पवन के वर्मा का ब्लॉग: आलोचना के स्वरों को दबाने की कोशिश
By पवन के वर्मा | Published: September 8, 2019 06:31 AM2019-09-08T06:31:25+5:302019-09-08T06:35:49+5:30
स्वतंत्र मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है. लेकिन जाहिर है कि सरकार में बैठे कुछ लोग इसे सिर्फ किताबों तक ही सीमित रखना चाहते हैं. व्यवहार में, वे अपने अनुकूल मीडिया चाहते हैं.
उ त्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के जमालपुर ब्लॉक स्थित सियूर प्राइमरी स्कूल में छात्रों को मिड-डे मील में नमक-रोटी खिलाने का अपने मोबाइल फोन से वीडियो बनाने वाले पत्रकार पवन जायसवाल एक अच्छे रिपोर्टर नहीं हैं. क्षेत्र के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) अनुराग पटेल के अनुसार, उन्हें प्रिंट पत्रकार के रूप में इस घटना का फोटो लेना चाहिए था.
यह तथ्य कि उन्होंने वीडियो बनाने के लिए अपने फोन का उपयोग किया था, साबित करता है कि वे राज्य के खिलाफ आपराधिक साजिश रच रहे थे. जायसवाल पर अब आईपीसी की अनेक धाराओं के अंतर्गत मामले दर्ज किए गए हैं. उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा है कि ‘यदि कोई सरकार को बदनाम करने की कोशिश करेगा तो कार्रवाई होगी.’ इस प्रकार अब पत्रकारिता की जिम्मेदारी निभाने वालों को ध्यान रखना होगा कि ऐसी किसी घटना को सामने न लाएं जिससे सरकार की छवि पर असर पड़े, क्योंकि भले ही आप जो रिपोर्ट करते हैं सच है, वह सरकार को बदनाम करने का काम माना जाएगा और इसलिए सरकार को यह अधिकार है कि वह आपको झुकाने के लिए राज्य की शक्ति का प्रयोग करे.
स्वतंत्र मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है. लेकिन जाहिर है कि सरकार में बैठे कुछ लोग इसे सिर्फ किताबों तक ही सीमित रखना चाहते हैं. व्यवहार में, वे अपने अनुकूल मीडिया चाहते हैं. ऐसा मीडिया जिसकी खबरें कभी भी सरकार के खिलाफ आलोचनात्मक या छवि खराब करने वाली न हों. दूसरे शब्दों में, मीडिया को अपनी ‘जिम्मेदारी’ समझनी चाहिए और सरकार द्वारा तय किए गए ‘सही रिपोर्टिग’ के मानकों का कभी भी उल्लंघन नहीं करना चाहिए. अगर उल्लंघन होता है, तो माना जाएगा कि वह एक ‘खतरनाक आपराधिक साजिश’ में लिप्त है, ‘झूठे सबूत’ गढ़ रहा है और राज्य की भलाई नहीं चाहता है.
बदकिस्मत पवन जायसवाल को इस नई हकीकत का अहसास नहीं हुआ. उसने सोचा कि यह एक पत्रकार का कर्तव्य है कि वह ईमानदारी के साथ रिपोर्ट करे कि क्या हो रहा है और अपनी बात के समर्थन के लिए जितना हो सके, सबूत एकत्र करे. वह नहीं समझ पाया कि ऐसा करते हुए वह राज्य के खिलाफ जाने का अक्षम्य अपराध कर रहा है.
हमारे देश में यह क्या हो रहा है? सरकार द्वारा इस तरह की कार्रवाई करना यदि तानाशाही नहीं है तो इसे और क्या कहेंगे? यदि आप सरकार के दृष्टिकोण पर सवाल उठाते हैं तो आप राष्ट्रविरोधी हैं; यदि आप सरकार की आलोचना करते हैं तो आप देशद्रोही हैं; यदि आप असुविधाजनक सवाल पूछते हैं, भले ही अच्छी नीयत से, तो आप पाकिस्तान की मदद कर रहे हैं; यदि आप सरकार के हर काम की खुलकर प्रशंसा नहीं करते हैं तो आदर्श नागरिक नहीं हैं; यदि आप अपने असहमति के अधिकार का इस्तेमाल करते हैं तो राज्य के हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं.
एक निरंकुश शासन की नींव हमारी आंखों के सामने रखी जा रही है. गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम में संशोधन सरकार को किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी, ‘अर्बन नक्सल’ घोषित करने और उसे राज्य की शक्ति के जरिये कठोरता से दबाने का अधिकार देता है. सूचना के अधिकार अधिनियम को कमजोर किया जाना सूचना आयुक्तों को राज्य के दबाव के प्रति कमजोर बनाता है, जिससे प्रत्येक नागरिक के इस लोकतांत्रिक अधिकार पर असर पड़ता है कि वह सरकार के कामकाज के बारे में जानकारी हासिल कर सके. लोकसभा में भारी बहुमत और राज्यसभा में प्रबंधित किए गए बहुमत के साथ, सरकार के लिए किसी भी आलोचना या विपक्ष के सुझावों को ध्यान में रखे बगैर कानून पारित करना संभव हो गया है.
कश्मीर की परिस्थिति एक नई समस्या है. हमसे अपेक्षा की जाती है कि इस मुसीबतजदा राज्य - या केंद्रशासित प्रदेश- की स्थिति के बारे में सरकार जो भी बयान जारी करे, हम उस पर बिना कोई सवाल किए या असहमति जताए विश्वास कर लें. इससे अलहदा तथ्यों को सामने लाना देशद्रोह का कार्य माना जाता है. सबसे खराब बात यह है कि मीडिया का एक हिस्सा - प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों - लोकतांत्रिक अधिकारों के इस क्षरण में हिस्सा बंटाते हैं. वे असुविधाजनक सवाल पूछने वाले को इस तरह से घेरते हैं मानो वह राज्य का जन्मजात दुश्मन हो.
मुङो इस संदर्भ में एक शेर याद आ रहा है : ‘यूं दिखाता है मुङो आंखें बागबां/ जैसे गुलशन पे कुछ हक हमारा नहीं. मैं चिंतित हूं लेकिन आशावादी हूं. जायसवाल के साथ जो कुछ हुआ है उस पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने संज्ञान लिया है और उत्तर प्रदेश सरकार से इस बारे में रिपोर्ट मांगी है. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकार के समर्थन में बयान जारी किया है और उसके खिलाफ की गई कार्रवाई की निंदा की है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी यपी सरकार को एक नोटिस जारी किया है और राज्य में मिड-डे मील की स्थिति के बारे में विवरण मांगा है.
लेकिन ये सब चीजें जहां आशा की किरण हैं, वास्तव में जो चिंता की बात है वह सत्ता में रहने वालों और उनके समर्थकों का रवैया है. यूपी के डिप्टी सीएम की टिप्पणी देखें : ‘यदि कोई सरकार को बदनाम करने की कोशिश करेगा तो कार्रवाई होगी.’ यह वह रवैया है जो आलोचना को लोकतंत्र के भीतर रचनात्मक बातचीत के एक पहलू के रूप में नहीं देखता है, बल्कि दंडात्मक कार्रवाई के बल पर उसे दबाना चाहता है.