रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉगः भारतीय सभ्यता दृष्टि के बोध का पर्व विजयादशमी 

By प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल | Published: October 15, 2021 12:18 PM2021-10-15T12:18:00+5:302021-10-15T12:19:54+5:30

आजादी के अमृत महोत्सव पर विजयादशमी का विशेष महत्व है। यही वह दिन है जब 25 अक्तूबर 1909 को इंडिया हाउस में ‘हिंद स्वराज’ का विचार गांधी के मन में उपजा था। यह वही तिथि है जब 1925 में विजयादशमी यानी दशहरा के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी।

rajnish kumar shukla's blog vijayadashami, the festival of realization of Indian civilizational vision | रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉगः भारतीय सभ्यता दृष्टि के बोध का पर्व विजयादशमी 

रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉगः भारतीय सभ्यता दृष्टि के बोध का पर्व विजयादशमी 

विजयादशमी भारत में असत्य पर सत्य की, हिंसा पर करुणा की, लोक शासन पर लोक कल्याण की, तानाशाही पर लोकमत की, अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व है। यह राम की रावण पर विजय का पर्व है। यह पर्व है भारत में लोक कल्याणकारी आध्यात्मिक जीवन दृष्टि से संपन्न रामराज्य की स्थापना का। यह केवल उत्सव मात्न नहीं है और शत्नु पर विजय की कामना का पर्व भी नहीं है। यह अवसर है शत्नु भाव के नाश का और मित्न भाव के उदय का।

राम-रावण युद्ध के पूर्व ही राम ने स्नेह, सौख्य, औदार्य, करुणा, मुदिता, धैर्य, शुचिता, सत्य, इत्यादि मूल्यों को अपनी विजय का उद्देश्य प्रतिपादित किया था। पैदल राम, वनवासी राम, विरथ राम त्रिलोक विजयी रावण की अत्याचारी और लोलुप राजसत्ता को अत्यंत साधारण जीवों के बल पर चुनौती देते हैं। सादगी, शुचिता, मर्यादा और नैतिकता के बल पर आसुरी यांत्रिक सभ्यता पर विजय अर्जित करते हैं। यह राजा की नहीं राम की विजय है, संस्कार की विजय है, इसलिए वास्तविक विजय है और यह पर्व सच्चे अर्थो में भारत के जन-जन का विजयपर्व है।

आजादी के अमृत महोत्सव पर विजयादशमी का विशेष महत्व है। यही वह दिन है जब 25 अक्तूबर 1909 को इंडिया हाउस में ‘हिंद स्वराज’ का विचार गांधी के मन में उपजा था। यह वही तिथि है जब 1925 में विजयादशमी यानी दशहरा के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी। संघ अपने स्थापना काल से ही समाज में संगठन के स्थान पर समाज का संगठन, राजसत्ता से अलग, राजनीति से निरपेक्ष राष्ट्रीयता के भाव के साथ राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक के शारीरिक, सामाजिक एवं बौद्धिक विकास पर ही ध्यान दे रहा है जिससे लोग संस्कारवान व अनुशासित बनें और भारत वर्ष पुन: विश्वगुरु के सिंहासन पर आसीन हो।

बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने सन् 1956 में विजयदशमी के दिन ही नागपुर में अपने लाखों अनुयायियों के साथ धम्म दीक्षा ली थी। उन्होंने विजयादशमी पर मैत्नी, करुणा, मुदिता और उपेक्षा भाव का पल्लवन करते हुए अस्तेय, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, सत्य और मादक द्रव्यों के त्याग के पंचशील का संकल्प स्वीकार करते हुए नैतिकता, स्वतंत्नता और बंधुता पर आधारित समतामूलक समाज का उद्घोष किया था।

इस बार की विजयादशमी विशिष्ट है। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में गांधी और दीनदयाल का सर्वोदय और अंत्योदय का रास्ता संपोष्य विकास का एकमात्न रास्ता है। भारत ने इसका शंखनाद किया है। वस्तुत: यह शोषणकारी सभ्यता के विरुद्ध समता, ममता और पोषणकारी दृष्टि से युक्त सभ्यता का पावन पर्व है। विजय का तात्पर्य मनुष्य या अन्य किसी प्राणी को दास बनाना नहीं है बल्कि पाशविक प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करना है। यही वह तिथि है जब नौ दिन तक चले कलिंग युद्ध के नरसंहार से व्यथित चंड अशोक ने धम्म दीक्षा ली थी और चंड अशोक से ‘देवानामप्रिय’ अशोक बन गया। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।

भारतीय इतिहास में विजयादशमी एक ऐसा पर्व है जो असलियत में हमारी राष्ट्रीय अस्मिता और संस्कृति का प्रतीक बन चुका है। रावण दहन कर हम सत्य के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करते हैं। विजय का हिंदू अर्थ है स्वधर्म और स्वदेश की रक्षा, न कि युद्ध कर दूसरों की भूमि, धन और स्वत्व का अपहरण। यही निहितार्थ है विजयपर्व विजयादशमी का। ऐसी विजय में किसी का पराभव नहीं होता, राक्षसों का भी पराभव नहीं हुआ, केवल रावण के अहंकार का संहार हुआ। राक्षसों की सभ्यता नष्ट नहीं हुई, अपितु उसको दैवी संस्कृति का सहकार मिला। विजय का सभ्यतागत अर्थ है सर्वोदय के भाव से मानव एवं सभ्यता के रिपुओं का दमन। विजय यात्ना का तात्पर्य है इंद्रियों की लोलुप वृत्ति का दमन कर चिन्मयता का विस्तार और विजयादशमी का अर्थ है काम, क्र ोध आदि दश शत्नुओं पर विजय का अनुष्ठान। यही विजय वास्तविक विजय है। दशहरा को इसीलिए भारत में विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है क्योंकि अन्य विजय सत्ता के युद्ध हैं। इनका लक्ष्य एक को हरा कर अन्य सत्ता को प्रतिस्थापित करना है। इन सब में प्रतिशोध का असात्विक भाव तो है ही, सत्ता का राजसिक अहंकार भी है जबकि राम की विजय वानर, रीछ और पैदल चलने वाले मनुष्य की सत्य और
नैतिकता के लिए कृत संघर्ष की विजय गाथा है। 

आज वैश्विक शत्नुता का भाव जो प्रचंड आकार ले रहा है उससे मुक्ति का उपक्रम केवल कल्याण मित्नता की सभ्यता से संभव है। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, समर्थ रामदास, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, तिलक, गांधी, विनोबा, बाबासाहब आंबेडकर और दीनदयाल इन सबने एक स्वर से विश्व शांति और मंगल की स्थापना और अहिंसक सभ्यता का स्वप्न देखा था। पूरी दुनिया में आज सर्वाधिक लोकप्रिय साधन विधि योग में पतंजलि अहिंसा की प्रतिष्ठा को वैर त्याग ही कहते हैं। सर्वत्न बढ़ते हुए वैर भाव और प्रतिद्वंद्विता में शत्नु भाव पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती। गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर और स्वयं की सफलता की आपाधापी से परे सबके कल्याण की कामना के साथ किया गया युद्ध ही विजयादशमी का पाथेय है।

Web Title: rajnish kumar shukla's blog vijayadashami, the festival of realization of Indian civilizational vision

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे