पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: मछुआरों पर तो सहमति बने
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 8, 2019 02:14 PM2019-04-08T14:14:58+5:302019-04-08T14:14:58+5:30
भारत और पाकिस्तान में साझा अरब सागर के किनारे रहने वाले कोई 70 लाख परिवार सदियों से समुद्र से निकलने वाली मछलियों से अपना पेट पालते आए हैं.
विगत छह अप्रैल को पाकिस्तान द्वारा भारत के 360 ‘बंदी’ रिहा करने संबंधी खबर आई. हालांकि ये बंदी नहीं बल्कि तकदीर के मारे वे मछुआरे थे जो जल के अथाह सागर में कोई सीमा रेखा नहीं खिंची होने के कारण सीमा पार कर गए थे और हर दिन अपनी जान की दुहाई मांग कर जिंदगी काट रहे थे. यह दिक्कत केवल पाकिस्तान की सीमा पर ही नहीं है, श्रीलंका के साथ भी मछुआरों की धरपकड़ ऐसे ही होती रहती है.
भारत और पाकिस्तान में साझा अरब सागर के किनारे रहने वाले कोई 70 लाख परिवार सदियों से समुद्र से निकलने वाली मछलियों से अपना पेट पालते आए हैं. जैसे मछली को पता नहीं कि वह किस मुल्क की सीमा में घुस रही है, वैसे ही भारत और पाकिस्तान की सरकारें भी तय नहीं कर पा रही हैं कि आखिर समुद्र के असीम जल पर कैसे सीमा खींची जाए. कच्छ के रन के पास सर क्रीक विवाद सुलझने का नाम नहीं ले रहा है. असल में वहां पानी से हुए कटाव की जमीन को नापना लगभग असंभव है क्योंकि पानी से आए दिन जमीन कट रही है और वहां का भूगोल बदल रहा है. दोनों मुल्कों के बीच की कथित सीमा कोई 60 मील यानी लगभग 100 किमी में विस्तारित है.
कई बार तूफान आ जाते हैं तो कई बार मछुआरों को अंदाजा नहीं रहता कि वे किस दिशा में जा रहे हैं, परिणामस्वरूप वे एक-दूसरे के सीमाई बलों द्वारा पकड़े जाते हैं. कई बार तो इनकी मौत भी हो जाती है व घर तक उसकी खबर नहीं पहुंचती.
मछुआरों को इस जिल्लत से छुटकारा दिलाना कठिन नहीं है. एमआरडीसी यानी मेरीटाइम रिस्क रिडक्शन सेंटर की स्थापना कर इस प्रक्रिया को सरल किया जा सकता है. यदि दूसरे देश का कोई व्यक्ति किसी आपत्तिजनक वस्तु जैसे- हथियार, संचार उपकरण या अन्य खुफिया यंत्रों के बगैर मिलता है तो उसे तत्काल रिहा किया जाए. पकड़े गए लोगों की सूचना 24 घंटे में ही दूसरे देश को देकर, दोनों तरफ माकूल कानूनी सहायता मुहैया करवा कर इस तनाव को दूर किया जा सकता है.