अश्विनी महाजन का ब्लॉगः किसानों के लिए घातक होगा आरसीईपी समझौता
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 24, 2019 11:09 AM2019-10-24T11:09:53+5:302019-10-24T11:09:53+5:30
पिछले कुछ समय में भारत द्वारा आरसीईपी के नाम पर 10 आसियान देशों (इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनी, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया) जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और चीन के साथ-साथ एक नए समझौते की कवायद चल रही है.
अश्विनी महाजन का ब्लॉग
भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होने के नाते दूसरे सदस्य देशों से कई प्रकार के कृषि उत्पादों के आयात की अनुमति देता है, लेकिन अपनी कृषि के बचाव के लिए डब्ल्यूटीओ समझौते में उपलब्ध प्रावधानों के अंतर्गत आयात शुल्क लगाकर कृषि उत्पादों के आयात को रोकने का भी भरसक प्रयास करता है. ताकि सस्ते विदेशी कृषि उत्पाद देश में आकर हमारे किसानों के लिए मुश्किलें न खड़ी करें. गौरतलब है कि सस्ते विदेशी कृषि उत्पाद देश में कृषि उत्पादों की कीमत को कम कर किसानों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर सकते हैं. इसलिए किसानों के हित में, टैरिफ सुरक्षा कम होने पर कई मामलों में तो आयात प्रतिबंधित भी कर दिया जाता है.
पिछले कुछ समय में भारत द्वारा आरसीईपी के नाम पर 10 आसियान देशों (इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनी, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया) जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और चीन के साथ-साथ एक नए समझौते की कवायद चल रही है. इसमें कृषि एवं डेयरी के उत्पादों में मुक्त व्यापार के नाम पर अधिकांश उत्पादों पर आयात शुल्क शून्य पर लाने हेतु एक समझौता प्रस्तावित है.
हालांकि आरसीईपी समझौते में विभिन्न आरसीईपी देशों से आने वाले मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की भी 80 प्रतिशत से 95 प्रतिशत वस्तुओं पर आयात शुल्क शून्य करने का प्रस्ताव है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव स्टील, केमिकल्स, आटोमोबाइल्स, साइकिल, टेलीकॉम समेत अधिकांश क्षेत्रों पर पड़ने वाला है और ये तमाम क्षेत्र इस समझौते का विरोध भी कर रहे हैं. लेकिन सबसे ज्यादा गरीब होने के कारण शून्य ट्रैरिफ पर कृषि एवं डेयरी उत्पादों के आयात की अनुमति दिए जाने के कारण किसानों पर इस समझौते का दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा होगा.
यही नहीं आयात शुल्कों पर कृषि उत्पादों के आयात की अनुमति के कारण भारतीय कृषि उत्पाद प्रतिस्पर्धा से यदि बाहर हो जाते हैं तो हमारी निर्भरता विदेशों पर बढ़ जाएगी. आज जब हम कहते हैं कि भारत कृषि में आत्मनिर्भर देश बन चुका है, आरसीईपी समझौता हो जाने के कारण हम शायद नहीं कह पाएंगे.
अभी तक के तमाम अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों में कृषि और डेयरी को अलग रखा जा रहा है. इसका कारण यह है कि भारत में कृषि एवं डेयरी बहुत छोटे पैमाने पर चलती है. हमारे देश की आधे से ज्यादा आबादी कृषि पर आधारित है, वहीं विकसित देशों में मात्र 2 से 4 प्रतिशत लोग ही कृषि पर आश्रित हैं. ऐसे में इतनी बड़ी जनसंख्या को जीविका देने वाली कृषि और डेयरी को अंतर्राष्टÑीय बाजार के उतार-चढ़ावों पर नहीं छोड़ा जा सकता.