पीयूष पांडे का ब्लॉग: ठेके पर लोकतंत्र के मनोहारी दर्शन!
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 16, 2020 01:52 PM2020-05-16T13:52:15+5:302020-05-16T13:52:15+5:30
अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र को लोगों का लोगों द्वारा लोगों के लिए शासन बताया था. बिलकुल यही नजारा ठेके पर था. लोग ही लोगों की लाइन लगवा रहे थे. कतार में लगे सभी लोगों को बोतल मिलने से पहले दुकान बंद न हो जाए, इसके लिए लोग ही पुलिसवाले को समझा रहे थे. जिस तरह ठेके लेते वक्त ठेकेदार मंत्री का सेवक हो जाता है, उसी तरह बोतल लेने से पहले लोग पुलिसवाले के सेवक बने हुए थे.
लोकतंत्र ईश्वर के समान है. मानो तो हर जगह, अन्यथा कहीं नहीं. जिस तरह ईश्वर के दर्शन आसान नहीं हैं और ईश्वर का अस्तित्व कई बार विकट आस्था का प्रश्न हो जाता है, उसी तरह देश में कई बार लोकतंत्र भी विकट आस्था का सवाल हो जाता है.
मसलन-जिस अदालत परिसर में बंदा न्याय की गुहार लगाते हुए अपना घर-जमीन बेचकर पहुंचता है, उसी परिसर में वकील उसकी जेब सरेआम काट देते हैं. उस वक्त बंदे को समझ नहीं आता कि लोकतंत्र है, था या अभी-अभी मर गया?
इसी तरह थाने में पुलिस के डंडे के सामने, निजी अस्पतालों में मुर्दे को जीवित बनाए रखने के चमत्कार में और सरकारी अस्पतालों के वार्ड में टहलते कुत्तों के बीच इलाज कराते मरीज की मनोहारी तस्वीरों में लोकतंत्र की अलग-अलग छवियां देखने को मिलती हैं.
मुझे लोकतंत्र की एक अलहदा तस्वीर देखने को मिली शराब के ठेके पर.
आपके मन में सवाल आ सकता है कि मैं शराब के ठेके पर क्या कर रहा था? लोकतंत्र इसलिए खूबसूरत शय है कि यहां हर व्यक्ति के मन में कोई भी सवाल आ सकता है. लेकिन, लोकतंत्र की ही खूबसूरती है कि यहां हर सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं. जिस तरह सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए कई सवालों को अधिकारी राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला बताकर डम्प कर देते हैं, उसी तरह ‘मैं ठेके पर क्यों था’ का जवाब अपनी सुरक्षा से जुड़ा मसला बताकर मैं डम्प कर रहा हूं. मैं वहां था, बस यह सत्य है. उसी तरह, जिस तरह लोकतंत्र में नेता जनसेवक होता है, ये सत्य है.
लोकतंत्र में जिस तरह सबका बराबर का स्थान होता है, उसी तरह ठेके पर बराबरी का भाव था. मर्सिडीज से उतरा बंदा भी उसी लाइन में था, जिस लाइन में वो बंदा भी था, जो अपनी खटारा कार से आया था. फटी जींस पहने रईसजादे भी उसी लाइन में थे, जिस लाइन में फटी शर्ट पहने रिक्शेवाले लगे थे.
अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र को लोगों का लोगों द्वारा लोगों के लिए शासन बताया था. बिलकुल यही नजारा ठेके पर था. लोग ही लोगों की लाइन लगवा रहे थे. कतार में लगे सभी लोगों को बोतल मिलने से पहले दुकान बंद न हो जाए, इसके लिए लोग ही पुलिसवाले को समझा रहे थे.
जिस तरह ठेके लेते वक्त ठेकेदार मंत्री का सेवक हो जाता है, उसी तरह बोतल लेने से पहले लोग पुलिसवाले के सेवक बने हुए थे. दुकानदार को बोतल देने में कोई परेशानी न हो, इसके लिए लोग बतौर स्वयंसेवक उसकी मदद करने की पेशकश कर रहे थे. ठेके पर लोकतंत्र के दर्शन कर मैं धन्य हो गया.