राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघः 7 साल विराम के बाद विज्ञान भवन लौट रहा संघ, आखिर क्या है मायने

By हरीश गुप्ता | Updated: July 9, 2025 05:22 IST2025-07-09T05:22:34+5:302025-07-09T05:22:34+5:30

Rashtriya Swayamsevak Sangh: राजनीतिक हवाओं के बदलते समय में संघ की अपनी शाखाओं और वैचारिक हलकों से परे, समाज के व्यापक वर्ग के साथ फिर से जुड़ने की मंशा का संकेत देता है.

Rashtriya Swayamsevak Sangh After break 7 years rss Sangh returning Vigyan Bhavan 3 day program know schedule blog harish gupta | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघः 7 साल विराम के बाद विज्ञान भवन लौट रहा संघ, आखिर क्या है मायने

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Highlightsसेवानिवृत्त नौकरशाहों सहित प्रतिदिन 1,500 से अधिक लोग इसमें शामिल हुए.कुल मिलाकर लगभग 220 विषय के अनुसार सावधानीपूर्वक छांटे हुए और चुनिंदा उत्तर दिए गए. संगठन के लिए खुलेपन का एक असामान्य क्षण था. इससे पहले, इस तरह का आखिरी आयोजन 1974 में हुआ था,

Rashtriya Swayamsevak Sangh: सात साल के विराम के बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष में नए सिरे से संपर्क अभियान को चिह्नित करते हुए, इस वर्ष के उत्तरार्ध में दिल्ली के विज्ञान भवन में अपनी सार्वजनिक व्याख्यान श्रृंखला को फिर से शुरू करने जा रहा है. संभवत: अगस्त के अंत या सितंबर की शुरुआत में निर्धारित तीन दिवसीय कार्यक्रम का नेतृत्व आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत करेंगे. यह राजनीतिक हवाओं के बदलते समय में संघ की अपनी शाखाओं और वैचारिक हलकों से परे, समाज के व्यापक वर्ग के साथ फिर से जुड़ने की मंशा का संकेत देता है.

सितंबर 2018 में आयोजित पिछली ऐसी श्रृंखला ऐतिहासिक मोड़ थी. यह चार दशकों में पहली बार था जब आरएसएस के सरसंघचालक ने इतने बड़े पैमाने के मुख्यधारा के सार्वजनिक समारोह को संबोधित किया. उद्योगपतियों, फिल्मी हस्तियों, राजनयिकों, शिक्षाविदों, न्यायाधीशों और सेवानिवृत्त नौकरशाहों सहित प्रतिदिन 1,500 से अधिक लोग इसमें शामिल हुए.

पहले दो दिन भागवत ने अकेले भाषण दिया. तीसरे दिन उन्होंने पहले से पूछे गए गुमनाम सवालों का जवाब दिया कुल मिलाकर लगभग 220 विषय के अनुसार सावधानीपूर्वक छांटे हुए और चुनिंदा उत्तर दिए गए. यह एक अंतर्मुखी संगठन के लिए खुलेपन का एक असामान्य क्षण था. इससे पहले, इस तरह का आखिरी आयोजन 1974 में हुआ था,

जब तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने पुणे की वसंत व्याख्यानमाला में संबोधित किया था, जिसमें उन्होंने अस्पृश्यता को ‘पाप’ घोषित किया था. सामाजिक मुद्दों पर संघ के विचारों में परिवर्तन का यह एक ऐतिहासिक क्षण था. इस वर्ष की व्याख्यान श्रृंखला के साथ, आरएसएस से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने संदेश को और अधिक स्पष्ट करे,

वैचारिक स्पष्टता सामने रखे और लुटियंस दिल्ली के दिल से अपनी सांस्कृतिक व बौद्धिक छाप का विस्तार करे. अपने शताब्दी वर्ष के अवसर पर, संघ न केवल चिंतन करने के लिए तैयार है बल्कि आगे आने वाली लड़ाइयों - राजनीतिक, वैचारिक और सामाजिक - के लिए खुद को फिर से तैयार करने के लिए भी तैयार है.

केजरीवाल की नजर गुजरात पर

महीनों की खामोशी के बाद, आप नेता अरविंद केजरीवाल गुजरात पर विशेष ध्यान देने के साथ राष्ट्रीय मंच पर फिर से उभरे हैं. विसावदर में गोपाल इटालिया की उपचुनाव में जीत से उत्साहित केजरीवाल गुजरात को अपना दूसरा राजनीतिक घर बनाने की कोशिश कर रहे हैं- उनका लक्ष्य आम आदमी पार्टी को भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित करना है.

केजरीवाल की चाल कांग्रेस के लगातार कमजोर होते जाने पर आधारित है. 2017 से ही यह पुरानी पार्टी लगातार गिरती जा रही है- 2022 में इसकी सीटों की संख्या 77 से गिरकर 17 पर आ गई है.  तब से कांग्रेस के पांच विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं. यहां तक कि गुजरात में इसके प्रतीकात्मक चेहरे शक्ति सिंह गोहिल ने भी हालिया हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए राज्य प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया.

2021 में सूरत में स्थानीय निकाय में जीत के जरिए गुजरात की राजनीति में प्रवेश करने वाली आप को एक बढ़ती हुई शून्यता दिख रही है. आप के गुजरात अध्यक्ष इसुदान गढ़वी ने घोषणा की, ‘विसावदर सेमीफाइनल है; 2027 हमारा होगा.’ राहुल गांधी का पुनरुद्धार कार्यक्रम - संगठन सृजन अभियान - लड़खड़ा गया है, स्थानीय स्तर की लगभग 40 प्रतिशत सिफारिशों को हाईकमान ने खारिज कर दिया है,

जिससे गुटबाजी और गहरी हो गई है. लेकिन आप की अपनी यात्रा भी कम बोझिल नहीं है. हार्दिक पटेल की तरह आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा इटालिया कानूनी मामलों का सामना कर रहे हैं.  संदेह करने वाले याद करते हैं कि कैसे पटेल भी एक बार कांग्रेस में शामिल हुए थे, लेकिन दो साल के भीतर ही भाजपा में चले गए.

गुजरात में अतीत में तीसरे मोर्चे के विफल होने के बावजूद, केजरीवाल बड़ा दांव लगा रहे हैं - उम्मीद है कि उनकी शासन प्रणाली और बाहरी व्यक्ति की छवि भाजपा-कांग्रेस की द्वैतता को तोड़ सकती है.  जैसे-जैसे वे राज्य में गहरी राजनीतिक जड़ें जमाएंगे, दिल्ली और पंजाब के बाद गुजरात आप की अगली बड़ी प्रयोगशाला बन सकता है.

नीतीश के दावों की खुलती पोल

नीतीश कुमार सरकार अपने शासन का ढोल पीट रही है और एक-एक करके हर मोर्चे पर ढहती जा रही है; चाहे वह कानून-व्यवस्था हो, योजनाएं हों या शिक्षा. उनके शासन में बिहार में औद्योगिक विकास और वृद्धि को ही देखें! नीतीश कुमार ने राज्य में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए विदेश यात्राएं भी कीं.

यहां तक कि एनडीए के अन्य नेता भी राज्य में औद्योगिक विकास के बारे में बात कर रहे हैं. लेकिन एक पल के लिए आप हैरान रह जाएंगे, जब आपको पता चलेगा कि 2023-24 के दौरान बिहार ने कितना एफडीआई और अन्य विदेशी मुद्रा प्रेषण आकर्षित किया. मात्र 1.3 प्रतिशत! रिजर्व बैंक के भारत के भुगतान संतुलन के आंकड़ों के अनुसार, भारत में सकल आवक प्रेषण 118.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर था.

वर्ष 2023-24 के लिए प्रेषण पर भारतीय रिजर्व बैंक के सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत के आवक प्रेषण में बिहार की हिस्सेदारी 1.3 प्रतिशत थी. कुल एफडीआई प्रवाह में इक्विटी प्रवाह, अनिगमित निकायों की इक्विटी पूंजी, पुनर्निवेशित आय और अन्य पूंजी शामिल है. अक्तूबर 2019 से दिसंबर 2024 की अवधि में बिहार में संचयी एफडीआई इक्विटी प्रवाह 215.76 मिलियन अमेरिकी डॉलर है.

कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि बिहार में कितना निवेश आया और कितना औद्योगिक विकास हो सकता था. दिलचस्प बात यह है कि हाल ही में एक संसदीय प्रश्न का उत्तर देते समय सरकार ने आधिकारिक तौर पर यह डाटा साझा किया.

ऐसा कहा जाता है कि विदेशी निवेश प्राप्तकर्ता क्षेत्रों की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करके राज्य-स्तरीय विकास में योगदान देता है. एफडीआई प्रवाह के परिणामस्वरूप पूंजी, तकनीकी जानकारी और कौशल के हस्तांतरण के माध्यम से आर्थिक गतिविधि में वृद्धि होती है.

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