ब्लॉग: बिहार की राजनीति...कौरव कौन, कौन पांडव, टेढ़ा सवाल है

By कृष्ण प्रताप सिंह | Published: August 11, 2022 12:36 PM2022-08-11T12:36:17+5:302022-08-11T12:36:17+5:30

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर पाला बदल लिया। इस बात ने एक बार फिर ये सिद्ध कर दिया है कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता है।

Politics of Bihar, why Nitish Kumar leave BJP and go with RJD and Congress again | ब्लॉग: बिहार की राजनीति...कौरव कौन, कौन पांडव, टेढ़ा सवाल है

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव

तुम पाजी तो हम अति पाजी/ बदकर कभी देख लो प्यारे! कुछ भी रख लो बाजी/ तुम हो जोंक तो पिसे नमक हम, तुम कुश तो हम छाछ/बने बुखार मियादी तुम तो हम चिरैत के गाछ/पढ़े पहाड़ा उलटा तो हम पूछेंगे कठबइठी/गोल-गोल बतियाये तो झोंकेंगे ऐंठी-गोंइठी/आगे काठ धरे तुम तो हम भी धर देंगे आरी/अभी गरज लो किंतु न फिर मिमियाना अपनी बारी/...चाल चले बगुले की तो हम बन जायेंगे कउवा/हमें समझते दोपाया यदि तो हम तुमको चउवा.

बिहार की सत्ता-राजनीति में गत मंगलवार को जो कुछ हुआ और जिसके तहत राजनीति में किसी के भी स्थायी दोस्त या दुश्मन न होने को पुनर्प्रमाणित करते हुए कुछ पुराने दोस्त दुश्मनों में और कुछ दुश्मन दोस्तों में बदल गए, उसकी सबसे अच्छी व्याख्या अवध के लोकप्रिय कवि अष्टभुजा शुक्ल के पद (पढ़िये: कुपद) की इन पंक्तियों से ही की जा सकती है, क्योंकि उसके सिलसिले में किसी नीति-नैतिकता, सदाचार या कदाचार की बात फिजूल है. बकौल अटल बिहारी वाजपेयी: कौरव कौन, कौन पांडव टेढ़ा सवाल है/दोनों ओर शकुनि का फैला कूट जाल है.

इसीलिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत यह कहते हुए वस्तुनिष्ठ नजर आते हैं कि नीतीश कुमार ने अपने नये मूव से कुछ सिद्ध किया है तो यही कि सत्ता के खेल में भाजपा डाल डाल है तो वे पात-पात. अगर वे भाजपा को छकाने और चकित करने वाला यह कदम न उठाते तो कौन जाने वही अपने को इक्कीस साबित करती हुई बजरिये आरसीपी सिंह, जिन्हें वह करीब-करीब अपने पाले में खींच ही ले गई है, नीतीश को उद्धव ठाकरे की गति को प्राप्त करा देती.  
  
लेकिन उसके चाणक्यों की एक नहीं चली और अपनी चलाने की कोशिश में उनके हाथ जल गए तो रवीश कुमार के अनुसार मामला कुल मिलाकर इतना ही है कि बिहार की राजनीति का मिजाज दूसरा है, वहां के नेताओं को ड्रिल पसंद नहीं है और वे किसी भी दल के हों, स्वायत्त होते हैं. यह उनकी अच्छाई भी है और बुराई भी कि आप उनको बार-बार टोंकेंगे कि यहां मत थूको तो वे गुस्साकर वहीं थूक देंगे और इंतजार करेंगे कि मना करने वाला क्या करता है.

बहरहाल, भाजपा को यह पता ही है कि पिछले आठ सालों की कोई भी नियम-कायदा न मानने और कोई भी सीमा स्वीकार न करने वाली उसकी राजनीतिक आक्रामकता ने उसके विपक्ष के सामने उस खुले खेल के अलावा, जो नीतीश ने खेला, अपनी जमीन खोते जाने का विकल्प ही रहने दिया है. इतना ही नहीं, सहयोगी दलों की अस्तित्वहीनता की कीमत पर भी उसे अपना असीम विस्तार ही अभीष्ट है और इसके लिए साम-दाम, दंड व भेद कुछ भी बरतने से परहेज नहीं है. 

तेजस्वी यादव ने इसी बात को एक वाक्य में इस तरह कहा है कि भाजपा का रास्ता ‘जो डरता है, उसे डराओ और जो बिकता है, उसे खरीदो वाला है.’ इसीलिए उसने एक-एक कर प्रायः सारे पुराने सहयोगी गंवा दिए हैं.

लेकिन यह कहे बिना बात पूरी नहीं हो सकती कि देश की राजनीति के नीतियों व नैतिकताओं से विचलन में भाजपा के सबसे बड़े हिस्से की आड़ लेकर उसके विपक्षी उसे ढर्रे पर लाने की अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते. न ही बिहार में नीतीश मॉडल की जीत को लेकर दिया जा रहा यह तर्क उन्हें बहुत दूर तक ले जा सकता है कि उन्होंने भाजपा के चाणक्यों को उनके ही हथियार से शिकस्त दे दी है. क्योंकि भाजपाई चाणक्यों के हथियार से ही उन्हें हराने को वे उन्हीं की राह चलकर उनका विकल्प बनने की कोशिश का समानार्थी बनाने चलेंगे तो विकल्प के खोल में भाजपाई अक्स वाली उपसत्ताएं बने रहने की नियति से कतई पीछा नहीं छुड़ा पाएंगे. देश की जनता को, जो पहले ही एक जैसे चेहरे वाले दलों के बीच होते आ रहे चुनावों में सरकारें बदल-बदलकर हार चुकी है, और निराश ही करेंगे, सो अलग.

Web Title: Politics of Bihar, why Nitish Kumar leave BJP and go with RJD and Congress again

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