पवन के. वर्मा का ब्लॉग: जातिगत राजनीति की हार और मोदी के नेतृत्व की जीत
By पवन के वर्मा | Published: June 2, 2019 05:37 AM2019-06-02T05:37:21+5:302019-06-02T05:37:21+5:30
इस चुनाव के दो प्रमुख निष्कर्ष हैं. पहला यह है कि वंशवादी राजनीति के सामने एक बड़ी चुनौती उठ खड़ी हुई है. राजनीतिक युद्ध क्षेत्र में इस बार कई वंशवादी योद्धा धराशायी हुए हैं. सबसे ज्यादा झटका मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को लगा है, जहां गांधी परिवार के राहुल गांधी शीर्ष पर हैं.
वर्ष 2019 की मोदी सुनामी, जिसमें 1971 के बाद पहली बार कोई पार्टी लगातार दूसरी बार पहले से भी ज्यादा बहुमत से सत्ता में आई है, ने राजनीति में एक नई मिसाल कायम की है. इस बदलाव की रूपरेखा को समझने की जरूरत है, खासकर विपक्षी पार्टियों के द्वारा. अगर वे नए राजनीतिक परिदृश्य को नहीं देखना या समझना चाहते तो उन्हें ऐसा अपने जोखिम पर ही करना होगा.
इस चुनाव के दो प्रमुख निष्कर्ष हैं. पहला यह है कि वंशवादी राजनीति के सामने एक बड़ी चुनौती उठ खड़ी हुई है. राजनीतिक युद्ध क्षेत्र में इस बार कई वंशवादी योद्धा धराशायी हुए हैं. सबसे ज्यादा झटका मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को लगा है, जहां गांधी परिवार के राहुल गांधी शीर्ष पर हैं. राहुल अपने पारिवारिक गढ़ अमेठी से चुनाव हार गए. उनकी पार्टी को भारी नुकसान हुआ. पिछले लोकसभा चुनाव में अपने मामूली संख्याबल 44 में वह केवल 8 सीटों की ही वृद्धि कर पाई. कांग्रेस को कठोर आत्मनिरीक्षण की जरूरत है.
अन्य वंशों की हालत भी उतनी ही खराब है. अखिलेश यादव, जो समाजवादी पार्टी के इसलिए प्रमुख हैं कि मुलायम सिंह के बेटे हैं, का उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन दयनीय है. परिवार के अन्य सदस्यों के साथ उनकी पत्नी भी चुनाव हार गईं. चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह और उनके बेटे जयंत सिंह भी उत्तरप्रदेश में पराजित हुए. बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया तेजस्वी यादव, जो सिर्फ इसलिए मुखिया बने हैं कि लालू प्रसाद यादव के बेटे हैं, एक भी सीट नहीं जीत सके.
हरियाणा में, राज्य के प्रसिद्ध राजनीतिक घरानों - चौटाला, हुड्डा और भजन लाल - के वंशजों को हार का सामना करना पड़ा. नवीन पटनायक, जो दिग्गज बीजू पटनायक का बेटा होने से सत्ता में आए, लोकसभा और राज्य विधानसभा, दोनों जगह अधिकांश सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहे, लेकिन भाजपा की ओर से उन्हें कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ा. यह सच है कि कुछ वंशवादियों ने जीत भी हासिल की. आंध्र प्रदेश में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के बेटे वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने भारी जीत हासिल की.
तमिलनाडु में भी तमिल राजनीति के क्षत्रप करुणानिधि के बेटे स्टालिन ने अच्छा प्रदर्शन किया. व्यक्तिगत स्तर पर भी, कई प्रभावशाली नेताओं के बेटे सांसद निर्वाचित हुए. लेकिन फिर भी वंशवादी राजनीति को निश्चित रूप से झटका लगा है.
चुनाव नतीजों का दूसरा निष्कर्ष यह है कि जातिगत समीकरणों का स्थान अब ‘नई राजनीति’ के नए समीकरणों ने ले लिया है. उत्तरप्रदेश में, पारंपरिक तौर पर उम्मीद जताई जा रही थी कि यादव, दलित, जाट और मुस्लिमों का गठबंधन अजेय होगा. लेकिन गठबंधन बुरी तरह से पराजित हुआ. बिहार में राजद ने सोचा था कि मुसलमानों और यादवों के समय की कसौटी पर खरे उतर चुके गठबंधन की वजह से वह एक कठिन चुनौती पेश कर सकती है. लेकिन वह बुरी तरह से पराजित हुई.
पुराने राजनीतिक समीकरणों के भरोसे बैठे नेता यह नहीं समझ पाए कि जिन्हें वे अपना वोट बैंक मान रहे हैं, वे अपने स्वतंत्र विचारों के अनुसार भी वोट दे सकते हैं. मोदी सुनामी में सबसे महत्वपूर्ण तत्व नेतृत्व है. यह चुनाव नरेंद्र मोदी का चुनाव था. लोगों ने उनके लिए और उनके नाम पर वोट दिया. इसका कारण था मोदी की मुखरता, करिश्मा, ऊर्जा, विजन, इच्छाशक्ति और निर्णायकता.
जनादेश जितना विशाल है, जिम्मेदारियां और अपेक्षाएं भी उतनी ही बड़ी हैं. उम्मीद है कि एनडीए सरकार इस पर खरी उतरेगी. विशेषकर वह देश में सामाजिक सद्भाव का निर्माण करेगी.