पंकज चतुर्वेदी का नजरियाः परंपरागत जल स्रोतों को बचाना बेहद जरूरी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 12, 2019 10:24 AM2019-04-12T10:24:49+5:302019-04-12T10:24:49+5:30
विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट बताती है कि आने वाले 20-25 सालों में 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की संख्या 60 से अधिक हो जाएगी जिनका देश के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 70 प्रतिशत होगा. अब किसी भी शहर में जाएं कुछ दशक पहले तक जहां पानी लहलहाता था, अब कंक्रीट संरचनाएं दिख रही हैं.
पंकज चतुर्वेदी (वरिष्ठ पत्रकार)
दिल्ली की चमचमाती सड़कें, बेंगलुरु के आलीशान ऑफिस या हैदराबाद व चैन्नई के बड़े-बड़े कारखाने भले ही हमें देश के वैभव व संपन्नता पर गर्व करने का एहसास कराते हों, लेकिन हकीकत यह है कि यह भौतिक चमक-दमक पाने के लिए हमने उन जल-निधियों की कुर्बानी दी है जिनके बगैर धरती पर इंसान के अस्तित्व को खतरा है बेहतर रोजगार, आधुनिक जनसुविधाएं और, उज्ज्वल भविष्य की लालसा में अपने पुश्तैनी घर-बार छोड़ कर शहर की चकाचौंध की ओर पलायन करने की बढ़ती प्रवृत्ति का परिणाम है कि शहरों का विस्तार हो रहा है और इस बढ़ती आबादी के लिए आवास, सड़क, रोजगार के साधन उपलब्ध कराने के लिए अनिवार्य जमीन की मांग को पूरा करने के लिए उन नदी-तालाब- झील-बावली को उजाड़ा जा रहा है जो सदियों-पुश्तों से समाज को जिंदा रखने के लिए जलापूर्ति करते रहे हैं.
महानगर या शहर की ओर पलायन देश की सबसे बड़ी त्रसदी है तो इसे अर्थशास्त्र की भाषा में सबसे बड़ी प्रगति कहा जाता है. चौड़ी सड़कें, चैबीसों घंटे बिजली, दमकते बाजार, बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएं केवल इंसान को ही नहीं व्यापार-उद्योग को भी अपनी तरफ खींचती हैं. बीते एक दशक में महानगरों में आबादी विस्फोट हुआ और बढ़ती आबादी को सुविधाएं देने के लिए खूब सड़कें-ब्रिज, भवन भी बने. यह निर्विवाद तथ्य है कि पानी के बगैर मानवीय सभ्यता के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती.
विकास के प्रतिमान बने इन शहरों में पूरे साल तो जलसंकट रहता है और जब बरसात होती है तो वहां जलभराव के कारण कई दिक्कतें खड़ी होती हैं. शहर का मतलब है औद्योगिकीकरण और अनियोजित कारखानों की स्थापना जिसका परिणाम है कि हमारी लगभग सभी नदियां अब जहरीली हो चुकी हैं. नदी थी खेती के लिए, मछली के लिए , दैनिक कार्यो के लिए, न कि उसमें गंदगी बहाने के लिए. और दूसरी तरफ शहर हैं कि हर साल बढ़ रहे हैं देश में एक लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की संख्या 302 हो गई है जबकि 1971 में ऐसे शहर मात्र 151 थे. विशेषज्ञों का अनुमान है कि आज देश की कुल आबादी का 8.50 प्रतिशत हिस्सा देश के 26 महानगरों में रह रहा है.
विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट बताती है कि आने वाले 20-25 सालों में 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की संख्या 60 से अधिक हो जाएगी जिनका देश के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 70 प्रतिशत होगा. अब किसी भी शहर में जाएं कुछ दशक पहले तक जहां पानी लहलहाता था, अब कंक्रीट संरचनाएं दिख रही हैं. समाज जिन जल-निधियों को उजाड़ रहा है, वैसी नई संरचनाएं बनाना असंभव है क्योंकि उन जल निधियों को हमारे पूर्वजों ने अपने पारंपरिक ज्ञान व अनुभव से इस तरह रचा था कि कम से कम बरसात में भी समाज का गला तर रहे. आज मानवीय अस्तित्व को बचाना है तो महानगरों के विस्तार के बनिस्पत जल संरचनओं को अक्षुण्ण रखना अनिवार्य है.