पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: जलप्रबंधन के पुराने तरीके अपनाएं
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: June 13, 2019 03:09 PM2019-06-13T15:09:40+5:302019-06-13T15:09:40+5:30
यह अब उजागर हो चुका है कि हमने अपने पारंपरिक जल संसाधनों की जो दुर्गति की है, जिस तरह नदियों के साथ खिलवाड़ किया है, खेतों में रासायनिक खाद व दवा के प्रयोग से सिंचाई की जरूरत में इजाफा किया है, इसके साथ ही धरती का बढ़ता तापमान, भौतिक सुखों के लिए पानी की बढ़ती मांग सहित और भी कई कारक हैं जिनसे पानी की कमी तो होनी ही है.
पंकज चतुर्वेदी
लगातार चौथे साल सूखा झेल रहे बुंदेलखंड व मराठवाड़ा के अंचलों में प्यास व पलायन से हालात भयावह हैं. जंगलों में पालतू मवेशियों की लाशों का अंबार लग गया है और अभी तक सरकार तय नहीं कर पा रही है कि सूखे से जूझा कैसे जाए? जब पानी नहीं है तो राहत का पैसा लेकर लोग क्या करेंगे? महज खेत या किसान ही नहीं, खेतों में काम करने वाले मजदूर व अन्य श्रमिक वर्ग भी सूखे से बेहाल हैं. बची कसर मौसम विभाग की उस घोषणा ने पूरी कर दी कि मानसून कुछ देर से आ रहा है और बरसात भी औसत होगी. हालांकि ग्लोबल वार्मिग व जलवायु परिवर्तन ने पूरे मौसम चक्र को अविश्वसनीय और गफलत वाला बना दिया है.
यह अब उजागर हो चुका है कि हमने अपने पारंपरिक जल संसाधनों की जो दुर्गति की है, जिस तरह नदियों के साथ खिलवाड़ किया है, खेतों में रासायनिक खाद व दवा के प्रयोग से सिंचाई की जरूरत में इजाफा किया है, इसके साथ ही धरती का बढ़ता तापमान, भौतिक सुखों के लिए पानी की बढ़ती मांग सहित और भी कई कारक हैं जिनसे पानी की कमी तो होनी ही है. ऐसे में पूरे साल भर देश में कम पानी से बेहतर जीवन और जल-प्रबंधन, ग्रामीण अंचल में पलायन थामने और वैकल्पिक रोजगार मुहैया करवाने की योजनाएं बनाना अनिवार्य हो गया है.
असल में इस बात को लोग नजरअंदाज कर रहे हैं कि यदि सामान्य से कुछ कम बारिश भी हो और प्रबंधन ठीक हो तो समाज पर इसके असर को गौण किया जा सकता है. शहरी नालियों की प्रणाली और उनके स्थानीय नदियों में मिलने व उस पानी के सीधा समुद्र के खारे पानी में घुल जाने के बीच जमीन में पानी की नमी को सहेज कर रखने के साधन कम हो गए हैं. कुएं तो लगभग खत्म हो गए, बावड़ी जैसी संरचनाएं उपेक्षा से खंडहर बन गईं व तालाब गंदा पानी निस्तारण के नाबदान. इस व्यवस्था को सुधारना होगा.
कम पानी के साथ बेहतर समाज का विकास कतई कठिन नहीं है. बस एक तो हर साल, हर महीने इस बात के लिए तैयारी करना होगा कि पानी की कमी है. दूसरा, ग्रामीण अंचलों की अल्प वर्षा से जुड़ी परेशानियों के निराकरण के लिए सूखे का इंतजार करने के बनिस्बत इसे नियमित कार्य मानना होगा. कम पानी में उगने वाली फसलें, कम से कम रसायन का इस्तेमाल, पारंपरिक जल संरक्षण प्रणालियों को जिलाना, ग्राम स्तर पर विकास व खेती की योजना तैयार करना आदि ऐसे प्रयास हैं जो सूखे पर भारी पड़ेंगे.