंबर जैन संत पंरपरा के अनुरूप परम तपस्वी विद्यासागरजी  वाहन का उपयोग नहीं करते हैं, न शरीर पर कुछ धारण करते हैं. पूर्णत: दिगंबर अवस्था में रहते हैं. भीषण सर्दियों व बर्फ से ढंके इलाकों में भी दिगंबर जैन परंपरा के अनुरूप जैन साधु नग्न ही रहते हैं और सोने के लिए लकड़ी का तख्त ही इस्तेमाल करते हैं, पैदल ही विहार करते हुए देश भर में हजारों किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं.

आचार्य श्री विद्यासागर जी एक महान संत के साथ-साथ एक कुशल कवि, वक्ता एवं विचारक भी हैं, काव्य रुचि और साहित्यनुराग उन्हें विरासत में मिला है. उनकी चर्चित कालजयी कृति ‘मूकमाटी’ महाकाव्य है. यह रूपक कथा काव्य अध्यात्म दर्शन व युग चेतना का अद्भुत मिश्रण है. 300 से अधिक साधु-साध्वियों के आचार्य जी के संघ में एम टेक, एमसीए व उच्च शिक्षा प्राप्त मुनि गण हैं जो पूरी शिक्षा ग्रहण करने के बाद संसार को त्याग कर अपनी खोज और आत्मकल्याण की साधना में रत हैं, ये सभी अपने इस जीवन को जीवन की पूर्णता मानते हैं. 53 वर्ष पूर्व मात्र 22 वर्ष की आयु में अपने गुरु आचार्य ज्ञानसागरजी से दीक्षा लेने वाले इस संत के जीवन की एक अप्रतिम घटना यह है कि उनके गुरु ने अपने जीवनकाल में आचार्य पद को अपने इस शिष्य को सौंप कर अपने इस शिष्य से ही समाधिमरण सल्लेखना (जैन धर्मानुसार स्वेछामृत्युवरण) ली.

यह तपस्वी संत वर्षा योग चातुर्मास के लिए मध्यप्रदेश के इंदौर में विराजमान हैं. देश के शीर्ष नेतृत्व से लेकर समाज का सबसे कमजोर व्यक्ति सभी उनके लिए बराबर हैं. उनके भक्त जनों का इस वीतरागी की अनन्य साधना और तपस्या के प्रति समर्पण का एक कभी नहीं भूलने वाला क्षण... ऐसे ही एक बार जब वह पद प्रक्षालन के बाद आगे बढ़ रहे थे तो एक श्रद्धालु ने भाग कर जमीन पर उनके पैरों से गिरी पानी की कुछ बूंदें माथे पर लगा लीं. उस  भक्त की कोई याचना नहीं, कोई मन्नत नहीं और न ही किसी सिद्धि, मंत्र की याचना. वो था सिर्फ तपस्वी की साधना के प्रति नत मस्तक. नमोस्तु! अनियत वीतरागी. 

Web Title: saint Acharya Vidyasagar who gave the mantra of public welfare

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