ब्लॉग: आज भी प्रासंगिक है प्रेमचंद का साहित्‍य

By राजेश कुमार यादव | Published: July 31, 2024 12:05 PM2024-07-31T12:05:59+5:302024-07-31T12:06:01+5:30

उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से भारतीय समाज, संस्कृति और जीवन को इतने सजीव और गहरे रूप में प्रस्तुत किया है कि उनके साहित्य को पढ़ते समय पाठक भारत को महसूस कर सकते हैं। प्रेमचंद की रचनाओं में उनके गढ़े गए किरदारों के जरिये हम अपने आसपास होती हलचल को महसूस कर सकते हैं।

Premchand's literature is relevant even today | ब्लॉग: आज भी प्रासंगिक है प्रेमचंद का साहित्‍य

ब्लॉग: आज भी प्रासंगिक है प्रेमचंद का साहित्‍य

हिंदी कथा-साहित्य में प्रेमचंद का नाम एक ऐसे शिखर के समान है जो यात्रा के क्रम में हर मोड़ पर पीछे छूट जाने पर भी सामने उभर-उभर कर आ जाता है। प्रेमचंद ने हिंदी कथा- साहित्य को प्रायः किस्सागोई से रचना के स्तर पर प्रतिष्ठित किया है, साथ ही उन्होंने लोक-कथा के तत्वों का रचनात्मक उपयोग करने का प्रयत्न किया है और सबसे महत्वपूर्ण कार्य उन्होंने यह किया कि जीवन के यथार्थ को कला के आधार के रूप में प्रतिष्ठित किया।

कथाकार के रूप में प्रेमचंद सामाजिक जीवन से जुड़ते हैं। वे समझते हैं कि बिना सम्पूर्ण सामाजिक जीवन के मौलिक रचना के स्तर पर गतिशील हुए साहित्य की रचनाशीलता भी विकसित नहीं हो सकती। सीधे सामाजिक जीवन के आधार पर रचना करने के कारण प्रेमचंद ने उन्हीं समस्याओं, प्रश्नों, स्थितियों, घटनाओं और चरित्रों को अपने कथा साहित्य में ग्रहण किया है जो उनके समसामयिक यथार्थ से निकलते हैं और उनकी भाषा, संवेदना, रचना-विधान आदि भी इसी से निश्चित होते हैं।

‘साहित्‍य का उद्देश्‍य’ नामक लेख में वे लिखते हैं- ‘‘साहित्‍य की सर्वोत्तम परिभाषा ‘जीवन की आलोचना’ है। यानी उन चीजों की आलोचना जो आम इंसान की जिंदगी पर असर डालते हैं। हम साहित्‍य को केवल मनोरंजन और विलासिता की वस्‍तु नहीं समझते. हमारी कसौटी पर वही साहित्‍य खरा उतरेगा जिसमें उच्‍च चिंतन हो, स्‍वाधीनता का भाव हो, सौंदर्य का सार हो, सृजन की आत्‍मा हो, जीवन की सचाइयों का प्रकाश हो, जो हममें गति और संघर्ष और बेचैनी पैदा करे, सुलाये नहीं, क्‍योंकि अब और ज्‍यादा सोना मृत्‍यु का लक्षण है।’’

प्रेमचंद अपने युग के यथार्थ से जुड़कर रचना कार्य में प्रवृत्त हुए। यही कारण है कि रचना की भाषा सामाजिक जीवन की घटनाओं, परिस्थितियों, समस्याओं का ही भाषा रूप है। भाषा इतिहास, समाज और संस्कृति से अभिन्न रहती है। अतः प्रेमचंद ने अपनी रचना के लिए सही भाषा का प्रयोग किया है। इसी समाज और भाषा के स्तर से उन्होंने चरित्रों का निर्माण किया है, जीवन खंडों को नियोजित किया है।

अनुभव संदर्भों को विकसित किया है और फिर सम्पूर्ण रचना-क्रम में अपने युग की मूल्य-दृष्टि तथा सार्थकता को भी व्यंजित किया है। प्रेमचंद के साहित्य में भारत की धड़कन स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकती है। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से भारतीय समाज, संस्कृति और जीवन को इतने सजीव और गहरे रूप में प्रस्तुत किया है कि उनके साहित्य को पढ़ते समय पाठक भारत को महसूस कर सकते हैं। प्रेमचंद की रचनाओं में उनके गढ़े गए किरदारों के जरिये हम अपने आसपास होती हलचल को महसूस कर सकते हैं।

Web Title: Premchand's literature is relevant even today

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