रहीस सिंह का ब्लॉग: संबंधों को तरोताजा करती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूरोप यात्रा

By रहीस सिंह | Published: May 6, 2022 08:55 AM2022-05-06T08:55:20+5:302022-05-06T08:58:14+5:30

दुनिया आज कई चुनौतियों का सामना कर रही है। इसमें महामारी से लेकर युद्ध जैसे संकट शामिल है। इन सबके बीच पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने स्थितियों को ठीक से समझते हुए संतुलन कायम रखने में कामयाबी हासिल की है।

Rahees Singh blog: Prime Minister Narendra Modi Europe visit to refresh ties | रहीस सिंह का ब्लॉग: संबंधों को तरोताजा करती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूरोप यात्रा

संबंधों को तरोताजा करती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा (फाइल फोटो)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूरोप की यात्रा ऐसे समय में संपन्न हुई जब विश्वव्यवस्था का संक्रांति काल है और दुनिया नई चुनौतियों का सामना कर रही है. कोविड-19 विदा नहीं हुआ है और उसके प्रभाव अभी लंबे समय तक रहने हैं यानी अभी दुनिया को एकजुट होकर चुनौतियों को हराते हुए शांति, समृद्धि और सुरक्षा के लिए काम करने की आवश्यकता थी लेकिन यूक्रेन युद्ध ने इसे नेपथ्य की ओर धकेलकर नई तरह की चुनौतियों को आगे कर दिया. 

यह युद्ध एक ऐसी विभाजक रेखा का निर्माण कर रहा है जहां से फिर ‘नियो कोल्डवाॅर’ (नव शीतयुद्ध) की शुरुआत हो सकती है, युद्ध के परिणाम चाहे जो रहें. गौर से देखें तो भारत ने न केवल इन परिस्थितियों को ठीक से समझा बल्कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध पर तटस्थता की एक महीन रेखा पर बड़ी सावधानी से चला. यह भारतीय विदेश नीति की खूबसूरती भी है और संभवतः दुनिया की जरूरत भी.

प्रधानमंत्री मोदी को इस यात्रा के दौरान जर्मनी की नव-वाणिज्यवादी (नियो- मर्केंटाइलिज्म) नीतियों के साथ संगतता बिठाते हुए दोनों देशों के बीच स्थापित संबंधों को ‘रिबूट’ करना था, नॉर्डिक देशों के साथ ‘हरित रणनीतिक साझेदारी’ की प्रगति की समीक्षा करते हुए उसमें वैल्यू एडीशन के साझे उपाय खोजने थे तथा फ्रांस के साथ स्थापित ‘दुर्जेयता’ और ‘कम्पैटिबिलिटी’ आधारित रिश्तों को आगे की ओर ले जाने की रणनीति बनानी थी. 

यूक्रेन युद्ध को लेकर यूरोप के थोड़े से बदले हुए मिजाज के बीच आगे की राह बनाना सामान्य स्थितियों के मुकाबले कुछ भिन्न चुनौती वाला भी है लेकिन दुनिया इस समय भारत की ओर आशावादी नजरिये से देख रही है. यह भारत के लिए अनुकूलन बनाने में मदद भी कर रहा है.

दुनिया जिस यूक्रेन युद्ध पर विभाजित दिख रही है, भारत उसे लेकर संतुलन बनाए रखने में काफी हद तक सफल रहा और प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के इसी स्टैंड के साथ यूरोप की यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न की. एंजेला मर्केल युग में भारत-जर्मनी के रिश्ते स्वाभाविक एवं सामरिक साझेदारी तक पहुंच चुके थे और ओलाफ शॉल्ज को उसी प्रतिबद्धता का परिचय देना है. लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि नए जर्मन चांसलर की प्राथमिकताएं क्या रहने वाली हैं. 

इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और कैबिनेट सदस्यों के साथ बैठक में जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्ज ने आने वाले सालों में भारत के साथ सहयोग पर 10 अरब यूरो खर्च करने की घोषणा की. इस दौरान जर्मनी और भारत ने आपसी सहयोग के 14 करारों पर दस्तखत किए हैं. इनमें टिकाऊ विकास और क्लीन एनर्जी पर खासा ध्यान दिया गया है. वास्तव में प्रधानमंत्री का यह दौरा भारत-जर्मन रिश्तों को रीबूट करने के अवसर के तौर पर देखा जा सकता है.

जर्मनी के बाद प्रधानमंत्री इंडो-नाॅर्डिक सम्मेलन में शामिल होने के लिए डेनमार्क पहुंचे. भारत और डेनमार्क के बीच राजनयिक संबंधों की नींव काफी पुरानी है. 1957 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय डेनमार्क के साथ शुरू हुए राजनयिक संबंध अब एक नए परिवेश में और समृद्ध हुए हैं. दोनों देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, एनर्जी और रिसर्च क्षेत्र में सहयोग, सौहार्द्रता और मैत्री आधारित रिश्ते हैं. 

इसी क्रम में सितंबर 2020 में भारत और डेनमार्क ने दूरगामी लक्ष्यों वाली ‘हरित रणनीतिक साझेदारी’ (ग्रीन स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप) के रूप में एक नए युग की शुरुआत की थी. चूंकि यह समय जलवायु परिवर्तन एवं अन्य वैश्विक समस्याओं से संबंधित स्थायी समाधान तलाशने का है, इस दृष्टि से भारत-नाॅर्डिक संबंधों को निर्णायक माना जा सकता है. प्रधानमंत्री ने कोपेनहेगन से यह संदेश भी दिया है कि दोनों देश लोकतंत्र और कानून के शासन जैसे मूल्यों को तो साझा करते ही हैं, साथ में हम दोनों की पूरक ताकत भी है. 

महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी और डेनिश प्रधानमंत्री के बीच जबर्दस्त कैमिस्ट्री देखने को मिली जो भारत-डेनमार्क संबंधों को आगे ले जाने में सहायक सिद्ध होगी. डेनमार्क के साथ ही आइसलैंड, नार्वे और फिनलैंड के अपने समकक्षों से भी प्रधानमंत्री ने द्विपक्षीय वार्ता की.  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नाॅर्डिक देशों की कंपनियों से भारत की सागरमाला परियोजना के तहत ब्लू इकोनॉमी में निवेश करने का आह्वान किया और भारत की आर्कटिक नीति को दोनों पक्षों के बीच साझेदारी मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण बताया. 

हालांकि नॉर्डिक देश रूस को लेकर सख्त दिखे लेकिन संयुक्त वक्तव्य में मुक्त व्यापार के महत्व को रेखांकित करते हुए समावेशी एवं सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने पर ही जोर रहा. जहां तक भारत-फ्रांस संबंधों का प्रश्न है तो यूरोपीय महाद्वीप में फ्रांस भारत का प्रमुख सामरिक साझेदार है. दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी की शुरुआत 1998 में हुई थी. तब से लेकर अब तक निरंतरता के साथ इसमें कई आयाम जुड़ चुके हैं. 

इमैनुएल मैक्रों के समय में पेरिस के सामरिक कैलकुलस में नई दिल्ली और भी अधिक महत्वपूर्ण होती दिख रही है. इसे मोदी-मैक्रों पर्सनैलिटी कैलकुलस के प्रभाव के रूप में भी देखा जा सकता है. कुल मिलाकर भारत और फ्रांस ग्लोबल वार्मिंग से लेकर शांति के खिलाफ उभरती सबसे प्रबल चुनौती आतंकवाद से निपटने एवं यूरोप-अमेरिका के महान कूटनीतिक खेलों के बीच निर्णायक साझेदारी की ओर बढ़ रहे हैं. दोनों के बीच स्थित सांस्कृतिक व मानवीय रिश्तों के तंतु नए संयोजनों के सुदृढ़ीकरण में सहयोगी बनेंगे. 

Web Title: Rahees Singh blog: Prime Minister Narendra Modi Europe visit to refresh ties

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