रमेश ठाकुर का ब्लॉग: रैलियों की भीड़ वोटिंग में नदारद?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 30, 2019 07:36 IST2019-04-30T07:36:43+5:302019-04-30T07:36:43+5:30
चुनावी समीक्षक व पंडित इस बात से हैरान हैं कि चुनावी रैलियों में दिखने वाला लोगों का हुजूम पोलिंग वाले दिन बूथों से नदारद क्यों है?

रमेश ठाकुर का ब्लॉग: रैलियों की भीड़ वोटिंग में नदारद?
चुनावी रैलियों में उमड़ने वाली भारी भरकम भीड़ संदेह पैदा करती है. बड़े नेताओं की सभाओं में जो लाखों लोग दिखाई देते हैं वे वोटिंग वाले दिन नदारद होते हैं. सवाल उठता है कि यह भीड़ कहीं दिखावे मात्र के लिए ही तो नहीं जो लोभ-लालच देकर जुटाई जाती है? 17वीं लोकसभा के लिए चुनाव आयोग की पूर्व तैयारियों पर गौर करें तो दावा किया गया था कि मौजूदा चुनाव में वोटिंग का प्रतिशत 80 से भी ज्यादा रहेगा. लेकिन सच्चई यह कि गुजरे चार चरणों में वोटिंग का प्रतिशत 16वीं लोकसभा से ज्यादा नहीं बल्कि कुछ कम ही रहा. असम, मणिपुर, इंफाल जैसे क्षेत्रों में वोटिंग की स्थिति जरूर अच्छी रही है.
चुनावी समीक्षक व पंडित इस बात से हैरान हैं कि चुनावी रैलियों में दिखने वाला लोगों का हुजूम पोलिंग वाले दिन बूथों से नदारद क्यों है? बड़े नेताओं की रैलियों में पांच से सात लाख लोग पहुंच रहे हैं, लेकिन वोटिंग के दिन सभी उम्मीदवारों के लिए भी उतना वोट नहीं पड़ रहा. चुनाव के चार चरण संपन्न हो चुके हैं और कमोबेश सभी चरणों में उम्मीद से कम वोटिंग हुई. तो क्या ऐसा माना जाए कि चुनावी रैलियों की भीड़ पैसे व उपहार देकर बुलाई जा रही है?
वोटिंग के लगातार कम होते प्रतिशत को नेताओं के प्रति जनता की नाराजगी कहें या लोगों का सिस्टम से उठता विश्वास? दरअसल यह बहुत गंभीर और चिंतनीय विषय है. चुनाव आयोग के अलावा सभी दलों को इस विषय पर मनन-मंथन की जरूरत है. लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए वोटिंग का कम होना अच्छा नहीं माना जाएगा.
भारी भरकम भीड़ की एक तस्वीर 25 व 26 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उनके संसदीय क्षेत्र काशी में आमद के दौरान देखने को मिली. नामांकन के एक दिन पहले उनकी रैली में करीब आठ लाख पहुंचे. और यही स्थिति नामांकन वाले दिन भी देखने को मिली. तथ्य यह है कि अगर इतने ही वोटिंग वाले दिन वोट प्रधानमंत्री के पक्ष में पड़ जाएं तो मतदान के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ जाएगा.