प्रमोद भार्गव का नजरियाः बांधों की सुरक्षा के लिए पहल

By प्रमोद भार्गव | Published: December 21, 2018 04:36 PM2018-12-21T16:36:43+5:302018-12-21T16:36:43+5:30

भारत में बांधों की सुरक्षा के लिए कानून की कमी के कारण यह चिंता व विचार का मुद्दा है. खासतौर से बड़े बांधों का निर्माण देश में बड़ी बहस और विवाद के मुद्दे बने हैं.

Pramod Bhargava's Opinion: Initiatives for the protection of dams | प्रमोद भार्गव का नजरियाः बांधों की सुरक्षा के लिए पहल

प्रमोद भार्गव का नजरियाः बांधों की सुरक्षा के लिए पहल

संसद के इसी शीतकालीन सत्र में बांधों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने की पहल शुरू हुई है. संसद में बांध सुरक्षा विधेयक-2018 पेश किया गया है. इस विधेयक का उद्देश्य भारत के बांधों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत और संस्थागत कार्ययोजना उपलब्ध कराना है. 

भारत में बांधों की सुरक्षा के लिए कानून की कमी के कारण यह चिंता व विचार का मुद्दा है. खासतौर से बड़े बांधों का निर्माण देश में बड़ी बहस और विवाद के मुद्दे बने हैं. फरक्का, नर्मदा सागर और टिहरी बांध के विस्थापितों का आज भी सेवा-शर्तो के अनुसार उचित विस्थापन संभव नहीं हुआ है. बड़े बांधों को बाढ़, भू-जल भराव क्षेत्रों को हानि और नदियों की अविरलता के लिए भी दोषी माना गया है. 

बावजूद देश के महानगरों में पेयजल और ऊर्जा संबंधी जरूरतों की आपूर्ति तथा सिंचाई जल की उपलब्धता बड़ी मात्र में इन्हीं बांधों से मुमकिन हुई है. पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ाने के लिए बांधों को जिम्मेवार ठहराया गया है. बावजूद बांधों की सुरक्षा और संरक्षण जरूरी हैं, क्योंकि इन्हें हमने पर्यावरण विनाश और विस्थापन जैसी बड़ी चुनौतियों से निपटते हुए खड़ा किया है.

अमेरिका और चीन के बाद सबसे अधिक बड़े बांध भारत में हैं. यहां के हर क्षेत्र में बड़ी संख्या में नदियों और पहाड़ों के होने से अनेक बांधों का निर्माण संभव हुआ है. यहां 5200 से भी ज्यादा बड़े बांध हैं. 450 बड़े बांध निर्माणाधीन भी हैं. इसके अलावा हजारों मध्यम और लघु बांध हैं. भारतीय भौगोलिक परिस्थिति व अनुकूल जलवायु का ही कमाल है, जो इतने छोटे-बड़े बांधों का निर्माण संभव हुआ. 

भारत में बांधों का निर्माण आजादी के पूर्व से ही आरंभ हो गया था, इसलिए 164 बांध सौ साल से भी ज्यादा पुराने हैं. 75 प्रतिशत बांध 25 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं. बांधों का समुचित रख-रखाव नहीं होने के कारण 36 बांध पिछले कुछ दशकों के भीतर टूटे भी हैं. इनके अचानक टूटने से न केवल पर्यावरणीय क्षति हुई, बल्कि हजारों लोगों की मौतें भी हुईं. फसल और ग्राम भी ध्वस्त हुए.
  
इनको दृष्टिगत रखते हुए ही ‘बांध सुरक्षा-विधेयक-2018’ संसद में पेश किया गया है. इस विधेयक के प्रारूप में बांधों का निर्माण करने वाली सरकारी और निजी संस्थाओं को लापरवाही बरतने और सुरक्षा मानदंडों का पालन नहीं करने पर दंडित करने के भी प्रावधान हैं. 

Web Title: Pramod Bhargava's Opinion: Initiatives for the protection of dams

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