ब्लॉग: कांग्रेस में अब पार्टी हित नहीं, निजी स्वार्थ हावी होने लगे हैं...असहाय नजर आ रहा है नेतृत्व

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: September 27, 2022 02:35 PM2022-09-27T14:35:17+5:302022-09-27T14:35:17+5:30

कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल फिलहाल तो यही नजर आ रही है कि पार्टी के हित की किसी को चिंता नहीं है. सारे वरिष्ठ नेता पार्टी को मजबूत बनाने के बजाय अपना-अपना किला सुरक्षित रखने में पूरी ताकत लगा रहे हैं.

personal interests in congress now have started dominating, leadership looks helpless | ब्लॉग: कांग्रेस में अब पार्टी हित नहीं, निजी स्वार्थ हावी होने लगे हैं...असहाय नजर आ रहा है नेतृत्व

कांग्रेस में अब पार्टी हित नहीं, निजी स्वार्थ हावी होने लगे हैं (फाइल फोटो)

एक ओर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भारत जोड़ो पदयात्रा में व्यस्त हैं तो दूसरी ओर जबर्दस्त गुटबाजी के चलते राजस्थान में कांग्रेस सरकार संकट में आ गई है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पार्टी के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट से नहीं बनती. वह कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए नामांकन भरने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि नया मुख्यमंत्री उनके खेमे का हो. 

पिछले चुनाव में पायलट द्वारा पार्टी को जिताने के लिए की गई कड़ी मेहनत को वह महत्व नहीं देते. पायलट को वह अपना सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी मानने लगे हैं. उनका डर अकारण नहीं है. यदि पायलट मुख्यमंत्री बन गए तो राजस्थान की राजनीति में वह गहलोत को हाशिये पर डाल देंगे. गहलोत ऐसा होने देना नहीं चाहते. राजस्थान में कांग्रेस का मौजूदा संकट किसी सिद्धांत, मूल्य या विचारधारा के लिए नहीं है. यह व्यक्तिगत स्वार्थ की लड़ाई है. 

कांग्रेस के नेताओं में बढ़ते व्यक्तिगत स्वार्थ का ही नतीजा है कि 2018 में कर्नाटक तथा मध्यप्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य जीत लेने के बावजूद वह सत्ता गंवा बैठी. गुजरात में दर्जन भर से ज्यादा विधायक कांग्रेस छोड़ चुके हैं और गोवा में हाल ही में 11 में से 8 कांग्रेसी विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया है. एक जमाना था, जब कांग्रेस में कद्दावर नेता हुआ करते थे. लेकिन वे कांग्रेस की विचारधारा के प्रति इतने प्रतिबद्ध थे कि नेतृत्व के किसी भी आदेश का एक अनुशासित सिपाही की तरह पालन करते थे. 
नेहरू युग से लेकर राजीव गांधी के दौर तक कांग्रेस संगठन बेहद अनुशासित रहा. सोनिया गांधी ने भी नब्बे के दशक में अनुशासनहीनता एवं नेताओं के निजी स्वार्थों के चलते कांग्रेस की  डगमगाती नैया को संभाला एवं 2004 तथा 2009 के संसदीय चुनाव में पार्टी को शानदार जीत दिलाई. इसके बाद से कांग्रेस नेतृत्व की पकड़ कहीं न कहीं कमजोर पड़ती लग रही है. चुनावों में लगातार पराजय के बाद कांग्रेस नेतृत्व असहाय सा नजर आ रहा है. 

पार्टी के हित की किसी को चिंता नहीं है. सारे वरिष्ठ नेता पार्टी को मजबूत बनाने के बजाय अपना-अपना किला सुरक्षित रखने में पूरी ताकत लगा रहे हैं. मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, जब बात नहीं बनी तो अपनी ही पार्टी की सरकार का तख्ता पलट कर भाजपा में शामिल हो गए. कर्नाटक में सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए विधायकों का एक वर्ग बागी हो गया और भाजपा से जा मिला. भाजपा ने सरकार बनने के बाद इन विधायकों को पुरस्कृत भी किया. 

गोवा में जब कांग्रेस विधायकों को लगा कि पार्टी छोड़कर भाजपा में जाने से उन्हें फायदा हो सकता है तो उन्होंने पाला बदलने में जरा सी भी देरी नहीं की. गुजरात में भी व्यक्तिगत हित कांग्रेस के  कुछ विधायकों के लिए सर्वोपरि रहा और वे भाजपा में शामिल हो गए. कांग्रेस में 2014 के बाद से ही बड़े पैमाने पर पलायन का दौर शुरू हो गया है. जितिन प्रसाद जैसे नेता भी भाजपा में चले गए. 2016 में अरुणाचल में प्रेमा खांडू ने कांग्रेस विधायक दल का ही भाजपा में विलय कर दिया. तब से वह मुख्यमंत्री हैं. 

इन बगावतों से तो यही लगता है कि कांग्रेस के नेताओं में अब पार्टी के प्रति निष्ठा नहीं रही. पार्टी नेतृत्व  किसी भी नेता की निष्ठा पर यकीन नहीं कर सकता. गुटबाजी और व्यक्तिगत स्वार्थ कांग्रेस को दलदल में ले जा रहे हैं. पार्टी नेतृत्व को संगठन को नए सिरे से खड़ा कर उसे मजबूती प्रदान करनी होगी. राजस्थान गंवाना उसके लिए 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से महंगा साबित हो सकता है.  

Web Title: personal interests in congress now have started dominating, leadership looks helpless

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