ललित गर्ग का ब्लॉगः बैंकों के विश्वास पर न लगे ग्रहण
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 19, 2019 07:15 AM2019-10-19T07:15:17+5:302019-10-19T07:15:17+5:30
पीएमसी बैंक के खाताधारकों की पीड़ा नोटबंदी की पीड़ा से कहीं अधिक है. कौन सुनेगा इनकी पीड़ा, कौन बांटेगा इनका दु:ख-दर्द. सवाल यह है कि भ्रष्ट लोगों और बैंक का पैसा डकार कर भागने वाले के गुनाह का खामियाजा बैंक के ग्राहक क्यों भुगतें?
ललित गर्ग
पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक के कुछ खाताधारकों ने हाल ही में अपनी जीवनलीला इसलिए समाप्त कर दी कि बैंक के डूबने का भय उत्पन्न हो गया. इस बैंक में जमा अपनी मेहनत की जमा पूंजी के खतरे में होने की आशंकाओं ने ही इन खाताधारकों को आत्महत्या करने को विवश किया. कैसी त्नासद एवं विडम्बनापूर्ण स्थिति देखने को मिल रही है कि पीएमसी के खाताधारक अपने ही पैसे निकालने के लिए सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं. जब से आरबीआई ने पीएमसी बैंक में गड़बड़ी को लेकर पाबंदियां लगाई हैं तब से खाताधारक परेशान हैं, भयभीत है, डरे हुए हैं. जरूरतमंद लोग बैंक से अपना ही पैसा नहीं निकाल पा रहे.
पीएमसी बैंक के खाताधारकों की पीड़ा नोटबंदी की पीड़ा से कहीं अधिक है. कौन सुनेगा इनकी पीड़ा, कौन बांटेगा इनका दु:ख-दर्द. सवाल यह है कि भ्रष्ट लोगों और बैंक का पैसा डकार कर भागने वाले के गुनाह का खामियाजा बैंक के ग्राहक क्यों भुगतें? घोटालेबाज क्यों नहीं सजा पाते? क्यों नहीं भविष्य में ऐसे घोटाले नहीं होने की गारंटी सरकार देती?
इस पीएमसी कांड ने लोगों के बैंकों के प्रति विश्वास को डगमगा दिया है. भ्रष्टाचार का रास्ता चिकना ही नहीं ढालू भी होता है. व्यवस्था और सोच में व्यापक परिवर्तन हो ताकि अब कोई अपनी जमा पूंजी के डूबने के भय एवं डर से आत्महत्या न करे. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को ऐसा उपाय करना होगा कि बैंक के विफल होने पर कम से कम लोगों की मेहनत की कमाई तो पूरी मिल सके. इसके लिए कानून में संशोधन भी करना पड़े तो किया जाना चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया गया तो बैंकिंग व्यवस्था से विश्वास उठने के साथ-साथ वह जानलेवा भी बनती जाएगी.
लोकतंत्न एक पवित्न प्रणाली है. पवित्नता ही इसकी ताकत है. इसे पवित्नता से चलाना पड़ता है. अपवित्नता से यह कमजोर हो जाती है. ठीक इसी प्रकार अपराध के पैर कमजोर होते हैं, पर अच्छे आदमी की चुप्पी उसके पैर बन जाती है. अपराध, भ्रष्टाचार अंधेरे में दौड़ते हैं. रोशनी में लड़खड़ाकर गिर जाते हैं. हमें रोशनी बनना होगा और रोशनी बैंक घोटालों एवं जनता की मेहनत की कमाई को हड़पने से प्राप्त नहीं होती.