कुंवर नटवर सिंह का ब्लॉग: राजीव गांधी ने रखी थी तकनीकी विकास की नींव

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 21, 2022 08:30 AM2022-05-21T08:30:07+5:302022-05-21T08:36:48+5:30

प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे पहले उन्होंने केंद्र सरकार के अधिकतर कार्यालयों में आधुनिक संयंत्र लगवाकर उनका चेहरा ही बदल दिया. जाहिर है अफसरों और कर्मचारियों की कार्यशैली भी बदल गई. वे हर बात पर भारत की तुलना विकसित देशों से करते थे और इसे भी विकसित देश बनाना चाहते थे.

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कुंवर नटवर सिंह का ब्लॉग: राजीव गांधी ने रखी थी तकनीकी विकास की नींव

Highlightsदेश में कम्प्यूटर और टेलीफोन की आधुनिक तकनीक लाने वाले राजीव गांधी ही थे.अगर वे पांच वर्ष और जिंदा रहते तो देश आधुनिक युग में कभी का पहुंच चुका होता.

भारत को विज्ञान और तकनीक के मामले में 21वीं सदी के लिए तैयार करने का श्रेय राजीव गांधी को ही जाता है. उन्हें मशीन और उनके पुर्जों की अच्छी जानकारी थी. हमेशा टेक्नोलॉजी से ही जुड़ी हुई किताबें पढ़ते रहते थे. देश में कम्प्यूटर और टेलीफोन की आधुनिक तकनीक लाने वाले राजीव गांधी ही थे.

इस काम के लिए उन्होंने अपने मित्र सैम पित्रोदा को अमेरिका में उनकी अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर भारत आने के लिए मनाया था. सीधे कहा कि हमारे यहां टेलीफोन नहीं है जल्द से जल्द सभी को टेलीफोन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी आपकी है. तब डायल घुमाने वाले टेलीफोन होते थे.

उन्होंने न सिर्फ बटन वाले टेलीफोन का उत्पादन भारत में शुरू कराया बल्कि क्रॉसबार एक्सचेंज की जगह आधुनिकतम इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज लगवाकर टेलीफोन की सुविधा घर-घर सुलभ कराने का प्रयास किया.

अब दूसरे शहर या देश में फोन करने के लिए ट्रंककॉल बुक करने की जरूरत नहीं थी. अपने घर से बैठे-बैठे आप एसटीडी पर बात कर सकते थे. जिनके पास फोन नहीं थे वह एसटीडी बूथ पर जाकर अपने प्रियजन का हालचाल ले सकते थे.

1984 में जब वे प्रधानमंत्री बने उसी समय मैंने भी विदेश सेवा से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ा और उनके मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री बना. मुझे इस्पात मंत्रालय दिया गया. मैंने कहा कि इसके बारे में मुझे तो कुछ भी नहीं पता तो उन्होंने कहा कि यह सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय है. हर चीज में इस्पात ही लगता है.

मुझे सलाह दी कि जाओ देश के सभी इस्पात संयंत्रों का दौरा करो और देखो उनमें क्या कमी है. जब उन्हें बताया कि इन्हें आधुनिक बनाने में अरबों रुपए खर्च होंगे तो उन्होंने तुरंत धनराशि उपलब्ध कराई.

प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे पहले उन्होंने केंद्र सरकार के अधिकतर कार्यालयों में आधुनिक संयंत्र लगवाकर उनका चेहरा ही बदल दिया. जाहिर है अफसरों और कर्मचारियों की कार्यशैली भी बदल गई. वे हर बात पर भारत की तुलना विकसित देशों से करते थे और इसे भी विकसित देश बनाना चाहते थे.

मैंने उनके साथ कई देशों का भ्रमण किया. एक बार हम अफ्रीकी देश नामीबिया की आजादी के जश्न में शामिल होने गए. वहां तब दक्षिण अफ्रीका होकर ही जाया जा सकता था और दक्षिण अफ्रीका के साथ हमारे राजनयिक संबंध नहीं थे.

मैंने जांबिया के तत्कालीन राष्ट्रपति केनेथ कोंडा से बात की और हम एक रात जांबिया की राजधानी लुसाका में रुके. रात में राजीव गांधी ने अपने सामान में से तार से जुड़ी कुछ चीजें निकालीं और मुझे भी उनकी मदद करने को कहा. मैंने पूछा आप कर क्या रहे हैं? उन्होंने कहा- मैं रेडियो सेटअप कर रहा हूं. मैं खबरें सुने बिना नहीं रह सकता. इसीलिए अपना रेडियो अपने साथ लेकर चलता हूं. मैंने तब तक इतना छोटा रेडियो नहीं देखा था.

अगर वे पांच वर्ष और जिंदा रहते तो देश आधुनिक युग में कभी का पहुंच चुका होता. उनका चीजों को देखने का तरीका एकदम अलग था. उनकी जानकारी के सामने तो नौकरशाह भौंचक्के रहते थे. इसीलिए उनके किसी भी प्रोजेक्ट में नौकरशाह टांग नहीं अड़ा पाए.

1988 में स्वीडन के दौरे पर सबसे पहले मोबाइल की फैक्ट्री देखने गए. टेस्ट करने के लिए उन्होंने वहीं से दिल्ली में टेलीकॉम विभाग के हेड अग्रवाल साहब को फोन लगाया. किसी सेक्रेटरी ने फोन उठाया और जैसे ही सुना कि राजीव गांधी बोल रहे हैं उसे लगा कि कोई मजाक कर रहा है और उसने फोन रख दिया. दूसरी बार भी ऐसा ही हुआ. लौटकर आ कर उन्होंने अग्रवाल को बुलाया और भारत में मोबाइल बनाने के इंतजाम करने को कहा.

इससे भी पहले 7 मार्च 1983 को दिल्ली में गुट निरपेक्ष देशों का सम्मेलन हुआ. उसके लिए भी 6 मोबाइल फोन स्वीडन से मंगाए गए. भारत में किसी को यह तकनीक नहीं पता थी इसलिए इंजीनियर भी साथ आए. एक छोटा एक्सचेंज बनाया. ये मोबाइल फोन दिल्ली की सीमा में हर जगह काम कर रहे थे.

कम लोगों को ही पता होगा कि अपने कार्यकाल में राजीव गांधी ने परमाणु बम बनवा दिए थे. अगर उन्हें दूसरा कार्यकाल मिला होता तो वे परीक्षण भी करवा लेते. यानी परमाणु परीक्षण का जो श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को मिला, उसकी जमीन राजीव गांधी ने ही तैयार की थी.

उनमें इंतजार करने का धैर्य नहीं था. वे हर काम तेजी से करना चाहते थे. कई बार अपनी गाड़ी खुद ड्राइव करते. 120 से 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलाते थे. सुरक्षाकर्मियों और साथियों की गाड़ियां पांच से 10 किलोमीटर पीछे छूट जातीं. सोनिया जी बार-बार कहती थीं गो स्लो, गो स्लो (धीमे चलाओ). लेकिन वे किसी की भी एक न सुनते.

एक बार हम टर्की गए. उन्होंने कोई नया हवाई जहाज खरीदा था. राजीव गांधी ने उसे उड़ाकर देखा. बाद में मैंने उनसे कहा कि यह आपने ठीक नहीं किया. अब आप सिर्फ पायलट नहीं हैं. आप भारत के प्रधानमंत्री हैं. आप बिना किसी को बताए टेस्ट फ्लाइट पर क्यों चले गए. उन्होंने कहा मुझे कुछ नहीं होगा. मैं 20 साल से हवाई जहाज उड़ा रहा हूं. वह न सिर्फ दिलेर थे बल्कि स्वभाव से खतरे उठाने वाले भी थे.

पंचायती राज की संकल्पना भले ही मणिशंकर अय्यर की थी लेकिन उसे समझ कर जमीन पर उतारने वाले राजीव गांधी थे. उनकी वजह से ही आज गांव सशक्त बने हैं और सरकार के खजाने से पैसा सीधे गांवों तक पहुंच रहा है, सरकारी योजनाएं भी.

वे न सिर्फ बेहतरीन इंसान थे बल्कि दूरदर्शी प्रशासक भी. 1984 में उन्हें मिला जनादेश भारत के लोकतंत्र में सबसे बड़ा था. लेकिन कुछ सलाहकारों की कारगुजारियों की वजह से भारत के इतिहास में उन्हें वह स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे.

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