अरविंद कुमार सिंह का ब्लॉग: लंबित विधेयकों पर नई दृष्टि की जरूरत

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: June 23, 2019 07:07 AM2019-06-23T07:07:00+5:302019-06-23T07:07:00+5:30

पहले संसद 170 से 190 दिन तक चल जाती थी लेकिन आज 60 से 70 दिन चलती है तो भी काफी समय अवरोध में चला जाता है. इन सारे तथ्यों को देखते हुए नए सिरे से विचार की जरूरत है.

Pending bills need to be proper attention | अरविंद कुमार सिंह का ब्लॉग: लंबित विधेयकों पर नई दृष्टि की जरूरत

अरविंद कुमार सिंह का ब्लॉग: लंबित विधेयकों पर नई दृष्टि की जरूरत

राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने संसद में अटके विधेयकों के बाबत उच्च सदन में कुछ ऐसे बेहद अहम सुझाव दिए हैं जिनको लेकर दोनों सदनों में काफी चर्चा हो रही है. उनका विचार है कि उच्च सदन में पांच साल से अधिक समय से लंबित विधेयकों को निष्प्रभावी मान लिया जाए. उसी तरह लोकसभा से पारित होकर राज्यसभा में लंबित उन विधेयकों के बारे में भी नए सिरे से विचार हो जो लोकसभा भंग होने पर लैप्स हो जाते हैं. 16वीं लोकसभा के दौरान व्यापक विचार और चर्चा के बाद लोकसभा से पारित 22 विधेयक राज्यसभा में लैप्स हो गए. संविधान के अनुच्छेद 107 के तहत यही व्यवस्था है. इन विधेयकों पर काफी गंभीर चर्चा हुई थी और समय लगा था जो व्यर्थ हो गया.

16वीं लोक सभा से पारित होने के बावजूद राज्यसभा में लैप्स हो गए विधेयकों में भूमि अर्जन, पुनर्वसन और पुनव्र्यवस्थापन संशोधन विधेयक 2015, सूचना प्रदाता संरक्षण संशोधन विधेयक 2015, मोटरयान संशोधन विधेयक 2017, प्राचीन स्मारक और पुरातत्वीय स्थल विधेयक 2018, लोक प्रतिनिधित्व संशोधन विधेयक 2018, ट्रांसजेंडर व्यक्ति के अधिकारों का संरक्षण विधेयक 2018, सरोगेसी विनियमन विधेयक 2018, नागरिकता संशोधन विधेयक 2019, जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक संशोधन विधेयक 2019, आईटी संशोधन विधेयक 2019, राष्ट्रीय बांध सुरक्षा विधेयक 2018, उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2018 और मानव अधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक 2018 प्रमुख हैं. सरकार इन विधेयकों को अब पारित कराना चाहेगी तो फिर से नई प्रक्रिया आरंभ करनी होगी. इस नाते राज्यसभा के सभापति चाहते हैं कि यह प्रक्रिया और तेज करने के लिए सभी दलों के सांसद चिंतन-मनन करें.

राज्यसभा में लंबित 33 विधेयकों में से तीन विधेयक दो दशक से अधिक समय से लंबित हैं. राज्यसभा में लंबित खास विधेयकों में अप्रवासी भारतीय विवाह पंजीकरण विधेयक 2019, नेशनल कमीशन फार होम्योपैथी बिल 2019, राजस्थान विधान परिषद विधेयक 2013, असम विधान परिषद विधेयक 2013, तमिलनाडु विधान परिषद विधेयक 2012, कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 2008, टेलीकाम रेग्युलेटरी अथॉरिटी संशोधन विधेयक 2008, निजी खुफिया एजेंसियां रेग्युलेशन विधेयक 2007 और बीज विधेयक 2004 प्रमुख हैं.

सरकार और विपक्ष का सहयोग 

सरकार विपक्ष के सहयोग से अहम विधेयकों को पारित कराना चाहती है. सबसे अधिक जोर अध्यादेशों को रिप्लेस करने वाले विधेयकों पर है. बजट सत्न के दौरान अगर छह सप्ताह के भीतर इनको पास नहीं कराया गया तो ये अध्यादेश लैप्स हो जाएंगे. एनडीए के पिछले शासन के दौरान ये विधेयक पास नहीं हो सके, जिस कारण अध्यादेश लाना पड़ा. इसमें मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों का संरक्षण) विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत कर दिया गया है. ये विधेयक लोकसभा में पारित होने के बावजूद राज्यसभा की मंजूरी नहीं पा सका था. अगर व्यापक रूप से देखें तो तस्वीर काफी चिंता पैदा करती है. 16वीं लोकसभा के आखिरी सत्न और राज्यसभा के 248 सत्न के आखिर तक संसद में कुल 79 विधेयक लंबित थे.

25 मई 2019 को 16वीं लोकसभा भंग होने के साथ संविधान के अनुच्छेद 107 (5) के तहत कुल 46 विधेयक लैप्स हुए. वहीं 15वीं लोकसभा के दौरान 68 विधेयक लैप्स हुए थे. जून 2014 से अंतरिम बजट सत्न 2019 के दौरान के 18 सत्नों में राज्यसभा की 329 बैठकों में 154 विधेयक पारित हुए. वहीं 2009 से 2014 के बीच इससे 34 अधिक अर्थात 188 विधेयक पारित हुए.

मोटर वाहन बिल भी है अटका 

संसद में सरकारी विधेयकों को पास कराना आसान काम नहीं होता. काफी विचार मंथन के बाद विधेयक तैयार होते हैं. कई बार संसदीय समितियों या प्रवर समिति में विचार करने में काफी समय लग जाता है. विधेयक को कानूनी प्रारूप में लाने के बाद कैबिनेट की मंजूरी जरूरी होती है. फिर संसद के दोनों सदनों से पास करा कर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है. राष्ट्रपति की सहमति के बाद नियम बनते हैं. फिलहाल अरसे से लटका मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक भी सरकार की प्राथमिकताओं में है. केंद्रीय मंत्नी नितिन गडकरी चाहते हैं कि बजट सत्न में ही यह पास हो जाए. 2014 से ही वे इसके लिए प्रयास करते रहे हैं. संसदीय स्थायी समिति और सेलेक्ट कमेटी में भी इस पर काफी विचार हुआ. लेकिन 2017 को लोकसभा में मंजूरी मिलने के बावजूद ये राज्यसभा में अटक कर लैप्स हो गया. सरकारी प्राथमिकताओं में श्रम सुधारों से संबधित विधेयक भी हैं.

सरकार 44 श्रम कानूनों का विलय कर उन्हें चार श्रम संहिताओं में तब्दील करने को नया श्रम विधेयक लाने जा रही है. विधेयकों के मामले में उच्च सदन को हाल के वर्षो में काफी आलोचना का शिकार होना पड़ा. जीएसटी विधेयक को लेकर तो तत्कालीन वित्त मंत्नी अरु ण जेटली ने उच्च सदन की भूमिका पर ही सवाल खड़ा कर दिया था. वे चाहते थे कि इस पर चर्चा हो कि क्या प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित लोकसभा में पारित सुधारवादी बिलों को अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदन रोक सकता है.

अहम बात यह भी है कि सदनों में बैठकों की संख्या कम होती जा रही है. पहले संसद 170 से 190 दिन तक चल जाती थी लेकिन आज 60 से 70 दिन चलती है तो भी काफी समय अवरोध में चला जाता है. इन सारे तथ्यों को देखते हुए नए सिरे से विचार की जरूरत है.

Web Title: Pending bills need to be proper attention

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