वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: सार्थक रही मोदी की रूस यात्रा

By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 6, 2019 12:42 PM2019-09-06T12:42:15+5:302019-09-06T12:42:15+5:30

रूस वैसे चीन से अच्छे संबंध बनाए हुए है लेकिन चीन की विशाल रेशम पथ की योजना से वह सहमत नहीं है. वह चाहता है कि भारत मध्य एशिया के राष्ट्रों और सुदूर-पूर्व के क्षेत्न में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह रूस-यात्ना भारतीय प्रधानमंत्रियों की पिछली कई यात्नाओं के मुकाबले कहीं अधिक सार्थक रही है. उसका पहला प्रमाण तो यही है कि पूर्वी आर्थिक मंच के बहुराष्ट्रीय सम्मेलन में मोदी को मुख्य अतिथि बनाया गया है. दूसरी बात यह है कि मोदी और पुतिन, दोनों ने साफ-साफ कहा है कि किसी भी देश को अन्य देश के आंतरिक मामलों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है. 

पुतिन का यह बयान क्या ख्रुश्चेव और बुल्गानिन के उस बयान की याद नहीं दिलाता है, जो उन्होंने अपनी पहली यात्ना के दौरान तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री नेहरू  के सामने दिया था? उन्होंने कहा था कि कश्मीर में आपको कोई खतरा हो तो आप हमें आवाज दीजिए हम आपके खातिर दौड़े चले आएंगे. शीतयुद्ध के दौरान पाकिस्तानपरस्त अमेरिका को टक्कर देने के हिसाब से यह बात ठीक थी लेकिन पिछले दो-ढाई दशक में रूस-अमेरिका समीकरण बदलने के कारण कश्मीर पर रूसी रवैया थोड़ा ढीला हो गया था. उसने पाकिस्तान के साथ भी पींगें बढ़ानी शुरू कर दी थीं. लेकिन रूस के इस ताजा रवैये ने भारत-रूस दोस्ती पर फिर से पक्की मुहर लगा दी है. भारत और रूस ने तरह-तरह के 25 समझौतों पर दस्तखत किए हैं. अभी भी रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार-विक्रेता है. 

यों तो आजकल भारत-अमेरिका के बीच घनिष्ठता अपूर्व रूप से बढ़ी हुई है और ट्रम्प का रवैया कश्मीर के मामले में भारतपरस्ती का है और अमेरिका यह भी चाहता है कि सुदूर पूर्व में भारत की भूमिका बलवती हो ताकि चीन के प्रभाव को सीमित किया जा सके. इस मामले में रूस भी पीछे नहीं है. 

रूस वैसे चीन से अच्छे संबंध बनाए हुए है लेकिन चीन की विशाल रेशम पथ की योजना से वह सहमत नहीं है. वह चाहता है कि भारत मध्य एशिया के राष्ट्रों और सुदूर-पूर्व के क्षेत्न में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए. इसीलिए व्लादिवोस्तोक में होनेवाले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भारत को केंद्र में रखा गया है. जाहिर है कि इससे पाकिस्तान परेशान होगा. इस समय सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्नी हताश इमरान सरकार के पिचके हुए गुब्बारे में थोड़ी हवा जरूर भरेंगे लेकिन अब पाकिस्तान का भला इसी में है कि खुद के दिमाग में फंसी भारत-गांठ को खोल दे और अपना ध्यान संकट में फंसे अपने देश पर केंद्रित करे. 

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