रिमोट वोटिंग : सुविधा से ज्यादा शुचिता की दरकार, निर्भय व निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित कराने के क्या हैं उपाय?
By कृष्ण प्रताप सिंह | Published: January 6, 2023 02:35 PM2023-01-06T14:35:01+5:302023-01-06T14:35:42+5:30
रिमोट वोटिंग से पहले इन और इनसे जुड़े कई दूसरे सवालों के जवाब दिए जाने इसलिए भी बहुत जरूरी है कि इन दिनों न सिर्फ चुनाव प्रक्रिया बल्कि चुनाव आयोग की शुचिता भी संदेहों के घेरे में है। आयोग में नियुक्तियों को लेकर तो सर्वोच्च न्यायालय तक को सवाल उठाने पड़ रहे हैं।
चुनाव आयोग द्वारा प्रोटोटाइप रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (आरवीएम) से वोटिंग जिससे नौकरी, रोजगार व शिक्षा समेत अनेक कारणों से अपने चुनाव क्षेत्रों से दूर रह रहे मतदाता अपने मताधिकार के प्रयोग के लिए लंबी-लंबी यात्राएं करके वहां पहुंचने के झंझट से छुटकारा पा जाएंगे और जहां हैं, वहीं वोट देने की सुविधा पा जाएंगे, की तैयारी के बाबत एक वाक्य में टिप्पणी करनी हो तो कह सकते हैं कि सुनने में यह बात बहुत अच्छी लगती है। शायद इसीलिए पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने भी इसका स्वागत करने में देर नहीं की है।
लेकिन इससे जुड़े कई अपेक्षाकृत बड़े सवालों की अनदेखी नहीं की जा सकती। इनमें सबसे बड़ा सवाल यह कि आयोग की नजर में मतदान की यह सुविधा ज्यादा महत्वपूर्ण है या उसकी प्रक्रिया की शुचिता यानी पवित्रता? अगर पवित्रता, जो देश के लोकतंत्र में मतदाताओं के विश्वास को अगाध बनाए रखने के लिए लाजिमी है, तो पूछना ही होगा कि आयोग ने आगामी 16 जनवरी को राजनीतिक पार्टियों को आरवीएम की कार्यप्रणाली दिखाने के लिए आमंत्रित करने से पहले यह क्यों नहीं बताया कि उसकी इस तैयारी में वे उपाय कहां हैं, जिनसे वह निर्भय व निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करेगा?
दूसरे शब्दों में पूछें तो इस सुविधा से प्रचार-क्षेत्र के असीम हो जाने से प्रत्याशियों के समक्ष मतदाताओं तक पहुंचने से जुड़ी जो समस्याएं पैदा होंगी, उनका निवारण आयोग कैसे करेगा? क्या दूरस्थ मतदान सुविधा की तर्ज पर वह दूरस्थ मतदाताओं से संपर्क के लिए प्रत्याशियों को दूरस्थ प्रचार की सुविधा भी उपलब्ध कराएगा? अगर हां तो कैसे और नहीं तो क्यों? प्रत्याशियों के क्षेत्र के मतदाता उनसे दूर रहकर उनके या उनके एजेंटों/प्रतिनिधियों की गैरहाजिरी में मतदान करेंगे तो तकनीक के इस युग में यह तो मान सकते हैं कि उनकी पहचान से जुड़े सारे संदेहों का निवारण कर लिया जाएगा, लेकिन यह कैसे पक्का किया जाएगा कि अपेक्षाकृत बड़ी या सबल पार्टी अथवा प्रत्याशी द्वारा लोभ-लालच देकर, ‘इमोशनल अत्याचार’ या भयादोहन करके उन्हें अपने पक्ष में मतदान के लिए विवश नहीं किया गया है? और इसे पक्का नहीं किया जाएगा तो क्या यह मतदान प्रक्रिया की शुचिता से समझौता करना नहीं होगा? होगा तो वह सत्ता दल को छोड़ और किसके पक्ष में जाएगा?
रिमोट वोटिंग से पहले इन और इनसे जुड़े कई दूसरे सवालों के जवाब दिए जाने इसलिए भी बहुत जरूरी है कि इन दिनों न सिर्फ चुनाव प्रक्रिया बल्कि चुनाव आयोग की शुचिता भी संदेहों के घेरे में है। आयोग में नियुक्तियों को लेकर तो सर्वोच्च न्यायालय तक को सवाल उठाने पड़ रहे हैं।