पीयूष पांडे का ब्लॉग: कोरोना में मरने से ज्यादा मुश्किल मरने के बाद के हालात

By पीयूष पाण्डेय | Published: April 24, 2021 03:09 PM2021-04-24T15:09:12+5:302021-04-24T15:12:13+5:30

कोरोना संकट ने कई कठोर चुनौतियों को सामने ला दिया है. लोगों को इलाज नहीं मिल पा रहा है. वहीं, जिनका निधन हो रहा है, उनका ठीक से अंतिम संस्कार भी संभव नहीं हो पा रहा है.

Piyush Pandey's blog: Coronavirus and challenged where people not able to get last rites | पीयूष पांडे का ब्लॉग: कोरोना में मरने से ज्यादा मुश्किल मरने के बाद के हालात

कोरोना काल में लोगों के सामने कई चुनौतियां (फाइल फोटो)

पाश ने कहा है कि सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना. कुछ भावुक लोग कोरोना काल में मान रहे हैं कि सबसे खतरनाक होता है अपनों का मर जाना, क्योंकि अपनों के मरने के बाद उनके अंतिम संस्कार में लोगों के पसीने छूट रहे हैं. 

इसी कड़ी में खुद का मर जाना भी खतरनाक होता है. कई काम पेंडिंग पड़े हों और बंदा मर जाए तो मोक्ष मिलना असंभव है, और जिस फालतू दुनिया को भोगकर स्वर्ग का टिकट कटना था, वहां दोबारा लौटना पड़ेगा, इसकी कल्पना भी रूह कंपा देती है.

बहरहाल, मैं सुबह उठना चाहता था. लेकिन जिस तरह कई कोशिशों के बावजूद अनेक राजनेताओं की अंतरात्मा नहीं जाग पाती, मेरा शरीर भी उठ नहीं पाया. जिस तरह कई लोग ईमान मरा होने के बावजूद जीवित रहते हैं, मैं भी शरीर मृत होने के बावजूद जीवित था. 

मैंने देखा कि मेरे शव को कोई हाथ लगाने को तैयार नहीं है. कई घंटे मेरा शव यूं ही एक कोने में ऐसे पड़ा रहा, जैसे सरकारी दफ्तरों में गरीब एक कोने में उकड़ू बैठे रहते हैं.

कई घंटे बाद दो एंबुलेंस दरवाजे पर सायरन बजाते हुए पहुंचीं. मैं ‘मोक्ष’ के लिए उत्साहित हो उठा. लेकिन ये क्या? मेरे शव के पास पहुंचकर अचानक दोनों एंबुलेंस वालों को ब्रह्मज्ञान हुआ कि मेरा घर उनके इलाके में नहीं आता. मैं उन्हें समझाना चाहता था कि जैसे सबै भूमि गोपाल की, वैसे सबै जमीन लाश की. कहीं गाड़ देना, कहीं जला देना, मगर यहां से ले चलो भाई. लेकिन, नहीं. 

मैं अपने पुत्र को श्रवण कुमार नहीं बना सका था, लेकिन सीट बेल्ट न बांधने अथवा हेलमेट न पहनने के जुर्म में पकड़े जाने के वक्त एक-दो मौकों पर मैंने उसे व्यावहारिक ट्रेनिंग दी थी. संभवत: जब उसे शव की दुर्गंध महसूस हुई तो उसने 200 के बीस नोट निकालकर एक एंबुलेंस वाले के हाथों में धर दिए. 

इस ऐतिहासिक मौद्रिक परिघटना के बाद अचानक मेरे निवास की भौगोलिक स्थिति में बदलाव आया और शव बोरे में भरे सीमेंट की तरह एंबुलेंस में पटक दिया गया.

मुहल्ले के कई मित्र ‘अभी पहुंचते हैं’ का राग अलापकर कट लिए. दाह संस्कार में चार लोगों का कोरम पूरा नहीं हो पा रहा था. बमुश्किल तीन कंधों पर शव यात्रा शुरू हुई कि अचानक पुत्र का पांव एक गड्ढे में पड़ा और मैं शव समेत पास की नाली में गिर पड़ा. 

गिरने का लाभ यह हुआ कि नींद खुल गई. मैं समझ गया था कि कोरोना काल में मरना भी एफोर्ड नहीं किया जा सकता. आप भी चुपचाप घर में रहिए क्योंकि इस वक्त से मरने से ज्यादा मुश्किल मरने के बाद के हालात हैं.

Web Title: Piyush Pandey's blog: Coronavirus and challenged where people not able to get last rites

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे