ब्लॉग: विपक्ष के पास दिख रहा विकल्पों का अभाव

By अभय कुमार दुबे | Published: February 27, 2024 10:29 AM2024-02-27T10:29:22+5:302024-02-27T10:30:39+5:30

सत्ता विरोधी भावना की अनुपस्थिति में विपक्षी उम्मीदवार केवल स्थानीय जातिगत और समुदायगत समीकरणों के आसरे ही रहेंगे। हो सकता है कि कुछ निर्वाचन-क्षेत्रों में उन्हें इस आधार पर कामयाबी मिल जाए, लेकिन अगर ऐसा हुआ भी तो वह अपवादस्वरूप ही होगा।

Opposition seems to lack options | ब्लॉग: विपक्ष के पास दिख रहा विकल्पों का अभाव

फाइल फोटो

Highlightsविपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ किसी बहुत बड़ी और प्रबल एंटीइनकम्बेंसी की उम्मीद में किन क्या ऐसी कोई सरकार विरोधी आंधी चल रही है?समीक्षक भी सत्ता-परिवर्तन कर सकने वाली किसी आंधी को नहीं देख पा रहा है

ऐसा लगता है कि विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ किसी बहुत बड़ी और प्रबल एंटीइनकम्बेंसी की उम्मीद में है। लेकिन क्या ऐसी कोई सरकार विरोधी आंधी चल रही है? मेरा ख्याल है कि विपक्ष के प्रति खासी हमदर्दी रखने वाला कोई समीक्षक भी सत्ता-परिवर्तन कर सकने वाली किसी आंधी को नहीं देख पा रहा है। दस साल तक चलने वाली सरकार के विरोध में कुछ न कुछ नाराजगियां होती ही हैं, लेकिन वे अपने आप में चुनाव जीतने की कोई गारंटी नहीं देतीं।

सत्ता विरोधी भावना की अनुपस्थिति में विपक्षी उम्मीदवार केवल स्थानीय जातिगत और समुदायगत समीकरणों के आसरे ही रहेंगे। हो सकता है कि कुछ निर्वाचन-क्षेत्रों में उन्हें इस आधार पर कामयाबी मिल जाए, लेकिन अगर ऐसा हुआ भी तो वह अपवादस्वरूप ही होगा। इस परिस्थिति में मतदाता केवल एक ही पार्टी की सरकार बनते हुए देख पा रहे हैं। जमी हुई सरकार उखाड़ने के लिए किसी वैकल्पिक संरचना को उनके विचारार्थ पेश ही नहीं किया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार हर मंच से दावा कर रहे हैं कि मई के महीने में होने वाले लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी को 370 सीटें मिलेंगी, और NDA 400 के आंकड़ें छुएगा। अपने कार्यकर्ताओं को जोश दिलाने के लिए इस तरह की बातें ठीक हैं, लेकिन यह एक तथ्य है कि जब तक भाजपा दक्षिण भारत में जीत हासिल करने लायक समर्थन आधार तैयार नहीं करती, तब तक वह इस तरह का नतीजा हासिल नहीं कर सकती। इससे पहले तो भाजपा को 272 सीटें लाने की गारंटी करनी होगी। पिछली बार उसने कर्नाटक (25), तेलंगाना (4), पश्चिम बंगाल (18), बिहार (17), झारखंड (11) और महाराष्ट्र (23) को मिला कर 98 सीटें जीती थीं।

इन सीटों को दोबारा जीतना आसान साबित नहीं होगा। इन राज्यों में परिस्थितियां बदल चुकी हैं। महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी भाजपा की महायुति से आगे है। बिहार में महागठबंधन एनडीए को कड़ी टक्कर देने जा रहा है। झारखंड में सोरेन सरकार गिराने के चक्कर में भाजपा मात खा चुकी है। बंगाल में ममता बनर्जी 2019 के मुकाबले ज्यादा सतर्क और तैयार हैं। कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार भाजपा की राह में बहुत मुश्किलें पेश करने वाली है। यह जरूर है कि इस सबके बावजूद भाजपा विपक्ष से बेहतर स्थिति में है।

आखिरकार लड़खड़ाते हुए ही सही, लेकिन विपक्ष की एकता अपने मुकाम तक पहुंचती दिखने लगी है। पिछले दो लोकसभा चुनावों के लिहाज से देखें तो इस बार यह एक नई बात होगी। भाजपा के खिलाफ विपक्ष की एकता का सूचकांक 2014 और 2019 में शून्य था। इस बार वह कम से कम शून्य नहीं बल्कि उससे कुछ बेहतर होगा। प्रश्न यह है कि इस विपक्षी एकता की संरचना और राजनीतिक मर्म की समझ किस तरह बनानी चाहिए? क्या विपक्ष उस आश्वासन पर खरा उतर रहा है जो उसने करीब साल-सवा साल पहले देश की जनता को दिया था? राहुल गांधी अपनी पहली भारत जोड़ो यात्रा करते हुए बार-बार कहते थे कि हम विपक्ष के साथ मिल कर भाजपा को हराएंगे।

नीतीश कुमार का कहना था कि उनकी दिलचस्पी तो केवल विपक्ष की एकता में है। मेरा आकलन यह है कि गठबंधन तो हुआ है, और बचा-खुचा भी हो जाएगा। लेकिन यह आधा-अधूरा और खींचतान कर किया गया है। इसमें मुद्दों को आपस में गूंथ कर भाजपा द्वारा बनाई जा रही हवा के मुकाबले किसी समांतर हवा को बनाने की कोशिश तक नहीं की गई है। विपक्ष ने सिर्फ अंकगणित तैयार किया है। रसायनशास्त्र की तरफ उसकी निगाहें हैं ही नहीं। वह माहौल तैयार ही नहीं किया गया है जिसके जरिये सत्ता-परिवर्तन की भावना मतदाताओं के बीच फैलती। इस लिहाज से यह पैरों के बल पर नहीं, बल्कि सिर के बल खड़ा गठजोड़ है।

इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार चुनाव का पर्चा भरने के बाद मतदाताओं के पास महंगाई, बेरोजगारी, किसान आंदोलन, मोदी-अदानी संबंध, भारत-चीन सीमा विवाद और सांप्रदायिकता जैसे मुद्दों के साथ जाएंगे जरूर, लेकिन उनके पास देने के लिए कोई वैकल्पिक संदेश नहीं होगा। वे जनता को यह नहीं बता पाएंगे कि अगर सरकार रोजगार नहीं दे सकती तो वे किस तरह नौकरियों और रोजगार का बंदोबस्त करेंगे। वे मतदाताओं को यह भरोसा नहीं दे पाएंगे कि अगर भाजपा सरकार महंगाई कम नहीं कर पाई है तो उनके पास जरूरी चीजों के दामों का उचित प्रबंधन करने का क्या बंदोबस्त होगा।

वे ऐसा कोई दावा नहीं कर पाएंगे कि अगर भाजपा सरकार किसानों को फसलों के लाभकारी मूल्य मुहैया कराने के वायदे से मुकर रही है, तो वे कैसे और कितने समय में किसानों की यह मांग पूरी कर देंगे। चीन सीमा पर लगातार अतिक्रमण कर रहा है, और सरकार उसे रोकने में असमर्थ है। पर क्या विपक्ष के पास इस बात की कोई गारंटी है कि वह चीन को पीछे धकेल देगा? अगर वह सुव्यवस्थित तरीके से काम करता तो सभी जरूरी मुद्दों पर अपनी समांतर कार्ययोजना पेश करता। यह काम एक दिन में नहीं हो सकता था। इसमें साल-डेढ़ साल लगना था। आज मतदाताओं को यह पता नहीं है कि अगर वे मोदी की सरकार को हटाने के बारे में सोचें भी, तो जो नई सरकार उसकी जगह आएगी, उससे उन्हें क्या अपेक्षा करनी चाहिए।

Web Title: Opposition seems to lack options

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