आर.के. सिन्हा का ब्लॉग: क्यों चुनावी मुद्दा नहीं बनती शिक्षा? 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 10, 2019 08:00 AM2019-04-10T08:00:59+5:302019-04-10T08:00:59+5:30

कहीं-कहीं तो 220 बच्चों पर एक शिक्षक ही तैनात है और कहीं-कहीं पूरा स्कूल ही एकाध शिक्षामित्न के सहारे चल रहा है. क्या आप मानेंगे कि दिल्ली में 1028 स्कूलों में से 800 स्कूलों में प्रिंसिपल नहीं हैं?  इनके अलावा 27 हजार से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं. 

R.K. Sinha's blog: Why the election issue is not made education? | आर.के. सिन्हा का ब्लॉग: क्यों चुनावी मुद्दा नहीं बनती शिक्षा? 

आर.के. सिन्हा का ब्लॉग: क्यों चुनावी मुद्दा नहीं बनती शिक्षा? 

यह अपने आप में आश्चर्य का ही विषय है कि लोकसभा या विधानसभा चुनावों के दौरान शिक्षा के मसले पर कभी पर्याप्त बहस नहीं हो पाती. दरअसल देखा जाए तो शिक्षा को राम भरोसे छोड़ दिया गया है . हमने अपने यहां स्कूली स्तर पर दो तरह की व्यवस्थाएं लागू कर रखी हैं. पहला प्राइवेट पब्लिक स्कूल, दूसरा, सरकारी स्कूल. पब्लिक स्कूलों में तो सब कुछ उत्तम सा मिलेगा. वहां पर बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ सुशिक्षित शिक्षक भी उपलब्ध मिलेंगे. 

शिक्षकों पर नजर भी रखी जा रही है कि वे जिन विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हैं, उन विद्यार्थियों का बोर्ड की परीक्षाओं में किस तरह का परिणाम रहता है. यदि बोर्ड की कक्षाओं को पढ़ाने वाले अध्यापकों का प्रदर्शन कमजोर रहता है तो इन कक्षाओं के शिक्षकों से सवाल भी पूछे जाते हैं. दंड तक दिया जाता है. इनकी कक्षाओं के छात्नों के बेहतरीन परिणाम आने पर इन्हें पुरस्कृत भी किया जाता है. 

पर ये सब जरूरी बातें लगता है कि सरकारी स्कूलों पर लागू ही नहीं होतीं. वहां अध्यापकों की बड़ी पैमाने पर कमी होने के साथ-साथ जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का भी नितांत अभाव है. इनमें खेलों के मैदान तक नहीं हैं. अगर हैं भी तो वे खराब स्थिति में हैं. इनमें पुस्तकालय और प्रयोगशालाएं भी सांकेतिक रूप से ही चल रहे हैं. बड़ा सवाल यही है कि सभी दल शिक्षा को लेकर अपनी भावी योजनाओं से देश के मतदाताओं को अवगत क्यों नहीं करा देते? उन्हें ये सब करने में डर क्यों लगता है? उसके बाद जनता अपना फैसला सुना दे. 

पर अभी तक के चुनाव प्रचार के दौरान ये सब देखने को नहीं मिला है. यह विदित है कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत एक स्कूल में 35 बच्चों पर एक अध्यापक होना अनिवार्य है. पर नियमों को ताक पर रखा जा रहा है. कहीं-कहीं तो 220 बच्चों पर एक शिक्षक ही तैनात है और कहीं-कहीं पूरा स्कूल ही एकाध शिक्षामित्न के सहारे चल रहा है. क्या आप मानेंगे कि दिल्ली में 1028 स्कूलों में से 800 स्कूलों में प्रिंसिपल नहीं हैं?  इनके अलावा 27 हजार से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं. 

Web Title: R.K. Sinha's blog: Why the election issue is not made education?