स्वप्नदर्शी विश्व कवि और उनकी मानव-दृष्टि, गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग

By गिरीश्वर मिश्र | Published: August 7, 2021 08:40 PM2021-08-07T20:40:45+5:302021-08-07T20:42:24+5:30

‘गीतांजलि’ उनके आध्यात्मिक बोध की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति थी जिस पर 1913 में नोबल पुरस्कार मिला था, पर मानसी, बलाका, सोनार तरी जैसी काव्य कृतियां, चांडालिका, डाकघर जैसे नाटक, गल्प गुच्छ जैसे कहानी संग्रह आदि ने भी अपना स्थान बनाया.

Poet thinker cultural hero Gurudev Rabindranath Tagore human vision Girishwar Mishra's blog | स्वप्नदर्शी विश्व कवि और उनकी मानव-दृष्टि, गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग

संगीत भी रचा, रवींद्र संगीत रचा और उसके जादू से लोग प्रभावित हुए बिना नहीं रहते.

Highlightsकाबुलीवाला कहानी, गोरा, घरे बाहिरे और चोखेर बाली जैसे उपन्यास साहित्य जगत में उनका स्थायी स्थान सुरक्षित रखते हैं.गोरा उपन्यास अपने समय के राजनीति, धर्म, अस्मिता और पश्चिमी सभ्यता के साथ संपर्क पर उठे सवालों पर केंद्रित है और बड़ा समादृत हुआ है. बच्चों के लिए कविता, कहानी और नाटक लिखकर कवि ने एक नई दिशा दिखाई.

कवि, चिंतक और सांस्कृतिक नायक गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर साहित्य और कला के क्षेत्न में नवजागरण के सूत्नधार थे. अध्यात्म, साहित्य, संगीत और नाटक के परिवेश में पले-बढ़े और यह सब उनकी स्वाभाविक प्रकृति और रुचि के अनुरूप भी था.

बचपन से ही उनकी रुचि सामान्य और साधारण का अतिक्रमण करने में रही, पर वे ऋषि परंपरा, उपनिषद, भक्ति साहित्य, कबीर जैसे संत ही नहीं, सूफी और बाउल की लोक परंपरा आदि से भी ग्रहण करते रहे. कवि का मन मनुष्य, प्रकृति, सृष्टि और परमात्मा के बीच होने वाले संवाद की ओर आकर्षित होता रहा. प्रकृति की गोद में जल, वायु, आकाश और धरती की भंगिमाएं उन्हें सदैव कुछ कहती-सुनाती सी रहीं.

तृण-गुल्म, तरु-पादप, पर्वत-घाटी, नदी-नद और पशु-पक्षी को निहारते और गुनते कवि को सदैव विराट की आहट सुनाई पड़ती थी. विश्वात्मा की झलक पाने के लिए कवि अपने को तैयार करते रहे. समस्त जीवन पूरी समग्रता के साथ उनके अनुभव का हिस्सा था. कवि ने  साहित्य की सभी विधाओं और विषयों को अंगीकार किया.

‘गीतांजलि’ उनके आध्यात्मिक बोध की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति थी जिस पर 1913 में नोबल पुरस्कार मिला था, पर मानसी, बलाका, सोनार तरी जैसी काव्य कृतियां, चांडालिका, डाकघर जैसे नाटक, गल्प गुच्छ जैसे कहानी संग्रह आदि ने भी अपना स्थान बनाया. काबुलीवाला कहानी, गोरा, घरे बाहिरे और चोखेर बाली जैसे उपन्यास साहित्य जगत में उनका स्थायी स्थान सुरक्षित रखते हैं.

गोरा उपन्यास अपने समय के राजनीति, धर्म, अस्मिता और पश्चिमी सभ्यता के साथ संपर्क पर उठे सवालों पर केंद्रित है और बड़ा समादृत हुआ है. बच्चों के लिए कविता, कहानी और नाटक लिखकर कवि ने एक नई दिशा दिखाई. कवि की रुचि चित्नकला में भी थी और जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने अनेक चित्न भी बनाए.

उन्होंने संगीत भी रचा, रवींद्र संगीत रचा और उसके जादू से लोग प्रभावित हुए बिना नहीं रहते. कई फिल्मों में भी इसका उपयोग हुआ है. सांस्कृतिक दाय की रक्षा और संवर्धन के लिए कवि ने शांतिनिकेतन जैसी  नवोन्मेषी शिक्षा संस्था स्थापित की जहां सुरुचि के साथ प्रतिभा का सहज विकास हो सके.

‘एकला चलो’ का गीत गाने वाले और भय शून्य चित्त की कामना के साथ अभय का राग अलापने वाले कवि का यह एक महा स्वप्न था जिसे साकार करने के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया. साहित्य, कला आदि के क्षेत्न में अनेक प्रतिष्ठित विचारक, शिक्षाविद् इससे जुड़े और यहां से निकले अनेक अध्येताओं ने ख्याति प्राप्त की है.

हिंदी के प्रख्यात मनीषी और लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की मेधा के विकास में शांतिनिकेतन की महत्वपूर्ण भूमिका थी. प्रख्यात कथा लेखिका गौरा पंत ‘शिवानी’ भी यहीं की देन हैं. कवि का प्रयोगशील मन कभी थिर नहीं होता था. वह नए के आकर्षण में देश-देशांतर में पर्यटन करते रहे. पराधीन भारत के उस दौर में जब संचार की सुविधा अत्यल्प थी और अंतरराष्ट्रीय संवाद आज की तरह सरल न था, उस काल में वे तमाम देशों में बुद्धिजीवियों के साथ संवाद करने के लिए सदैव तत्पर रहे. पांच प्रायद्वीपों और तीस देशों की ग्यारह विदेश यात्नाएं कवि की मानव-दृष्टि  का विस्तार करती रहीं.

एच. जी. वेल्स, हेनरी बर्गसां, बर्नार्ड शा, रोम्यां रोलां, आइंस्टाइन, सिग्मंड फ्रायड, मुसोलिनी आदि अपने समय के अनेक शीर्ष व्यक्तित्वों के साथ संपर्क और संचार ने कवि को एक वैश्विक नजरिया दिया जिसके आलोक में बृहत्तर मानवता के भाव को आत्मसात करते  हुए उनके चिंतन की परिधि का सतत विस्तार होता रहा. देश के स्वाधीनता आंदोलन में कवि ने अंग्रेजी साम्राज्य का विरोध और स्वदेशी का समर्थन किया.

महात्मा गांधी के साथ उनके गहन संबंध थे. कवि के शब्दों में ‘महात्मा गांधी ही एक ऐसे पुरुष हैं जिन्होंने प्रत्येक अवस्था में सत्य को माना है, चाहे वह सुविधाजनक हो या न हो. उनका जीवन हमारे लिए एक महान उदाहरण है.’ वे गांधीजी की नम्र अहिंसा नीति के पक्षधर थे. अपने पार्थिव जीवन की अवसान बेला में कवि सभ्यता के संकट को देख विचलित थे, पर मनुष्यता में उनका विश्वास अटल था.

अपने अंतिम जन्म दिवस पर उन्होंने कहा था, ‘मैं पृथ्वी को विश्वासपूर्वक प्यार करके, प्यार पाकर मनुष्य की तरह जी कर अगर मनुष्य की तरह मर सकूं तो मेरे लिए यही बहुत है. देवता की तरह हवा हो जाने की चेष्टा करना मेरा काम नहीं है.’  एक ऋ षि जो भारत के अतीत से रस ले रहा था, व्यापक वर्तमान से संवाद करते हुए भविष्य के सपने देख रहा था.

इनके लिखे में मानवीय चैतन्य की शुभ्र आभा से साक्षात्कार होता है जिसमें सबसे जुड़ने और सबको समेटने की दुर्दम्य चेष्टा मिलती है. मनुष्य और प्रकृति में परम सत्ता की सतत उपस्थिति से अनुप्राणित उनका काव्य आज संकुचित और स्वार्थबद्ध होते मनुष्य को रोकता-टोकता है और विराट से जुड़ने के लिए प्रेरित करता है.

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